15 जून को लिखी गई थी बंटवारे की कहानी, इसने किया था रोकने का प्रयास

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, नईदिल्ली। 1947 में भारत अंग्रेजों के चंगुल से मुक्त तो हुआ मगर दो टुकड़ों में बंट गया। उसी के साथ शुरू हुई विभाजन की त्रासदी। बंटवारे की तस्वीरें कलेजा कंपा जाती हैं। 14-15 जून 1947 को नई दिल्ली में हुए कांग्रेस अधिवेशन में बंटवारे के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई। अंग्रेजों ने जाते-जाते बंटवारे का ऐसा जख्म दिया जो रह-रहकर सालता है। पाकिस्तान बना ही मुसलमानों के लिए अलग देश की मांग पर था। बंटवारे का मतलब था भारत के बहुत सारे मुसलमानों का उस पर जाना और वहां के तमाम हिंदुओं का इधर आना। अंग्रेजों ने योजनाबद्ध रूप से हिन्दू और मुसलमान दोनों संप्रदायों के प्रति शक को बढ़ावा दिया। मुस्लिम लीग ने अगस्त 1946 में सिधी कार्यवाही दिवस मनाया और कलकत्ता में भीषण दंगे किये जिसमें करीब 5000 लोग मारे गये और बहुत से घायल हुए। ऐसे माहौल में सभी नेताओं पर दबाव पड़ने लगा कि वे विभाजन को स्वीकार करें ताकि देश पूरी तरह युद्ध की स्थिति में न आ जाए। भारत का विभाजन माउण्टबेटन योजना के आधार पर निर्मित भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 के आधार पर किया गया। इस अधिनियम में कहा गया कि 15 अगस्त 1947 को भारत व पाकिस्तान अधिराज्य नामक दो स्वायत्त्योपनिवेश बना दिए जायेंगें ब्रिटिश सरकार सत्ता सौंप देगी। स्वतंत्रता के साथ ही 14 अगस्त को पाकिस्तान अधिराज्य (बाद में जम्हूरिया ए पाकिस्तान) और 15 अगस्त को संघ (बाद में भारत गणराज्य) की संस्थापना की गई। इस घटनाक्रम में मुख्यतः ब्रिटिश भारत के बंगाल प्रान्त को पूर्वी पाकिस्तान और भारत के पश्चिम बंगाल राज्य में बाँट दिया गया और इसी तरह ब्रिटिश भारत के पंजाब प्रान्त को पश्चिमी पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त और भारत के पंजाब राज्य में बाँट दिया गया। इसी दौरान ब्रिटिश भारत में से सीलोन (अब श्रीलंका) और बर्मा (अब म्यांमार) को भी अलग किया गया, लेकिन इसे भारत के विभाजन में नहीं शामिल किया जाता है। इसी तरह 1971 में पाकिस्तान के विभाजन और बांग्लादेश की स्थापना को भी इस घटनाक्रम में नहीं गिना जाता है। नेपाल और भूटान इस दौरान स्वतन्त्र राज्य थे और इस बँटवारे से प्रभावित नहीं हुए। 15 अगस्त 1947 की आधी रात को भारत और पाकिस्तान कानूनी तौर पर दो स्वतन्त्र राष्ट्र बने। लेकिन पाकिस्तान की सत्ता परिवर्तन की रस्में 14 अगस्त को कराची में की गईं ताकि आखिरी ब्रिटिश वाइसराॅय लुइस माउण्टबैटन, करांची और नई दिल्ली दोनों जगह की रस्मों में हिस्सा ले सके। इसलिए पाकिस्तान में स्वतन्त्रता दिवस 14 अगस्त और भारत में 15 अगस्त को मनाया गया। भारत के विभाजन से करोड़ों लोग प्रभावित हुए। विभाजन के दौरान हुई हिंसा में करीब 10 लाख लोग मारे गए और करीब 1.46 करोड़ शरणार्थियों ने अपना घर-बार छोड़कर बहुमत सम्प्रदाय वाले देश में शरण ली। दंगों में कलकत्ता में डायरेक्ट एक्शन डे दंगों में महिलाओं को शिकार बनाया गया था। नोआखली हिंसा के दौरान कई हिंदू महिलाओं का अपहरण कर लिया गया था। 1946 में बिहार में मुसलमानों के नरसंहार के दौरान महिला विरोधी हिंसा हुई। पटना जिले में ही हजारों का अपहरण कर लिया गया। बिहार में हिंदू महिलाओं ने कुएं में कूदकर आत्महत्या कर ली। नवंबर 1946 में, गढ़मुक्तेश्वर शहर में मुस्लिम भीड़ द्वारा हिंदू लड़कियों और औरतों को नग्न, नग्न जुलूस और बलात्कार का शिकार बनाया गया था। अमृतसर में, मुस्लिम ने नग्न महिलाओं की परेड की, जिनके साथ सड़क पर आग लगाने से पहले सार्वजनिक रूप से बलात्कार किया गया था। अधिकांश हिंदू और सिख महिलाओं ने इस डर से भारत वापस जाने से इनकार कर दिया कि उनके परिवार उन्हें कभी स्वीकार नहीं करेंगे। वही डर मुस्लिम महिलाओं मे था लेकिन वे ज्यादातर अपने परिवार द्वारा अच्छी तरह से प्राप्त की गई थीं। अनुमान है कि बंटवारे के दौरान हिंसा में लगभग 14 लाख लोग मारे गए। करीब 2 करोड़ लोग विस्थापित हुए। फिर इन रिफ्यूजी को बसाने का सिलसिला शुरू हुआ। बंटवारे ने भारत और पाकिस्तान के लोगों के मन में एक-दूसरे के प्रति ऐसी नफरत भरी जो आज तक कायम है।
विभाजन की ओर ले जाने वाली घटनाए
जब धार्मिक आधार पर बंगाल का विभाजन हुआ तो यह दावा किया जा सकता है कि भारत के विभाजन के बीज बोए गए थे। व्यापक आक्रोश और विरोध के बाद वायसराय लॉर्ड कर्जन को अपना विचार बदलने के लिए मजबूर होना पड़ा।1916 में लखनऊ में कांग्रेस अधिवेशन में, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और मुस्लिम लीग ने लखनऊ पैक्ट के तहत अभूतपूर्व आपसी सहयोग किया। यह मुस्लिम लीग की चिंताओं से शुरू हुआ था कि ब्रिटिश सरकार की “धार्मिक तटस्थता” नकली थी। यह इस तथ्य के परिणामस्वरूप हुआ कि तुर्की और ब्रिटेन युद्ध में थे। मक्का, मदीना और यरुशलम में पवित्र स्थलों के संरक्षक के रूप में, तुर्की के सुल्तान को इस्लाम के खलीफा या आध्यात्मिक प्रमुख के रूप में मान्यता दी गई थी। उपमहाद्वीप के मुसलमानों के प्रति ब्रिटिश इरादों का अविश्वास इसके परिणामस्वरूप ही बढ़ा। स्वशासन प्राप्त करने के लिए मुस्लिम लीग कांग्रेस में शामिल हो गई। बदले में, कांग्रेस प्रांतीय विधानसभाओं और इंपीरियल विधान परिषद दोनों में मुसलमानों के लिए अलग निर्वाचक मंडल के लिए सहमत हुई। लखनऊ समझौते पर अंततः 1916 में हस्ताक्षर किए गए, हालांकि बाद के वर्षों के दौरान समझौते के पूर्ण प्रभाव सामने आए। उत्तर प्रदेश और बिहार राज्यों के मुस्लिम अभिजात वर्ग के एक छोटे समूह को पंजाब और बंगाल में मुस्लिम बहुसंख्यकों की तुलना में समझौते से अधिक लाभ होने के बारे में सोचा गया था। इस स्पष्ट सच्चाई के बावजूद, समझौते को भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में एक महत्वपूर्ण मोड़ के रूप में सराहा गया। इसने अपने मतभेदों को दूर करते हुए महाद्वीप के दो सबसे बड़े राजनीतिक दलों के सहयोग को देखा

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