नैनीताल। उत्तराखंड में पुरातनकाल से ही मां नंदा देवी को कुल देवी का दर्जा प्राप्त है। नैनीताल स्थित मां नयना देवी को जहां मां नंदा देवी का प्रतिरूप माना जाता है। वहीं इसे सती व नव दुर्गा के रूप में भी मान्यता प्राप्त है। नवरात्रों में मां नयना देवी नव दुर्गा के रूप में पूजी जाती है वहीं इन दिनों वह कुलदेवी के रूप में पूजी जा रही है। मां पार्वती का एक नाम नंदा भी है। उत्तराखंड के लोग उसे विवाहित बेटी मानते है। लिहाजा नंदा राजजात की तरह अल्मोड़ा, नैनीताल व चमोली में नंदा सुनंदा को दुल्हन की तरह सजा कर गाजों बाजों के साथ विदा करने की परम्परा है। इन स्थानों में मां नंदा व सुनंदा की प्रतिमाओं की पूजा अर्चना कर विदा देने के लिए भव्य डोला भ्रमण कराया जाता है। इन दिनों नैनीताल व अल्मोड़ा में मां नंदा विवाहित पुत्री के रूप में पूजी जा रही है और उसे शिवधाम विदा करने की तैयारी की जा रही है। नैनीताल की नयना देवी को शैल पुत्री व सती की भी मान्यता है। स्कंद पुराण के मानस खंड में नैनीताल का जिक्र त्रिऋषि सरोवर के नाम से है। शिव पुराण के रूद्र संहिता के सती खंड के मुताबिक जब सती के पिता दक्ष प्रजापति ने कनखल हरिद्वार में महायज्ञ का आयोजन किया तो सती के पति भगवान शिव को इस यज्ञ में नही बुलाया। दरअसल दक्ष प्रजापति शिव-सती के विवाह से नाराज थे। पिता द्वारा शिव को नही बुलाये जाने पर क्रोधित सती महायज्ञ में पहुंच गई। जब महायज्ञ में हवन हो रहा था तो क्रोधित सती हवनकुंड में प्रवेश कर लिया। जिससे सती अर्द्धभस्म हो गई। जब इसका पता शिव को लगा तो वह तांडव करते महायज्ञ स्थल पर पहुंच गये। सती के अर्द्धभस्म काया को लेकर वह कैलास की ओर आ गये। शिव के इस रूप से चिंतित विष्णु भगवान ने सती की काया को कई हिस्सों में विभाजित कर दिया। माना जाता है कि इस स्थान सती की काया का बांया आंख गिर गया। इस स्थान पर नयना अर्थात नैना के आकार की झील बन गई। इसी से प्रेरित नैना या नयना मंदिर स्थापित हुआ। नयना देवी के बावत कई किवदंतियां भी है।
24 कैरेट शुद्ध सोने के गहने पहनंेगी मां नंदा सुनंदा
नैनीताल। सोमवार की देर रात्रि केले के खामों से नंदा सुनंदा की प्रतिमाएं तैयार कर ली गई हैं। इन प्रतिमाओं को दुल्हन की तरह सजाया जायेगा। परम्परा अनुसार इन प्रतिमाओं को ससुराल विदा करने से पूर्व उन्हें सोने के जेवरों से भी सजाया जाता है। नैनीताल में मां नंदा सुनंदा को 24 कैरेट शुद्ध सोने के जेवर पहनाने की परम्परा है। लगभग 10 से 12 तोले सोने से बने नथ, मांग टीका, मंगलसूत्र व कुंडल आदि मां को पहनाये जाते है। जिनमें चांदी के मुकुट व छत्र भी शामिल है। आगामी एक सितम्बर को इन प्रतिमाओं की शोभा यात्रा निकाली जायेगी। नगर भ्रमण के बाद प्रतिमा विर्सजन से पहले आभूषण निकाल लिए जायेंगे। इसके बाद प्रतिमाओं का नैनी झील में विर्सजन कर दिया जायेगा।
ईको फ्रैंडली होती हैं मां नंदा सुनंदा की प्रतिमाएं
नैनीताल। नंदा महोत्सव आयोजन कराने वाली संस्था श्री राम सेवक सभा के संरक्षक व पिछले 50 वर्ष पूर्व से प्रतिमाओं का निर्माण करने वाले रंगकर्मी स्व. गंगा प्रसाद साह कहना था कि नैनीताल में बनने वाली मां नंदा सुनंदा की प्रतिमाएं ईको फ्रैंडली होती हैं। चूंकि इन प्रतिमाओं का विर्सजन नैनी झील में किया जाता है। पर्यावरण संरक्षण व धार्मिक मान्यताओं के चलते प्रतिमाओं को ईको फ्रैंडली बनाने का प्रचलन है। इन प्रतिमाओं को बनाने के लिए केले के पेड़ों के तने, बांस के सींकों के साथ ही कपड़ा, रूई व जूट का इस्तेमाल किया जाता है। श्रंृगार सामग्री व रंग प्राकृतिक होते है। प्रतिमाओं में उपयोग आने वाली हर वस्तु पानी में घुलनशील होती है। साह बताते हैं कि नैनीताल में बनने वाली मां के मुखौटों का आकार भी पर्वतों की तरह रखा जाता है। रंगकर्मी स्व. गंगा प्रसाद साह के बाद अब प्रतिमाओं को बनाने का कार्य उनके द्वारा प्रशिक्षित किये गये कलाकार करते है। इन प्रतिमाओं का निर्माण कार्य देर रात पूर्ण कर लिया गया। शनिवार को विशेष पूजन के बाद नयना देवी मंदिर में स्थापित कर दिया गय। डोला भ्रमण के दोपहर तक भक्तजन मां नंदा- सुनंदा की पूजा कर सकेंगे।
प्रथम शैल पुत्री नवदुर्गा के रूप में पूजी जाती है मां नयना देवी
नैनीताल। उत्तराखंड में पुरातनकाल से ही मां नंदा देवी को कुल देवी का दर्जा प्राप्त है। नैनीताल स्थित मां नयना देवी को जहां मां नंदा देवी का प्रतिरूप माना जाता है। वहीं इसे सती व प्रथम शैल पुत्री नवदुर्गा के रूप में भी मान्यता प्राप्त है। नवरात्रों में मां नयना देवी नव दुर्गा के रूप में पूजी जाती है। वहीं पर्वतीय क्षेत्र में कुलदेवी के रूप मंे पूजी जा रही हंै। मां पार्वती का एक नाम नंदा भी है। उत्तराखंड के लोग उसे विवाहित बेटी मानते है। शारदीय नव रात्रों में दूर-दूर से लोग नयना देवी की विशेष पूजा करने के लिए नैनीताल पहुंचते है। नैनीताल की नयना देवी को शैल पुत्री व सती की भी मान्यता है। स्कंद पुराण के मानस खंड में नैनीताल का जिक्र त्रिऋषि सरोवर के नाम से है। शिव पुराण के रूद्र संहिता के सती खंड में इसका विस्तार से वर्णन किया गया है।