शाकंभरी देवी दुर्गा के अवतारों में एक हैं। दुर्गा के सभी अवतारों में से रक्तदंतिका, भीमा, भ्रामरी, शताक्षी तथा शाकंभरी प्रसिद्ध हैं।
मां शाकंभरी की पौराणिक ग्रंथों में वर्णित कथा के अनुसार, एक समय जब पृथ्वी पर दुर्गम नामक दैत्य ने आतंक का माहौल पैदा किया। इस तरह करीब सौ वर्ष तक वर्षा न होने के कारण अन्न-जल के अभाव में भयंकर सूखा पड़ा, जिससे लोग मर रहे थे। जीवन खत्म हो रहा था। उस दैत्य ने ब्रह्माजी से चारों वेद चुरा लिए थे।
तब आदिशक्ति मां दुर्गा का रूप मां शाकंभरी देवी में अवतरित हुई, जिनके सौ नेत्र थे। उन्होंने रोना शुरू किया, रोने पर आंसू निकले और इस तरह पूरी धरती में जल का प्रवाह हो गया। अंत में मां शाकंभरी दुर्गम दैत्य का अंत कर दिया।
शाकंभरी देवी के दर्शन से पहले भूरा देव के दर्शन किए जाते हैं बताया जाता है शाकंभरी माता के रक्षक भूरा देव हैं इसलिए माता का आशीर्वाद है कि जो भक्त पहले भूरा देव की पूजा अर्चना करेगा उसके बाद मेरी पूजा करेगा तो उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी
बताया जाता है शाकंभरी माता का मंदिर राजस्थान के सीकर मामा के स्थान पर भी है इसको चौहानों की कुल देवी के नाम से भी जाना जाता है