धान क्रय केंद्रों की अव्यवस्था ने खोली जनप्रतिनिधियों की उदासीनता और सरकारी तंत्र की पोल

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हल्दूचौड़। धान क्रय केंद्रों में खरीद लिमिट समाप्ति की ओर बढ़ने से जहां एक ओर किसान परेशान और आक्रोशित हैं, वहीं दूसरी ओर यह स्थिति जनप्रतिनिधियों की उदासीनता और सरकारी तंत्र की लापरवाही को भी उजागर कर रही है। किसानों की रोज़मर्रा की जद्दोजहद के बावजूद जिम्मेदार विभाग और जनप्रतिनिधि केवल आश्वासन देने में ही सीमित दिखाई दे रहे हैं।

केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के तहत खरीद लक्ष्य लगभग पूरा हो चुका है, लेकिन ज़मीनी हकीकत यह है कि अधिकांश किसानों का धान अब तक सरकारी केंद्रों तक नहीं पहुंच सका है। रजिस्ट्रेशन कराने के बाद भी हज़ारों क्विंटल धान खुले में पड़ा सड़ने की कगार पर है। किसान रोज़ाना अपने ट्रैक्टर और ट्रकों में धान लादकर केंद्रों का चक्कर लगाने को मजबूर हैं, मगर हर जगह एक ही जवाब मिलता है — “लिमिट खत्म हो गई है।”

जनप्रतिनिधियों की चुप्पी और प्रशासनिक निष्क्रियता ने किसानों के संकट को और गहरा कर दिया है। किसानों की शिकायत है कि न तो खरीद प्रक्रिया पारदर्शी है, न ही किसी प्रकार की प्राथमिकता सूची का पालन हो रहा है। सीरियल नंबर के क्रम में खरीद न होने से कई किसानों का महीनों पुराना इंतजार जारी है, जबकि कुछ प्रभावशाली लोगों की फसल पहले ही खरीदी जा चुकी है।

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सरकारी तंत्र की विफलता का आलम यह है कि विभागीय अधिकारी केवल “नई लिमिट स्वीकृति की प्रतीक्षा” का हवाला देकर जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ रहे हैं। इससे यह साफ झलकता है कि किसानों की मेहनत और उपज व्यवस्था की अनदेखी का शिकार हो रही है।

धान क्रय केंद्रों की यह बदहाल तस्वीर राज्य की कृषि नीति पर भी सवाल खड़े करती है। जनप्रतिनिधियों की निष्क्रियता और प्रशासनिक लापरवाही ने किसान वर्ग में गहरी नाराजगी और अविश्वास की भावना पैदा कर दी है। यदि जल्द ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो यह समस्या केवल आर्थिक संकट ही नहीं बल्कि किसानों के आक्रोश के रूप में भी सामने आ सकती है।

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