हल्दुचौड़
उत्तराखंड की धरती में पैदा हुए कुछ लोगों में देश के विकास के प्रति अगाध आस्था रही है। इन्हीं में से एक थे, विकास पुरूष के नाम से नवाजे गए एनडी तिवारी। नैनीताल के बल्यूटी में पैदा हुए एक बालक ने उत्तराखंड, यूपी, दिल्ली व देश के तमाम प्रान्तों में विकास का बीज बोया। जी हां हम बात कर रहे हैं। विकास पुरूष नारायण दत्त तिवारी उर्फ नरैण की, जिन्होंने विकास के नाम पर यहां पर जो पौधा रोपा, उसका फल आज हजारों-लाखों को मिल रहा है। उन्हें सिडकुल से नोएडा बसाने का श्रेय जाता है। उत्तर प्रदेश के सीएम बनने के बाद उन्होंने न्यू ओखला इंडसट्रियल डेवलपमेंट अथारिटी(नोएडा) बनाने का श्रेय जाता है। 18 अक्टूबर 1925 को नैनीताल के बल्यूटी में पैदा हुए नरैण (नारायण दत्त तिवारी) के पिता का नाम पूर्णानंद तिवारी था। आंरभिक शिक्षा के बाद उनकी उच्च शिक्षा इलाहाबाद विश्वविद्यालय में हुई। सियासत का जो बीज उनमें इलाहाबाद विष्वविद्यालय में पनपा, वह आगे अंकुरित होकर वट वृक्ष में तब्दील हो गया। देश आजाद होने के बाद 1952 में हुए उत्तर प्रदेश के पहले चुनाव में नैनीताल विधानसभा में जो एण्ट्री मारी, फिर उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। विधायक बनने के बाद उन्होंने अपनी राजनीतिक पहुंच का फायदा यहां पर विकास की नींव का पत्थर रखकर किया। उन्होंने डेनमार्क में दुग्ध उद्योग की बारीकियों से रूबरू होकर तराई क्षेत्र में कापरेटिव दुग्ध डेयरी का कान्सेप्ट पेश किया, जो आज भी फल-फूल रहा है। इसके बाद उन्होंने विभिन्न विधानसभा सीटों व संसदीय सीटों का प्रतिनिधित्व किया। काशीपुर के विधायक रहने के दौरान उन्होंने काशीपुर के आसपास विकास की जो लकीर खींची, वह यहां के विकास के लिए मील का पत्थर साबित हुई। 1980 में नैनीताल का सांसद चुने जाने के बाद उन्होंने पहाड़ के विकास के लिए अनेक कार्यों को अंजाम दिया। तिवारी ने लालकुंआ क्षेत्र में संेचुरी मिल, काठगोदाम में एचएमटी, हल्दूचौड में सोयाबीन फैक्ट्री, बेरीपड़ाव में जलपैक सहित तमाम फैक्ट्रियों की नींव रखी। इसके अलावा उन्होंने भीमताल, अल्मोड़ा व पिथौरागढ़ में मैग्नेसाइड फैक्ट्री की स्थापान की। इधर उत्तराखंड बनने के बाद उन्होंने सिडकुल की स्थापना में अहम रोल निभाया। आज सिडकुल क्षेत्र में स्थित फैक्ट्रियों में हजारों नौजवानेां का कार्य मिला है। विकास में उनके योगदान के लिए उन्हें विकास पुरूष की उपाधि दी गई है।
मात्र 800 वोटों की हार ने रोकी पीएम बनने की राह
हल्द्वानी। सियासत में तमाम उतार चढ़ाव देख चुके और राष्ट्रीय राजनीति मेें अहम स्थान व योग्यता रखने के बावजूद एनडी तिवारी के जीवन में जब प्रधानमंत्री बनने का मौका आया तो सियासत में पदार्पण कर रहे बलराज पासी से पराजित होकर यह मौका गंवाना पड़ा। 21 मई 1991 को चुनाव प्रचार के दौरान राजीव गांधी की हत्या होने के बाद कांग्रेस चुनाव जीती। इधर तिवारी की हार के बाद पहाड़ को पहला पीएम से वंचित होना पड़ा। कांग्रेस में लालबहादुर शास्त्री के बाद एक बार फिर से गैर गांधी का प्रधानमंत्री बनना तय था, और इसके लिए तिवारी की सर्व स्वीकार्यता उनके हक में थी लेकिन तिवारी के लोकसभा चुनाव में हार के बाद इस दौड़ में शामिल न होने के बावजूद पीवी नरसिंह राव अप्रत्याषित रूप से प्रधानमंत्री बन गए।