श्रीमद् भागवत कथा में योगेश्वर भगवान कृष्ण के अलौकिक व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला प्रख्यात कथावाचिका साध्वी वैष्णवी भारती ने किया अपनी भाषा व प्रतीकों के सम्मान का आह्वान

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कैबिनेट मंत्री सुबोध उनियाल विधायक सुमित हृदयेश महापौर डॉ जोगेंद्र रौतेला समेत अनेकों श्रद्धालुओं ने लिया श्रीमद् भागवत कथा का आनंद


हल्द्वानी यहां एमबी इंटर कॉलेज के प्रांगण में दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की ओर से चल रही श्रीमदभागवत साप्ताहिक कथा ज्ञानयज्ञ के सप्तम् एव अंतिम दिवस की सभा में सर्व श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या साधी सुश्री वैष्णवी भारती जी ने बहुत ही सुसज्जित ढंग से भगवान श्रीकृष्ण जी के अलौकिक एवं महान व्यक्तित्व के पहलुओं से अवगत करवाया। कस की दोनों पत्नियां अस्ति तथा प्राप्ति जरासंध की पुत्रियां थीं। वे अपने पिता जरासंध के पास वापिस पहुंच गयी। अपनी पुत्रियों के वैधव्य को जरासंध सहन नहीं कर सका। अनेकों बार प्रभु से प्रतिशोध लेना चाहा परंतु हर बार असफल रहा। उसने कालयवन से श्रीकृष्णण पर आक्रमण करवाया। केशव वहां से भाग कर कन्दरा में चले गये तथा वहां सोये हुये राजा मुचुकुंद पर पीताम्बर डाल दिया। मुचुकुंद की आखों की अग्नि से कालयवन जल कर भस्म हो गया। यहां संदेश मिलता है कि राजा सोये हुये राष्ट्र का प्रतीक है। पीताम्बर भाव चेतना एवं भगवान सोये को जगाने वाले महापुरुष हैं। आज हम भी अपनी विरासत, भाषा इनके प्रति सोये हैं हिंदी भाषा बोलने में हमें शर्म महसूस होती है। जबकि हिंदी भाषा सन 2050 में विश्व की श्रेष्ठ भाषा बनने जा रही है। नासा ने इसे फोनेटिक भाषा कहा है। जैसा लिखा जाता है हिंदी में वैसा ही बोला जाता है। राजेंद्र प्रसाद जी ने कहा था- जो देश अपनी भाषा व प्रतीकों को सम्मान नहीं करता वह उन्नति को प्राप्त नहीं कर सकता। चीन जैसा देश सोशलमीडिया, इंटरनेट का प्रयोग अपनी मेडरिन भाषा में ही करता है। हम हिंदी को अपने जीवन में प्राथमिकता दें ताकि ये भाषा विश्व में अग्रिम स्थान को प्राप्त कर सके। आज अपनी भाषा के प्रति भी हमें सजग होने की आवश्यकता है।

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प्रभु श्री कृष्ण धर्म की स्थापना हेतु मथुरा नगरी की ओर प्रस्थान कर गये। हमारे भारत देश में धर्म और जीवन एक दूसरे के पर्याय माने गये। धर्म ही जीवन की धुरी है। धर्म के बिना जीवन अधूरा माना गया। क्षेत्रा चूडामणि में कहा गया कि बंधु शमशान तक घन घर तक शरीर राख होने तक रहता है। केवल धर्म ही कभी साथ नहीं छोड़ता। जीवन को विकासोन्मुख बनाने के लिये धर्म को प्रथम स्थान दिया गया। स्वामी रामतीर्थ जी अक्सरा कहा करते थे कि एक होता है-उधर धर्म दूसरा नगद धर्म उधर धर्म सैद्धान्तिक है। मत मान्यताओं, सिद्धांत धरणाओं तक ही सीमित है। नगद धर्म एक प्रयोगात्मक विज्ञान है। ईश्वर के तत्व स्वरूप की प्रत्यक्षानुभूति है। परमसत्ता का साक्षात्कार है।

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रूक्मिणी विवाह प्रसंग के माध्यम से सीख मिलती है कि प्रभु उस आत्मा का वरण करते हैं जिसमे उन्हें प्राप्त करने की सच्ची जिज्ञासा हो रूक्मिणी जी का विवाह शिशुपाल से नहीं हो सकता, क्योंकि वह लक्ष्मी जी का अवतार है। श्री लक्ष्मी सदैव विष्णु के संग ही शोभायमान होती हैं रूक्मिणी माध्व जी का विवाह उत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया गया। भागवत का समापन पूजन एवं आरती से किया गया।

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