
उत्तराखंड में तबाही को रोकने का एक सीक्रेट फॉर्मूला है। एक ऐसा राज़ जो सिर्फ हमारे दादा परदादा को पता था। आज इस विडियो में हम आपको उसी सीक्रेट फॉर्मूला का बारे में बताने जा रहे हैं जो पहाड़ों में करोडों लोगों की जिंदगी बचा सकता है। चलिए जानते है उनके बारे में।
उत्तराखंड में आपदा को रोकने का एक सीक्रेट फॉर्मूला
इस मानसून आपने हिमाचल और उत्तराखंड की ये तस्वीरें तो खूब देखी होंगी। टूटते हुए घर, बहती हुई गाड़ियां, और खौफ में जीते लोग। इसे क्या कहा जाता हैं प्राकृतिक आपदा, कुदरत का कहर। लेकिन इस तबाही के असली मुजरिम प्रकृति नहीं हम खुद हैं।
दरअसल हम जिस डाल पर बैठे हैं, उसी को काट रहे हैं। दैनिक जागरण में छपे एक आर्टिकल में
हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल यूनिवर्सिटी के जियोलॉजिस्ट, डॉक्टर एम.पी.एस. बिष्ट ने लिखा है की हमसे बड़ा कालिदास कोई नहीं है।
एक ऐसा राज़ जो सिर्फ हमारे दादा परदादा को पता था
अब आप सोच रहे होंगे की ऐसा क्यों तो चलिए आपको आसान भाषा में समझाते हैं। हमने अपने घर पहाड़ की ऊंचाई पर तो बना लिए लेकिन फिर हम उसी पहाड़ को नीचे से काटकर सड़कें बनाने में जुट गए। नतीजा क्या होगा पहाड़ गिरेगा
बस, यही हम कर रहे हैं। पहाड़ों का एक नियम होता है, एक साइंस होती है। हमारे पुरखे, हमारे दादा-परदादा इस साइंस को समझते थे। उनके पास ऐसी आपदाओं से बचने का एक सीक्रेट फार्मूला था। वो है पिरामिड फार्मूला।
क्या है पिरामिड फार्मूला?
पिरामिड फार्मूला बहुत ही सिंपल सा फार्मूला है। पहले पहाड़ का सबसे ऊपरी हिस्सा, लगभग 25%, घना जंगल होता था। ये जंगल बारिश के पानी के लिए एक नैचुरल स्पंज का काम करता था और मिट्टी को बहने से रोकता था। उसके नीचे का 10% हिस्सा जानवरों के चरने के लिए, यानी चारागाह के लिए छोड़ दिया जाता था। फिर पथरीली ढलान होती थी। यहां खेती नहीं की जा सकती थी इसलिए लोग वहां अपने घर बना लेते थे जो काफी सेफ थे। सबसे नीचे, समतल ज़मीन पर होती थी सिंचित खेती।
ये काम करते थे हमारे पूर्वज
सबसे जरूरी चीज हमारे पूर्वज ये करते थे कि वो नदी के किनारे एक बहुत बड़ा इलाका खाली छोड़ा देते थे। जिसे कहते हैं ‘फ्लड प्लेन’। ताकि जब नदी ऊफान में आए, तो उसका पानी वहां फैल जाए और किसी का घर-बार ना बहे। लेकिन अब हमने क्या किया जंगल काट दिए। नदी के ठीक मुहाने पर, उसके फ्लड प्लेन में फाइव स्टार होटल और रिसॉर्ट बना दिए। जहां घर नहीं बनने चाहिए थे, वहां बड़ी-बड़ी बिल्डिंगें खड़ी कर दीं। तो जब नदी अपना रास्ता वापस लेगी तो ऐसी सब जगहों का हाल धराली और देहरादून की तरह ही होगा।
उत्तराखंड में चल रहे चार बड़े प्रोजेक्ट
हैरानी वाली बात तो ये है कि हमारे राज्य उत्तराखंड में चार-चार बड़े प्रोजेक्ट चल रहे हैं। ऑल वेदर रोड, रेल लाइन, हवाई पट्टी, और रोपवे। चार अलग-अलग विभाग। अगल-अगल प्लान पर काम कर रहे हैं, और अलग अलग तरीके से।
जिसके चलते भी हमारे नाजुक पहाड़ों से भूस्खलन, बाढ़, घरों में दरारें शहरों का डूबना जैसी खबरें लगातार आ रही हैं।जियोलॉजिस्ट, डॉक्टर एम.पी.एस. बिष्ट का कहना है कि क्या ऐसा नहीं हो सकता की ये चारों विभाग एक साथ बैठकर ये तय करें कि पहाड़ी राज्यों की आबादी के हिसाब से कहां कितने परिवहन की जरूर है।
पहाड़ों को नोचने पर तुले है लोग
वहां बिना प्रकृति को नुकसान पहुंचाए उस हिसाब से काम करें। जहां सड़कें नहीं बन सकती हैं वहां हवाई और रेल मार्ग ले जाएं। लेकिन यहां तो सब के सब पहाड़ों को नोचने खरोड़ने पर तुले हैं। आज सारे राज्य में इतनी तबाही के बाद सवाल ये है कि हम अपनी गलतियों से कब सीखेंगे। कब हिमालय के लिए एक अलग हिमालय नीति बन पाएगी। कब हम मैदानों में डेवलपमेंट का फॉर्मूला पहाड़ों पर आजमाना बंद किया जाएगा