उत्तराखंड में निकायों के ओबीसी सर्वेक्षण में बड़े पैमाने पर घपला, विपक्ष ने लगाया सत्तापक्ष पर आरोप

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उत्तराखंड में होने वाले लोकसभा और राज्य में होने वाले निकाय चुनाव से पहले ही उत्तराखंड में चल रहे निकायों के ओबीसी सर्वेक्षण में बड़े पैमाने पर घपला सामने आया है। इससे नवंबर में संभावित निकाय चुनाव पर संकट पैदा हो गया है।


अगले साल होने वाले लोकसभा और उससे पहले राज्य में होने वाले निकाय चुनाव को फतह करने के लिए सभी राजनीतिक दल अपनी अपनी तैयारियों में जुटे हैं। लेकिन इन्ही तैयारीयों के बीच उत्तराखंड में निकाय चुनाव पर रार छिड़ गई है।
निकायों के ओबीसी सर्वेक्षण में बड़े पैमाने पर घपला सामने आया है। इससे नवंबर में संभावित निकाय चुनाव पर संकट पैदा हो गया है। एकल सदस्यीय आयोग के अध्यक्ष ने इस पर सख्त नाराजगी जताते हुए अपर मुख्य सचिव को चिट्ठी भेजी है, जिसमें उन्होंने सर्वेक्षण की गड़बड़ियों और सुस्त रफ्तार को लेकर सर्वेक्षण पूरा न होने की बात कही है।

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विपक्ष ने लगाया सत्तपक्ष पर आरोप
बता दे की प्रदेश में नवंबर माह में 9 नगर निगम, 43 नगर पालिका परिषद और 50 नगर पंचायतों में चुनाव होने हैं। इससे पूर्व इन सभी निकायों में ओबीसी सर्वेक्षण का काम एकल सदस्यीय समर्पित आयोग के निर्देशों पर किया जा रहा है वही अब इस मामले में सियासत गरमा गई है।
विपक्ष का आरोप है कि सत्तापक्ष ने चुनाव से पहले ही हार मान ली है इसलिए जानबूझकर निकाय चुनाव को टाला जा रहा है। सरकार की कोशिश है कि लोकसभा चुनाव के बाद ही निकाय चुनाव को कराया जाए। वही बीजेपी ने विपक्ष के इन सभी आरोपों का खंडन किया है।

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भाजपा ने 2018 में जीती थी कई सीट
नगर निकाय 2018 की बात करें तो उत्तराखंड में हुए नगर निकाय में चुनाव में भाजपा ने शानदार प्रदर्शन करते हुए राज्य की सात मेयर की सीटों में से पांच सीटों पर भाजपा ने जीत हांसिल की जबकि कोटद्वार और हरिद्वार में कांग्रेस की जीत हुई थी । वहीं 2013 के निकाय चुनावों में कांग्रेस को एक भी मेयर और चेयरमैन की सीट नहीं मिली थी।
एक तरफ जहाँ भाजपा इस साल भी पूरी तरह से जीत के लिए आश्वस्त है, तो वही विपक्ष ने अभी से सतात्पक्ष की हार तय कर दी है। सवाल ये है की आखिर विपक्ष ने इस साल ऐसी कौन सी तैयारी की है जो वो अपनी जीत का दावा कर रही। आखिर वो कौन सी वजहें है जो भाजपा को निकाय चुनाव कराने से रोक रही है।

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