पूर्व सीएम हरदा आजकल पूरे राजनीतिक मूड में हैं, जिसका असर उनके व्यवहार में भी दिख रहा है, वहीं अब हरदा ने दल- बदल को लेकर अपनी बात रखते हुए दल-बदल के कारणों को साफ किया है। उन्होंने कहा कि दल-बदल के 3 कारण हो सकते हैं, पहला वैचारिक कारण, दूसरा पारिवारिक कारण और तीसरा कारण आर्थिक या पदों का प्रलोभन।
हरदा का कहना है कि उत्तराखंड में कुछ लोगों ने पारिवारिक कारणों से, कुछ ने वैयक्तिक मतभेदों के बहुत गहरे होने के कारण, मगर दो-तीन को छोड़कर अधिकांश लोगों ने धन व पद के प्रलोभन के कारण दल-बदल किया और इस बात के गवाह कई लोग हैं, जिनको ऐसा प्रलोभन भी दिया गया जो धन व पद प्रलोभन के आधार पर दलबदल है, वो सामाजिक, राजनैतिक अपराध है, संसदीय लोकतंत्र पर कलंक है।उन्होंने इस बात को साफ करते हए कहा कि ऐसा अपराध जिस दल से दल-बदल होता है, वो दल तो केवल एक बार रोता है और जिस दिन में वो लोग जाते हैं, वो दल कई-कई बार रोता है और अभी तो भाजपाई लोग केवल रो रहे हैं और देखिएगा आगे आने वाले दिनों में कुछ खांठी के भाजपाई, संघी सब खून के आंसू रोएंगे। कांग्रेस तो उदार पार्टी है, यदि कोई अपने अपराध के लिए क्षमा मांगे तो क्षमा भी किया जा सकता है, जो अपने पारिवारिक कारणों या वैचारिक मतभेद के कारण से गये हैं, उनके साथ वैचारिक मतभेदों को पाटा जा सकता है।वहीं भाजपा पर तंज कसते हए हरदा ने कहा कि मगर भाजपा की स्थिति तो यह है, जब बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से खाएं! जो पार्टी अपने अनुशासन की प्रशंसा करते नहीं अघाती थी, आज चौराहे पर उनके अनुशासन की धज्जियां उड़ रही हैं, संघ की शिक्षा की भी धज्जियां उड़ रही हैं, अभी तो शुरुआत है देखिए आगे क्या होता है! मगर मैं उत्तराखंड से भी कहना चाहता हूंँ कि ये जो “बोया पेड़ बबूल का, आम कहां से खाएं” वाली कहावत है, ये राज्य और समाज पर भी लागू होती है। यदि आप ऐसे आचरण के लिए कथित जनप्रतिनिधियों को दंडित नहीं करेंगे तो उसका दुष्प्रभाव, राज्य की राजनीति में अस्थिरता लाएगा और अस्थिरता का दुष्प्रभाव का राज्य के विकास को भुगतना पड़ता है, जनकल्याण को भुगतना पड़ता है और आज उत्तराखंड वही भुगत रहा है।