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देवभूमि उत्तराखंड में भगवान शिव का वास है। यहां पर कण-कण में भोले भंड़ारी की पूजा की जाती है। कहीं पर वो दामाद के रूप में तो वहीं कहीं जीजा की तरह उनका मान किया जाता है। कैलाश के बाद अगर भगवान शिव का कोई पसंदीदा स्थान है तो वो है केदारनाथ धाम।
हालांकि उत्तरांखड में केवल एक ही केदार नहीं है। यहां शिव के पांच मंदिर है। जिसे हम पंच केदार (Panch Kedar) के नाम से भी जानते है। पंच केदार में भगवान शिव के पांच मंदिर केदारनाथ, रुद्रनाथ, मध्यमहेश्वर (madmaheshwar), तुंगनाथ और कल्पेश्वर आते है। पंच केदारों में केदारनाथ के बाद मध्यमहेश्वर पूजनीय है। आज हम इस आर्टिकल में दूसरे पंचकेदार मध्यमहेश्वर (madmaheshwar temple uttarakhand) के बारे में विस्तार से जानते है।
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रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है (madmaheshwar temple uttarakhand)
भगवान शिव को समर्पित मध्यमहेश्वर उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में ऊखीमठ के पास स्थित है। ये मंदिर समुद्र तल से करीब 3,497 मीटर यानी 11,473.1 ft (madmaheshwar altitude) की ऊंचाई पर है। गढ़वाल में स्थित ये एक प्रमुख हिंदू तीर्थस्थल है। पंच केदार में केदारनाथ के बाद मध्यमहेश्वर का काफी महत्व है। यहां पर भोलेनाथ की नाभि की पूजा की जाती है। कहा जाता है कि ये वो जगह जहां माता पार्वती और शिव ने मधुचंद्र रात मनाई थी।
- मध्यमहेश्वर का महात्म्य: मध्यमहेश्वर के बारे में कुछ किंवदंतियां तो ये भी कहती हैं कि यहां की सुन्दरता में मुग्द्ध होकर शिव पार्वती ने अपनी मधुचंद्र रात्रि यहीं मनाई थी। मध्यमहेश्वर के बारे में ये भी कहा जाता है कि यहां की पवित्र जल की चंद बूंदें ही मोक्ष के लिए काफी हैं। कहा जाता है जो भी इंसान भक्ति या बिना भक्ति के भी मध्यमहेश्वर के महात्म्य को सुनता या पढ़ता है उसे बिना कोई और चीज करे शिव के धाम की प्राप्ति हो जाती है। इसी के साथ कोई भी अगर यहां पिंडदान करता है तो उसकी सौ पुश्तें तक तर जाती हैं।
- मंदिर की वास्तुकला: मध्यमहेश्वर मंदिर उत्तर भारतीय शौली में बना है जो केदारनाथ मंदिर कि वास्तु शौली से काफी मेल खाता है। मध्यमहेश्वर मंदिर के गर्भग्रह में काले पत्थर से निर्मित भगवान शिव काले रंग के नाभि लिंगम के रुप में विराजते हैं।
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पौराणिक कथा के अनुसार (madmaheshwar temple History)
पौराणिक कथा के अनुसार, महाभारत युद्ध के बाद पांडव गोत्र हत्या के दोषी हो गए थे तो पश्चाताप के लिए पांडव अपना राज पाठ छोड़ कर केदारनाथ की तरफ गए। लेकिन शिव पांडवों से रुष्ट थे और पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे। जैसे ही पांडव केदार की तरफ बढ़ने लगे तो शिव ने उनसे दूर रहने के लिए बैल का रूप धारण कर लिया और बाकी पशुओं के बीच चले गए। लेकिन भीम ने उन्हें पहचान लिया इसका आभास होते ही शिव धरती में समाने लगे।
जिसे देखकर भीम ने तुरंत उस बैल रुपी शिव की पीठ का पिछला हिस्सा पकड़ लिया और वो हिस्सा धरती के ऊपर ही रह गया। विभिन्न स्थानों पर शिव के अंग प्रकट हुए। बैल रुपी शिव की पीठ का पिछला हिस्सा जब भीम ने पकड़ लिया था तो नाभि वाला हिस्सा मध्यमहेश्वर में रह गया था। जिसके चलते यहां पर भगवान शिव की नाभी की पूजा की जाती है।
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कैसे पहुंचें मध्यमहेश्वर? –How to reach Madmaheshwar in Hindi
- सड़क मार्ग से – How to reach Madmaheshwar by Road in Hindi: सड़क मार्ग से जाने के लिए सबसे पहले आप हरिद्वार, ऋषिकेश या फिर देहरादून पहुंचे। जिसके बाद बस या फिर टैक्सी द्वारा उखीमठ पहुंचे। जिसके बाद उखीमठ से रांसी गांव के लिए टैक्सी किराये पर लें। रांसी गांव से मध्यमहेश्वर के लिए 16 किलोमीटर का ट्रेक है। जो आपको सीधा मंदिर की तरफ ले जाएगा।
- मध्यमहेश्वर पहुंचने का रोड मैप – (Road Map of Madhyameshwar)
दिल्ली – हरिद्वार – ऋषिकेश – देवप्रयाग – श्रीनगर – रुद्रप्रयाग – उखीमठ – उनियाना – रांसी (18 किलोमीटर ट्रेक)– मध्यमहेश्वर
- मध्यमहेश्वर पहुंचने का रोड मैप – (Road Map of Madhyameshwar)
- रेल मार्ग से – How to reach Madmaheshwar by Train in Hindi:
- ऋषिकेश रेलवे स्टेशन: अगर आप मध्यमहेश्वर आ रहे है तो यहां से सबसे नजदीक रेलवे स्टेशन है। जिसकी दूरी मध्यमहेश्वर से करीब 181 किलोमीटर है। ऋषिकेश से आपको आसानी से रांसी गांव के लिए बस या फिर टैक्सी मिल जाएगी। जिसके बाद यहां से 16 किलोमीटर की ट्रेकिंग कर आप मंदिर तक पहुंच जाएंगे।
- हरिद्वार रेलवे स्टेशन: मध्यमहेश्वर से हरिद्वार रेलवे स्टेशन भी पास है। हरिद्वार रेलवे स्टेशन देश के प्रमुख शहरों से रेल मार्ग से काफी अच्छे से जुड़ा हुआ है। हरिद्वार से मध्यमहेश्वर के बीच करीब 225 किलोमीटर(Haridwar to Madmaheshwar distance) की दूरी है।
- हवाई मार्ग से – How to reach Madmaheshwar by Air in Hindi: मध्यमहेश्वर से सबसे नजदीक हवाई अड्डा देहरादून का जॉली ग्रांट एयरपोर्ट है। देहरादून से मध्यमहेश्वर तक की दूरी करीब 240 किलोमीटर(Dehradun to Madmaheshwar distance) है। जॉली ग्रांट एयरपोर्ट देश के प्रमुख हवाई अड्डों से जुड़ा है। देहरादून से फिर आपको बस या फिर टैक्सी उखीमठ के लिए मिल जाएगी। जिसके बाद रांसी गांव पहुंचकर मंदिर का ट्रेक शुरू हो जाता है।
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madmaheshwar trek
मध्यमहेश्वर ट्रैक (madhyamaheshwar trek) में आपको प्राकृतिक सुंदरता जैसे हरे-भरे जंगल, अल्पाइन घास के मैदान और हिमालय की बर्फीली चोटियों के शानदार दृश्य देखने को मिलेंगे। वैसे देखा जाए तो मध्यमहेश्वर मंदिर का एक तरफा ट्रेक एक दिन में पूरा किया जा सकता है। लेकिन ट्रैक लंबा होने के साथ साथ यहां सीधी और खड़ी चढ़ाई है। जिसके चलते इसके लिए आप दो-तीन दिन का समय लेकर चलें। साथ ही इस बात का खासा ख्याल रखें कि आप शारीरिक रूप से स्वस्थ हो। अगर आप शारीरिक रूप से फिट नहीं हो तो इस ट्रेक पर मत आए।
ट्रैक की दूरी और समय (madmaheshwar trek distance)
आमतौर पर मध्यमहेश्वर ट्रैक करीब 18-24 किलोमीटर(madmaheshwar trek distance) लंबा है। लेकिन मार्ग के चलते दूरी अलग-अलग हो सकती है। इसे पूरा करने में करीब दो से चार दिन तक का समय लग सकता है। ट्रैक की शुरुआत उनियाना गांव से होती है। ये रांसी गांव के पास है। रांसी पहुंचने के लिए आप सड़क मार्ग का सहारा ले सकते है। हालांकि वहां से उनियाना तक एक छोटी यात्रा करनी होगी। यहां आपको पैदल जाना होगा। उनियाना गांव से मध्यमहेश्वर मंदिर के लिए मुख्य ट्रैक की शुरूआत होती है।
रूट कुछ इस प्रकार है:- (madmaheshwar trek route Map)
- रांसी से उनियाना: रांसी गांव से उनियाना करीब तीन किलोमीटर की दूरी पर है। जिसकी दूरी पैदल यात्रा करके आसानी से तय की जा सकती है।
- उनियाना से नानू: जिसके बाद उनियाना से असली ट्रेक की शुरुआत होती है। यहां से नानू गांव तक करीब सात किलोमीटर का ट्रेक है। इस यात्रा के दौरान आपको घने जंगल, झरने और सुंदर प्राकृतिक दृश्य देखने को मिलेंगे।
- नानू से गौंडार: नानू से गौंडार गांव के बीच करीब तीन किलोमीटर की दूरी है।
- गौंडार से मध्यमहेश्वर: ये मध्यमहेश्वर मंदिर का आखिरी चरण है। गौंडार से मध्यमहेश्वर मंदिर तक की दूरी करीब पांच किलोमीटर है। यहां चढ़ाई थोड़ी कठिन हो सकती है। लेकिन रास्ते में अत्यंत मनमोहक नजारे आपकी सारी थकान मिटा देंगे।
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ठहरने की व्यवस्था (Accommodation)
ट्रेक के दौरान नानू, गौंडार और मध्यमहेश्वर में आपको ठहरने की व्यवस्था मिल जाएगी। इधर आपको बेसिक गेस्ट हाउस और होमस्टे मिल जाएंगे। मध्यमहेश्वर ट्रेक के दौरान याद रहे कि आप जरूरी चीजें जैसे गर्म कपड़े, रेनकोट, टॉर्च और फस्ट एड किट आदि साथ ले जाए।
मध्यमहेश्वर की यात्रा का सबसे बेस्ट टाइम (Best time for Madmaheshwar Trek in Hindi)
साल में मध्यमहेशश्वर मंदिर के दर्शन श्रद्धालुओं के लिए केवल छह महीने के लिए ही खुलते है। सर्दियों में यहां भारी बर्फबारी(madmaheshwar weather) होती है। जिसके चलते सर्दियों में छह महीने मंदिर के कपाट बंद रहते है।
अगर आप भी मध्यमहेशवर का ट्रेक (madhmaheshwar trek)करने का प्लान बना रहे है तो यहां आने का सबसे बेस्ट समय (मई से अक्टूबर के बीच का है। इस दौरान मौसम अनुकूल रहता है। साथ ही रास्तों में बर्फ भी जमा नहीं रहेगी। जिससे आपको ट्रेक करने में आसान होगी। हालांकि मानसून के दौरान यानी की जुलाई और अगस्त के महीनों में यहां आने से बचे। इस दौरान रास्ते फिसलन से भरे होते है। साथ ही भूस्खलन का भी खतरा बना रहता है।
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madmaheshwar opening date and closing date 2025
मंदिर की यात्रा के लिए सबसे अच्छा समय मई से नवंबर के बीच होता है। इस दौरान मौसम अच्छा और ट्रेकिंग भी सुविधाजनक होती है। मंदिर को खोलने और बंद करने की तिथि हर साल बदलती है। ये स्थानीय प्रशासन या मंदिर प्रबंधन द्वारा निर्धारित की जाती हैं। हालांकि इस साल की बात करें तो मध्यमहेश्वर मंदिर 20 मई 2025 को खुल(madmaheshwar opening date 2025) सकते है। तो वहीं मंदिर के कपाट 20 नवंबर 2025 को बंद(madmaheshwar closing date 2025) होने की उम्मीद है।
Budha Madmaheshwar
मध्यमहेशश्वर मंदिर तक पहुंचने के बाद आप बुढ़ा मध्यमहेशश्वर (Budha madmaheshwar) का ट्रैक जरूर करें। अगर आप ट्रेंकिंग के शौकीन है तो आप बूढ़ा मध्यमहेश्वर के भी दर्शन कर सकते है। बूढ़ा मध्यमहेश्वर भी भगवान शिव को समर्पित एक छोटा सा मंदिर है। ये मध्यमहेश्वर मंदिर से करीब दो किलोमीटर की ऊंचाई पर स्थित है। अक्सर ट्रेक करने लोग यहां आते है। बूढ़ा मध्यमहेश्वर से चौखंबा पर्वत श्रृंखला का खुबसूरत नजारा देखने को भी मिलता है।
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कैसे पहुंचे बुढ़ा मध्यमहेशश्वर?( Budha Madmaheshwar Trek)
बूढ़ा मध्यमहेश्वर पहुंचने के लिए आपको मध्यमहेश्वर मंदिर से करीब 1.5 से 2 किलोमीटर का ट्रेक करना पड़ेगा। इसमें आपको 45 से एक घंटे तक का समय लग सकता है। अगर आपकी स्पीड तेज है तो आप 30 मिनट में भी इस दूरी को तय कर सकते है। यहां से आपको चार तालों का सुंदर नजारा भी देखने को मिलेगा।
धार्मिक आस्था के साथ-साथ ये प्रकृति प्रेमियों का भी स्पॉट है। यहां ट्रेंकिंग के शौकीन लोग प्राकृतिक सुंदरता का आनंद लेने आते है। यहां से आपको हिमालय की बर्फीली चोटियों का खूबसूरत नजारा देखने को मिलता हैं।