इसे कहते हैं हार कर जीतना

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उत्तराखंड में सभी मिथकों को तोड़ते हुए पुष्कर सिंह धामी को दोबारा मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने में कामयाब रहे। पार्टी को जिताने वाले धामी खुद चुनाव हार गए थे, लेकिन हार कर जीतने वाले धामी ने साबित कर दिया कि वो उत्तराखंड की राजनीति में लंबी रेस का घोड़ा हैं। बैठकों में हर मुद्दे पर चर्चा करने के बाद यह बात सामने आई है कि हार के बाद के समीकरणों में से जिस तरह से धामी ने पार पाया है। वह सबके बस की बात नहीं थी।

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सीएम धामी को मुख्यमंत्री के रूप में छह महीने का कार्यकाल मिला। यह उनकी बड़ी उपलब्धि रही कि पांच साल की एंटी इनकंबेंसी को दरकिनार कर वह भाजपा को लगातार दूसरी बार सत्ता में लाने में सफल रहे। छह महीने के उनके काम के स्टाइल से भाजपा का शीर्ष नेतृत्व कायल था।


यह पहली बार हुआ कि जब उत्तराखंड में किसी दल को लगातार दूसरी बार सरकार बनाने का अवसर मिला। धामी उत्तराखंड में अब तक के सबसे कम उम्र के मुख्यमंत्री हैं। धामी पिछले वर्ष चार जुलाई को तीरथ सिंह रावत के स्थान पर उत्तराखंड के 11वें मुख्यमंत्री बने थे।

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धामी से पहले जो भी सीएम बने कुछ ही दिनों में चाहे फैसले हो या बयान विवादों में आ गए। जैसे त्रिवेंद्र सिंह रावत का देवस्थानम बोर्ड हो या तीरथ सिंह रावत का फटी जींस का मामला। पर धामी ने छह साल का कार्यकाल र्निविवाद और भाजपा नेतृत्व के अनुरूप निभाया जो कि उन्हें दोबारा चुने जाने में काफी मददगार रहा।

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धामी चाहे उत्तराखंड में बाढ़ आपदा हो, शहीद स्मारक का मामला हो या फिर पूर्णागिरि मेले की बैठक में पहुंचने का मामला। वह सब जगह मौजूद रहे। बाढ़ के दौरान तो ट्रैक्टर पर बैठकर और पहाड़ के दुर्गम गांवों में जाकर लोगों का हालचाल जाना।

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