
Happy Birthday Nainital: आज यानी 18 नवंबर को नैनीताल का जन्मदिन है। 18 नवंबर 1841 में पी. बैरेन ने इसकी खोज की थी। आज ये 84 साल का हो गया है। लेकिन क्या होगा अगर हम आपको ये कहें कि ये नैनीताल के आखिरी कुछ जन्मदिनों में से एक हो। जी हां, आपने सही सुना।
साइंटिस्ट्स की मानें तो ये खूबसूरत शहर, जिसे हम सरोवर नगरी कहते हैं, अपनी बर्बादी से बस कुछ ही कदम दूर है। आज नैनीताल के जन्मदिन पर चलिए जानते है कि कैसे ये स्वर्ग जैसी जगह तबाही की कगार पर आ गई है।

Happy Birthday Nainital: पुराना नैनीताल अब सिर्फ यादों और कहानियों में जिंदा
पुराना नैनीताल अब सिर्फ यादों और कहानियों में ज़िंदा है। एक ऐसा नैनीताल, जहां गाड़ियों का शोर नहीं, चिड़ियों का संगीत था। जहां हवा में धुएं की नहीं, देवदार के पेड़ों की खुशबू हुआ करती थी। जहां इस झील को मानसरोवर के जितना वपित्र माना जाता था।
राजधानी से बना स्कूली शिक्षा का गढ़
उस ज़माने का नैनीताल(nainital birthday) लगता था मानो इंग्लैंड का कोई कोना हो। मल्लीताल का नज़ारा तो ऐसा था कि लोग कहते थे हम लंदन आ गए हैं। चारों तरफ ब्रिटिश आर्किटेक्चर, खूबसूरत चर्च और पत्थर की बनी इमारतें। वाकई, उस ज़माने का नैनीताल किसी विदेशी शहर से कम नहीं था। फिर धीरे-धीरे वक्त बदला, नैनीताल भी बदलता रहा। ब्रिटिशों की ग्रीश्मकालीन राजधानी से भारत में स्कूली शिक्षा का गढ़ बन गया।

नैनीताल ने देखे कई उतार चढ़ाव
देश के कोने-कोने से लोग यहां आने लगे। शहर बदलने लगा, फैलने लगा। नैनीताल ने इस सफर में कई उतार चढ़ाव देखे। भयानक भूस्खलन देखा, मालरोड़ को सबसे महंगी रोड़ बनते देखा, और मानसरोवर जितनी पवित्र माने जाने वाली ताल को कचरे का ढेर बनते देखा। आज नैनीताल कुछ ऐसा नजर आता है।
ये खूबसूरत नैनीताल खत्म होने की कगार पर
पर अब ये खूबसूरत Nainital जल्द ही खत्म होने वाला है। आप ये जानकर चौंक जाएंगे कि इतना ऐतिहासिक, इतना खूबसूरत शहर आज सच में एक अनस्टेबल ज़ोन बन चुका है। मालरोड में गाड़ियों से यहां घंटों का जाम लगना अब आम बात है। आप छुट्टी मनाने सुकून के लिए जाते हैं, और आधा दिन ट्रैफिक में फंसे रहते हैं।
धंसता हुआ तल्लीताल। नैनीताल का एक बड़ा हिस्सा आज अस्थिर हो चुका है। ज़मीन धीरे-धीरे नीचे खिसक रही है।
ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि हमने यहां की कैरिंग कैपेसिटी को नजरअंदाज कर दिया। कैरिंग कैपेसिटी किसी भी जगह की क्षमता होती है। एक लिमिट होती है कि वो कितना बोझ उठा सकती है। नैनीताल अपनी वो लिमिट कब की पार कर चुका है।

नैनीताल की जमीन नहीं संभाल पा रही वजन
साल दर साल यहां आबादी बढ़ी, टूरिस्ट बढ़े, और उनकी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए घर बढ़े, होटल बढ़े, बिल्डिंगें बढ़ीं। एक-एक नैनीताल में सैकड़ों होटल और हज़ारों घर बना दिए गए। बिना किसी प्लानिंग के, जहाँ जगह मिली, बना दिया।
अब नैनीताल की जमीन इन भारी भरकम बिल्डिंगों का वजन नहीं संभाल पा रही है। नतीजा? हल्की बारिश या ज़रा से भूकंप में भी यहां लैंडस्लाइड और ज़मीन धसने की खबरें आने लगती हैं। लेकिन सिर्फ बिल्डिंगों का बोझ ही नहीं, एक और बहुत बड़ी वजह है जो ज़मीन को अंदर से खोखला कर रही है और वो है एक टूटे हुए सिस्टम की कहानी।
नैनीताल को बना दिया कूड़ेदान
अंग्रेज़ों ने जब नैनीताल बसाया, तो वो जानते थे कि पहाड़ी शहर में पानी की निकासी कितनी ज़रूरी है। उन्होंने पहाड़ों को काटकर, चट्टानों के बीच से एक कमाल का ड्रेनेज सिस्टम बनाया था। 70 से ज़्यादा नालियों का एक ऐसा जाल, जो बारिश के एक-एक कतरे को सुरक्षित झील तक जाता था ताकि पानी ज़मीन के अंदर जाकर उसे कमज़ोर न करे।
आज किस तरह से हमने इन नालियों के ऊपर ही घर बना लिए हैं दुकानें खड़ी कर ली हैं। उन्हें कूड़ेदान बना दिया।
आज ज़्यादातर नालियां या तो जाम हैं या उनका कोई अस्तित्व ही नहीं बचा है। रही-सही कसर हम टूरिस्ट और कुछ लोकल लोग पूरी कर देते हैं। जिस झील को कभी मानसरोवर का दर्जा दिया गया था। जिसकी पूजा होती थी, आज उसमें लोग चिप्स के पैकेट, प्लास्टिक की बोतलें और बचा हुआ खाना ऐसे फेंकते हैं जैसे वो कोई डस्टबिन हो।

धीरे-धीरे घंस रहा है नैनीताल
जानकारी के लिए बता दें कि नैनीताल 7 पहाड़ियों से घिरा हुआ है। यहां की लगभग सारी पहाड़ियां आज धीरे-धीरे धंस रही हैं, खिसक रही हैं। वैज्ञानिकों की मानें तो अगर ये अनप्लान्ड कंस्ट्रक्शन और बोझ बढना नहीं रुका तो जोशीमठ से बड़ी तबाही यहां भी आ सकती है। इस सबके ज़िम्मेदार हम सब हैं। किसी ने कम, किसी ने ज़्यादा, पर इस खूबसूरत शहर को इस हाल में पहुंचाने में हम सबका हाथ है।


