
क्या आप जानते है देवभूमि उत्तराखंड का एक ऐसा त्यौहार भी है। जहां पूरा इलाका आपको ढोल दमाऊं की थाप के बीच रोता बिलखता दिखाई देगा। लेकिन इसकी वजह क्या है? आखिर ये लोग यहां आकर रोते क्यों हैं? चलिए इस आर्टिकल में उत्तराखंड की इस अनोखी परंपरा के बारे में जान लेते है।
नंदाअष्टमी में आखिर क्यों रो पड़ता है पूरा उत्तराखंड
हर साल नंदा अष्टमी (nanda ashtami) के दिन से उत्तराखंड में एक खास आयोजन होता है। कहते हैं की इसी दिन मां नंदा ब्रह्मकमल के रुप में अपने मायके आती हैं। दरअसल उत्तराखंड के लोग मां नंदा को अपनी बेटी के रुप में देखते हैं। नंदा अष्टमी से 2 दिन पहले गांव के लोग जिन्हें फुलारी कहा जाता है।
वो मां नंदा का आशीर्वाद लेकर घने जंगलों से होते हुए ऊंचे हिमालय की चोटीयों पर ब्रह्मकमल के रुप में उन्हें लेने जाते हैं। कठिन रास्तों और वन देवी देवताओं की पूजा करते हुए ये फुलारी इन्हीं ब्रह्मकमलों के रुप में मां नंदा को उनके मायके लेकर आते हैं।
बेटी नंदा की एक झलक के लिए पूरा गांव आता है
आपको ये जानकर हैरानी होगी की जैसे ही ब्रह्मकमल लेने लगे लोग मां नंदा के मंदिर के पास पहुंचते हैं। मां नंदा वहां मौजूद पश्वे के शरीर में अवतरित होकर ब्रह्मकमल स्वीकार करती हैं। पश्वा वो शख्स होता है जिसपर मां नंदा का आवेश आता है। इसके बाद मुट्ठी में चावल लेकर मां नंदा ब्रह्म कमल लाए लोगों को आशीर्वाद देकर खुद उनके साथ मंदिर में प्रवेश करवाती हैं। अपनी बेटी नंदा की एक झलक देखने के लिए यहां पूरा गांव उमड़ पड़ता है।
ढोल दमाऊं की थाप से होता है बेटी का स्वागत
अपनी बेटी का स्वागत ढोल दमाऊं की थाप पर नाचते गाते करता है। जिसके बाद मां नंदा का श्रृंगार और पूजा होती है। कहा जाता है की मां नंदा को खुश करने के लिए यहां बली का भी विधान है। इस उत्सव का सबसे भावुक क्षण तब आता है जब गांव वाले अपनी बेटी नंदा की विदाई करते हैं। दरअसल पूजा अर्चना के बाद मां नंदा की मूर्ति बनाकर गांव वाले उन्हें वापस उनके ससुराल कैलाश विदा कर देते हैं। नंदा की विदाई का ये पल किसी बेटी की विदाई जैसा ही होता है।
नंदा को वापस ससुराल जाता देख रो पड़ती है महिलाएं
अपनी बेटी नंदा को वापस ससुराल जाता देख महिलाएं रो पड़ती हैं। बुजुर्गों की आंखें भर आती हैं। पूरा इलाका अपनी बेटी को विदा करते हुए खूब रोता बिलखता है। इस समय मां नंदा भी पश्वे पर अवतरित होकर भावुक हो जाती हैं।
अपनी बेटी नंदा की विदाई देखकर यहां आए सभी लोग रोते बिलखते हैं। खुद मां नंदा भी अपने पश्वे पर अवतरित होकर ससुराल को जाते हुए भावुक हो जाती हैं। अगले साल आने का वादा कर अपने ससुराल चली जाती हैं

