लोकसभा चुनाव के नतीजे को लेकर उत्तराखंड कांग्रेस के दो बड़े नेता आमने-सामने आ गए हैं। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा जहां हार के कारण के लिए बड़े नेताओं को एक तरफ से जिम्मेदार बता रहे हैं जिन्होंने चुनाव लड़ने से मना कर दिया। तो वहीं दूसरी तरफ पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत का कहना है बड़े नेता भी चुनाव एक तरफ से लड़ते तो हार होनी ही थी। बस हार का अंतर कम होता।
उत्तराखंड कांग्रेस में लोकसभा चुनाव को लेकर मिली हार पर अभी तक समीक्षा भी नहीं हुई है। लेकिन कांग्रेस के बड़े नेता अपने बयानों के जरिए एक दूसरे पर वार पटवार हार को लेकर करते हुए भी नजर आ रहे हैं। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा ने लोकसभा चुनाव में मिली हार पर चुनाव के नतीजे के तुरंत बाद बयान दिया था। जिसमें उन्होंने कहा था कि अगर कांग्रेस के बड़े नेता चुनाव लड़े होते तो नतीजे लोकसभा चुनाव के कुछ और हो सकते थे।
यानी उनका इशारा पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य के साथ प्रीतम सिंह जो कि कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष की भूमिका भी अदा कर चुके हैं उनकी तरफ था। क्योंकि तीनों बड़े नेताओं ने चुनाव लड़ने से मना कर दिया था।
हरदा और करन माहरा आमने-सामने
कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष के बयान पर पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत की प्रतिक्रिया सामने आई है। हरीश रावत का कहना है कि अगर बड़े नेता भी चुनावी मैदान में होते तो हर का अंतर केवल काम किया जा सकता था। जहां पर डेढ़ या 2 लाख से हार मिली है वहां पर 50 हजार का अंतर कम किया जा सकता था। हरीश रावत के बयान से साफ है कि बड़े नेता चुनाव लड़ते तो हार के अंतर कम होता,और कुछ नहीं होता। मतलब हरदा के बयान से अंदाजा लगाया जा सकता है कि जीत तब भी कांग्रेस की किसी सीट पर नहीं होती।
बड़े नेता चुनाव लड़ते तो उत्तराखंड में मिलती चार सीट
हरदा के बयान पर कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष करन महारा का कहना है कि वो अपने पुराने बयान पर कायम है। वो आज भी इस बात को कह रहे हैं कि लोकसभा चुनाव में अगर बड़े नेता चुनाव लड़े होते तो कांग्रेस की उत्तराखंड में चार सीट मिलती। बीजेपी को केवल एक सीट मिलती।