कालाढूंगी।यहां में अब चुनाव बेहद दिलचस्प हो गया है।क्षेत्रफल की दृष्टि से हल्द्वानी से रामनगर के हिस्से तक लगी कालाढूंगी विधानसभा में लंबे समय से मंत्री बंशीधर भगत का राज रहा है या यह कहें के अक्षर उनके भाग्य में यह सीट उनके नाम रही है ऐसा कई बार खुद बंशीधर भगत के मुंह से सुना गया है, कि जीत वह अपने भाग्य में लिखा के लाए हैं, क्योंकि पिछले सियासी हालात और उनसे निकलकर कालाढूंगी सीट पर अपना कब्जा जमाए बंशीधर भगत किन्हीं किन्हीं परिस्थितियों में यह सीट अपने नाम कर चुके हैं। इस बार भी कांग्रेस द्वारा दूसरी सूची में महेंद्र पाल को कालाढूंगी से टिकट दिए जाने की सूचना के बाद ऐसा लगा कि यह सीट फिर से बंशीधर भगत की झोली में चली गई। लेकिन एकाएक समीकरण बदल गए, न सिर्फ कांग्रेस ने टिकट बदलकर कड़ी टक्कर देने वाले महेश शर्मा को टिकट दे दिया, बल्कि भाजपा के ही पूर्व दर्जा राज्यमंत्री और प्रदेश महामंत्री रह चुके गजराज बिष्ट ने भी भाजपा से बगावत शुरू कर दी, रातों-रात बदले सियासी समीकरण के बाद बंशीधर भगत की यह आसान सीट, अब बेहद कठिन होती जा रही है।2017 के विधानसभा चुनाव में नजर डालें 1 लाख 47 हजार 687 मतदाताओं वाली कालाढूंगी विधानसभा में 68.93 फ़ीसदी मतदान हुआ जिसमें 100681 वोट पड़े। भाजपा के प्रत्याशी बंशीधर भगत को 45704 यानी 44. 9 फ़ीसदी वोट मिले,
इसके अलावा कांग्रेस के प्रकाश जोशी को 25107 वोट मिले और वही कांग्रेस से बागी हुए महेश शर्मा को 20,214 वोट, मिले इसके अलावा हरेंद्र सिंह दरमवाल को 4294 वोट मिले और बीएसपी के वरुण प्रपात भाकुनी को 2384 वोट मिले। पिछले इलेक्शन में भी कांग्रेस की बगावत ने भगत की राह आसान की थी जबकि कांग्रेस प्रत्याशी और कांग्रेस के बागी हुए दोनों प्रत्याशियों की बोट विधायक बंशीधर भगत से मिले वोटों से अधिक है, लेकिन बगावत ने फिर से एक बार सीट भाजपा की झोली में डाली।
विधानसभा चुनाव 2022 में भाजपा के लिए 2017 जैसे हालात नहीं है यहां कांग्रेस से अब महेश शर्मा को दावेदार बनाया गया है, जबकि भाजपा से टिकट की दावेदारी कर रहे गजराज बिष्ट ने अपने नामांकन की पेशकश की है, लिहाजा भाजपा में अब सब कुछ ठीक नहीं है। और ना ही भाजपा द्वारा कालाढूंगी या अन्य बगावती सीटों पर भी डैमेज कंट्रोल करने का कोई काम नहीं किया गया है। भाजपा के विधायक और सरकार में मंत्री रहे बंशीधर भगत जिन सियासी समीकरणों के उलटफेर होने से इस सीट को अपनी झोली में करते आए हैं। आज वही समीकरण उनके विपरीत हो चले हैं, क्या बंशीधर भगत का मिथक टूटेगा यह कह पाना मुश्किल है। लेकिन इतना जरूर है कि वर्तमान बदले सियासी समीकरणों में भगत की राह जरूर मुश्किल कर दी है।