उत्तराखंड की क्षेत्रीय भाषाओं को मुख्य धारा में लाने के अनूठे प्रयास की हर तरफ हो रही सराहना।

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“म्योर पहाड़, मेरि पछ्यांण” श्रृंखला के तहत भिन्न सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सफलतापूर्वक आयोजित हो रहे कार्यक्रमों के चर्चित कार्यक्रम “कुमाउनी साक्षात्कार” के 125वां अंक पिछले दिनों उत्तराखंड के वरिष्ठ लोकगायक श्री नैन नाथ रावल के साथ आयोजित किया गया। नैन नाथ जी का कुमाउनी साक्षात्कार प्रसिद्ध कवि-उद्घोषक श्री हेमंत बिष्ट ने लिया। 100वें अंक में 6 जून को प्रसिद्ध इतिहासकार-पर्यावरणविद, “पहाड़” पत्रिका के सम्पादक डॉ. शेखर पाठक का कुमाउनी साक्षात्कार कई बच्चों ने लिया था। 101वें अंक में महाराष्ट्र के राज्यपाल श्री भगत सिंह कोश्यारी का कुमाउनी साक्षात्कार हुआ था।
कोरोना की पहली लहर के दौरान जून 2020 में शुरू किए गए ऑनलाइन कुमाउनी साक्षात्कार “म्योर पहाड़, मेरि पछ्यांण” श्रृंखला के अंतर्गत हर सप्ताह दो या तीन साक्षात्कार आयोजित किए जा रहे हैं। मेहमान के रूप में लेखक, चिकित्सक, कलाकार, वैज्ञानिक, पत्रकार, खिलाड़ी, राजनेता और अन्य क्षेत्रों में नाम कमा चुके चर्चित व्यक्तित्व अपनी प्रेरणादायक जीवनयात्रा बताते हैं।


कोरोना की पहली लहर के दौरान जून 2020 में शुरू किए गए ऑनलाइन कुमाउनी साक्षात्कार “म्योर पहाड़, मेरि पछ्यांण” श्रृंखला के अंतर्गत हर सप्ताह दो या तीन साक्षात्कार आयोजित किए जा रहे हैं। मेहमान के रूप में लेखक, चिकित्सक, कलाकार, वैज्ञानिक, पत्रकार, खिलाड़ी, राजनेता और अन्य क्षेत्रों में नाम कमा चुके चर्चित व्यक्तित्व अपनी प्रेरणादायक जीवनयात्रा बताते हैं।
साक्षात्कारकर्ता के रूप में वरिष्ठ पत्रकार, साहित्यकार और युवाओं की टीम के सदस्य होते हैं। जिन लोगों का साक्षात्कार आयोजित किया जा चुका है, उनमें कुछ अन्य नाम हैं – यशोधर मठपाल, रमेश चन्द्र शाह, शेखर जोशी, बसन्ती बिष्ट, अनूप साह, लवराज धर्मशक्तू, अनूप साह, हरीश रावत, देवेन मेवाड़ी, चारु तिवारी, मनीष कसनियाल, पुष्पेश पन्त, राधा बहन, डॉ. हेम चन्द्र पांडे, युगल जोशी, कैलास लोहनी, गोविंद पन्त ‘राजू’, अजय टम्टा, हेमन्त पांडे, विमल पुनेड़ा, आरजे काव्य, पवन पहाड़ी, डॉ. सरस्वती कोहली आदि। पूरे विश्व में रहने वाले उत्तराखंड के प्रवासियों के बीच यह श्रृंखला बहुत प्रसिद्ध हो चुकी है।
“म्योर पहाड़, मेरि पछ्यांण” वार्तालाप श्रृंखला के आयोजक हेम पन्त ने बताया कि कार्यक्रम को प्रसारण के दौरान औसतन 200 से अधिक लोग लाइव देखते हैं। अब तक प्रसारित सभी लाइव कार्यक्रमों को 35 लाख से अधिक बार देखा जा चुका है।
कोरोना की दूसरी लहर के दौरान मई 2021 में पूरे महीने कोरोना वारियर्स से बातचीत रखी गई जिसमें बालरोग, श्वांसरोग, हृदयरोग, नेत्ररोग, मानसिकरोग विशेषज्ञ और पुलिसकर्मी-समाजसेवियों ने कुमाउनी बोली में कोरोना से सम्बंधित सुझाव दिए।
“म्योर पहाड़, मेरि पछ्यांण” वार्तालाप श्रृंखला के आयोजक हेम पन्त ने बताया कि कार्यक्रम को प्रसारण के दौरान औसतन 200 से अधिक लोग लाइव देखते हैं। अब तक प्रसारित सभी लाइव कार्यक्रमों को 35 लाख से अधिक बार देखा जा चुका है। इस कार्यक्रम को फेसबुक और यूट्यूब पर लगातार संचालित करने में हल्द्वानी निवासी हिमांशु पाठक सहित लगभग 25 लोगों की टीम है, जिनकी सक्रिय भागीदारी से कार्यक्रम अपनी एक खास पहचान बना चुका है।
जुलाई के महीने से “ज्यौला मुरुलि – बोलियों की जुगलबंदी” नाम से एक और वार्तालाप श्रृंखला शुरू की गई। इस खास कुमाउनी-गढ़वाली मिश्रित बातचीत के दो अंकों में वरिष्ठ पत्रकार राजीव लोचन साह ने लोकगायक-कवि नरेंद्र सिंह नेगी का साक्षात्कार लिया। उत्तराखंड की क्षेत्रीय बोलियों को आगे बढ़ाने के इस अनूठे सामूहिक प्रयास को दर्शकों की काफी सराहना मिली।
व्यक्तिगत साक्षात्कार के अलावा “म्योर पहाड़, मेरि पछ्यांण” श्रृंखला के अंतर्गत दिवंगत विभूतियों के योगदान और जीवनयात्रा पर “हमार पुरुख” नाम से भी कुमाउनी पैनल चर्चा के 11 अंक आयोजित हो चुके हैं। “हमार पुरुख” के अंतर्गत अब तक पं. नैन सिंह रावत, डॉ. डीडी पन्त, शैलेश मटियानी, मोहन उप्रेती, प्रो. के. एस. वल्दिया, गौरा पन्त “शिवानी”, शेर दा अनपढ़, डॉ. हेम चन्द्र जोशी, चंद्रशेखर लोहुमी, हीरा सिंह राणा, बंशीधर पाठक ‘जिज्ञासु’ पर कुमाउनी वार्ता हो चुकी है।
जुलाई के महीने से “ज्यौला मुरुलि – बोलियों की जुगलबंदी” नाम से एक और वार्तालाप श्रृंखला शुरू की गई। इस खास कुमाउनी-गढ़वाली मिश्रित बातचीत के दो अंकों में वरिष्ठ पत्रकार राजीव लोचन साह ने लोकगायक-कवि नरेंद्र सिंह नेगी का साक्षात्कार लिया। उत्तराखंड की क्षेत्रीय बोलियों को आगे बढ़ाने के इस अनूठे सामूहिक प्रयास को दर्शकों की काफी सराहना मिली।
ऑनलाइन बातचीत की इन श्रृंखलाओं ने खासतौर पर युवा पीढ़ी को अपनी क्षेत्रीय बोलियों की ओर आकर्षित किया है। निरंतरता के साथ आयोजित किए जा रहे कार्यक्रमों के कारण प्रवासियों और उत्तराखंड में रहने वाले लोगों के बीच अपनी बोली-भाषा को बचा लेने की नई उम्मीद जगी है। टीम के सदस्यों ने बताया कि आगे भी इस श्रृंखला के अंतर्गत विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट कार्य कर रहे लोगों का साक्षात्कार लिया जाएगा।

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