




अल्मोड़ा। उत्तराखंड के पर्वतीय जिलों में स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी एक गंभीर समस्या बनी हुई है। पंडित हर गोविंद पंत जिला चिकित्सालय, अल्मोड़ा, जो कि राजकीय मेडिकल कॉलेज से संबद्ध एक प्रमुख अस्पताल है, वहां भी हालात बदतर हैं।
नाक, कान और गले (ईएनटी) की सर्जरी के लिए योग्य विशेषज्ञ और अत्याधुनिक मशीनें उपलब्ध होने के बावजूद, पिछले 16 महीनों से एक भी ऑपरेशन नहीं हुआ।
इस लापरवाही का सबसे ज्यादा खामियाजा गरीब मरीजों को उठाना पड़ रहा है, जिन्हें मजबूरी में हल्द्वानी, देहरादून या अन्य बड़े शहरों में महंगा इलाज करवाने जाना पड़ रहा है।
चार महीने से विशेषज्ञ मौजूद, फिर भी ऑपरेशन बंद
वर्तमान में अस्पताल में दो ईएनटी विशेषज्ञ कार्यरत हैं—डॉ. एच.सी. गड़कोटी और डॉ. सोनाली जोशी।
डॉ. गड़कोटी प्रशासनिक जिम्मेदारियों के साथ ओपीडी संभाल रहे हैं।
डॉ. सोनाली जोशी की नियुक्ति चार महीने पहले हुई थी और वे एंडोस्कोपिक (दूरबीन विधि) सर्जरी करने में दक्ष हैं।
इसके बावजूद, अस्पताल प्रशासन की निष्क्रियता और उदासीनता के कारण अभी तक एक भी ऑपरेशन नहीं हुआ।
2023 के बाद से ऑपरेशन ठप – आखिर क्यों?
अल्मोड़ा अस्पताल में आखिरी ईएनटी सर्जरी 31 अक्टूबर 2023 को हुई थी। उसके बाद से आज तक एक भी ऑपरेशन नहीं किया गया, जबकि अब सभी संसाधन उपलब्ध हैं।
✅ डॉक्टर हैं
✅ आधुनिक उपकरण हैं
✅ जरूरी संसाधन हैं
❌ फिर भी ऑपरेशन नहीं हो रहे!
कारण क्या है?
अस्पताल प्रबंधन की लापरवाही
मरीजों को ऑपरेशन की सुविधा की जानकारी नहीं दी जा रही
ईएनटी वार्ड को ठीक से संचालित नहीं किया जा रहा
क्या मरीजों को सिर्फ इसलिए परेशान किया जा रहा है ताकि वे निजी अस्पतालों में जाकर महंगा इलाज करवाने को मजबूर हों?
नर्सिंग स्टाफ की लापरवाही ने बढ़ाई मरीजों की परेशानी
अस्पताल में नर्सिंग स्टाफ की लापरवाही से मरीजों को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।
मरीजों को समय पर दवाएं नहीं दी जातीं।
गंभीर मरीजों की अनदेखी की जा रही है।
मरीजों और उनके परिजनों को तमीज से जवाब तक नहीं दिया जाता।
जब अस्पताल में डॉक्टर, उपकरण और संसाधन मौजूद हैं, तो मरीजों को राहत क्यों नहीं मिल रही?
संजय पाण्डे के प्रयासों से बहाल हो रही सुविधाएं, लेकिन प्रशासन सुस्त
सामाजिक कार्यकर्ता संजय पाण्डे लगातार अल्मोड़ा जिला अस्पताल की चिकित्सा सेवाओं में सुधार के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
✅ उनके प्रयासों से अस्पताल में एमआरआई, सिटी स्कैन और ऑडियोमेट्री जैसी सुविधाएं फिर से चालू हुई हैं।
✅ अब वे लेप्रोस्कोपिक सर्जरी मशीन लाने के लिए प्रशासन पर लगातार दबाव बना रहे हैं।
लेकिन जब तक अस्पताल प्रशासन ईएनटी सर्जरी शुरू करने का ठोस निर्णय नहीं लेता, तब तक मरीजों को राहत नहीं मिलेगी।
संक्रमण रोकने वाली सेनेटाइजर मशीन भी बंद
अस्पताल में संक्रमण रोकने के लिए जरूरी सेनेटाइजर मशीनें बंद पड़ी हैं।
हर दिन सैकड़ों मरीज अस्पताल आते हैं।
लेकिन संक्रमण से बचाव के लिए जरूरी उपाय नहीं किए जा रहे हैं।
क्या प्रशासन किसी बड़ी त्रासदी का इंतजार कर रहा है?
संजय पाण्डे ने मुख्यमंत्री हेल्पलाइन में की शिकायत, जल्द हो सकती है कार्रवाई
संजय पाण्डे ने इस घोर लापरवाही के खिलाफ मुख्यमंत्री हेल्पलाइन में शिकायत दर्ज कराई है, जिसका अनुरोध/शिकायत क्रमांक CMHL-032025-8-713954 है।
उन्होंने कहा—
“जब अस्पताल में योग्य डॉक्टर, आधुनिक मशीनें और सभी जरूरी संसाधन उपलब्ध हैं, तो मरीजों को बाहर क्यों जाना पड़े? यह सिर्फ लापरवाही नहीं, बल्कि जनता के स्वास्थ्य के प्रति प्रशासन की गंभीर उदासीनता है।”
संजय पाण्डे की मांगें:
✅ ईएनटी सर्जरी की तिथि शीघ्र घोषित की जाए।
✅ नर्सिंग स्टाफ की लापरवाही पर सख्त कार्रवाई हो।
✅ सभी आवश्यक सुविधाओं को तुरंत चालू किया जाए।
बेडशीट कलर कोडिंग नियमों का भी नहीं हो रहा पालन
प्रदेश के सभी जिला अस्पतालों और मेडिकल कॉलेजों में हर दिन एक विशेष रंग की बेडशीट बिछाने के आदेश दिए गए थे, जिससे साफ-सफाई बनी रहे।
लेकिन अल्मोड़ा जिला अस्पताल और महिला चिकित्सालय में इस नियम का पालन नहीं हो रहा।
दिन बेडशीट का रंग
सोमवार सफेद
मंगलवार गुलाबी
बुधवार हरा
गुरुवार पीला
शुक्रवार बैंगनी
शनिवार नीला
रविवार हल्का ग्रे
यह नियम क्यों लागू नहीं हो रहे? क्या अस्पताल प्रशासन को मरीजों की सुविधा की कोई परवाह नहीं?
अब सवाल यह है – कब सुधरेगा प्रशासन?
जब अस्पताल में योग्य डॉक्टर, आधुनिक उपकरण और सभी आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध हैं, तो मरीजों को इलाज के लिए मजबूरन बाहर क्यों जाना पड़ रहा है?
क्या प्रशासन को जनता की पीड़ा का एहसास है?
क्या सरकार की स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार की बातें सिर्फ कागजों तक सीमित हैं?
अब देखना यह होगा कि मुख्यमंत्री हेल्पलाइन में शिकायत दर्ज होने और स्वास्थ्य महानिदेशक से वार्ता के बाद प्रशासन कितनी जल्दी कार्रवाई करता है, या फिर मरीजों को इसी तरह परेशान होना पड़ेगा।