दिल्ली। सर्वाइकल कैंसर की पहचान आने वाले दिनों में मूत्र जांच से भी हो सकेगी। इस जांच के लिए एम्स में शोध चल रहा है। डॉ. ज्योति इस दिशा में काम कर रही है। उम्मीद है कि इस तकनीक भी जल्द जांच की सुविधा उपलब्ध होगी। फिलहाल सर्वाइकल कैंसर के लिए स्वदेशी जांच किट तैयार है।
आईसीएमआर, राष्ट्रीय प्रजनन एवं बाल स्वास्थ्य अनुसंधान संस्थान और राष्ट्रीय कैंसर रोकथाम एवं अनुसंधान संस्थान ने इसे विकसित किया है। शुक्रवार को एम्स के निदेशक डॉ. एम श्रीनिवास ने एम्स में इस किट के परीक्षण की शुरूआत की। एम्स सहित देश के तीन केंद्रों पर इसकी जांच होगी। किट की सटीकता जांचने के लिए 1200 सैंपल मिले हैं। अगले तीन महीनों तक स्वदेशी किट पर इन सैंपलों की जांच ग्रुप बनाकर की जाएगी। देखा जाएगा कि इसके परिणाम कितने बेहतर हैं।
एम्स के स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग की पूर्व प्रमुख डॉ. नीरजा भाटला ने बताया कि मौजूदा समय में उपलब्ध जांच से टेस्ट करने में पूरे दिन का समय लग जाता है। यह महंगा होने के साथ प्रमुख जगहों पर ही उपलब्ध है। ऐसे में इसकी मदद से सभी महिलाओं की जांच संभव नहीं है। इसी को देखते हुए स्वदेशी किट तैयार की गई है। यह सस्ती होने के साथ आसानी से सुलभ होगी।
इस किट की सटीकता की जांच के लिए अलग तीन माह तक अध्ययन किया जाएगा। हम उम्मीद कर रहे हैं कि परिणाम बेहतर आएंगे। शोध पूरा होने के बाद इसे पूरे देश में उपलब्ध करवा दिया जाएगा। इसकी मदद से कोविड की तरह बड़े स्तर पर सभी महिलाओं में सर्वाइकल कैंसर की जांच हो सकेगी। इस किट को विश्वस्तरीय मानकों के आधार पर तैयार किया गया है।
परीक्षण में पास होने के बाद स्वदेशी जांच किट को भारत सहित दुनिया के गरीब देशों को उपलब्ध करवाया जाएगा। विशेषज्ञों का कहना है कि लेटिन अमेरिका सहित दुनिया के गरीब देशों में सर्वाइकल कैंसर से हर साल बड़ी संख्या में महिलाएं दम तोड़ रही है। इसकी रोकथाम के लिए भारत बड़े स्तर में मदद कर सकता है।
स्वदेशी किट से एकल सैंपल के आधार पर महज 90 मिनट में जांच हो जाएगी। मौजूदा समय में जांच के लिए पूरे दिन का समय लग जाता है। डॉक्टरों का कहना है कि एम्स में सर्वाइकल कैंसर की जांच के लिए 90 सैंपल का बैच बनाया जाता है। उसके बाद सभी सैंपलों की जांच एक साथ होती है।
स्तन कैंसर के बाद महिलाओं में होने वाला दूसरा सबसे बड़ा कैंसर सर्वाइकल है। इसके कारण हर साल देश में 77 हजार से अधिक महिलाएं दम तोड़ देती है। विशेषज्ञों का कहना है कि 35 और 45 साल की उम्र की महिलाओं को दो बार जांच करवानीं चाहिए। ताकि इस बीमारी को आसानी से पकड़ा जा सके। ऐसा होने पर कैंसर के ठीक होने की संभावना बढ़ जाती है। देश में हर साल करीब 1.2 लाख महिलाओं में इस कैंसर का पता चलता है।
स्वदेशी किट के परीक्षण के दौरान सैंपल की जांच करते हुए देखा जाएगा कि कौन सी जांच बेहतर है। महिलाओं में यह रोग क्यों हो रहा है। परिणाम मिलने के बाद आने वाले दिनों में तकनीक में और बदलाव होगा। कारकों की पहचान कर वैक्सीन बनाने की दिशा में सुधार किया जाएगा। मौजूदा समय में विदेशी कंपनी के साथ एक स्वदेशी कंपनी का टीका भी उपलब्ध है। इसके अलावा आने वाले दिनों में कुछ और वैक्सीन भी को लेकर भी काम चल रहा है।