“एक समाज का प्रथम कर्तव्य अपने सदस्यों को सदैव समय पर तथा सुविधाजनक स्थान पर न्याय सुनिश्चित किया जाना है, ताकि न्यायिक व्यवस्था पर आस्था अखण्डित रहे।
माननीय श्री राघवेन्द्र सिंह चौहान, मुख्य न्यायमूर्ति, उच्च न्यायालय उत्तराखण्ड वादकारियों एवम् वाद से सम्बन्धित व्यक्तियों के हित में न्यायपालिका तथा प्रशासन द्वारा अनेक कदम उठाये जा रहे है। जैसे-जैसे सूचना प्रौद्योगिकी, जीवन तथा शासन के हर पहलू में प्रवेश कर रही है, न्याय वितरण प्रणाली, अधिक प्रभावी तथा वादकारी मित्र/सहयोगी संगठन बनने के लिए सूचना प्रौद्योगिकी को खुले हाथों से स्वीकार कर रही है। जैसे हमने वर्तमान परिदृश्य में देखा है, सूचना प्रौद्योगिकी संचालित प्रणाली की मूल आधारशिला इन्टरनेट कनेक्टिविटी है। COVID-19 के परिदृश्य में कार्यस्थलों में सूचना प्रौद्योगिकी तथा उसके परिणामस्वरूप, अबाधित इन्टरनेट कनेक्टिविटी (सयोंजकता) की मांग नई ऊचाईयों तक पहुँच गयी है। उत्तराखण्ड राज्य को अपनी विशिष्ट भौगोलिक परिस्थितियों के कारण भौतिक तथा इन्टरनेट, दोनों ही की संयोजकता की गम्भीर समस्या का सामना करना पड़ता है। निवास की सुदूरता तथा उत्तराखण्ड के दूरस्थ तथा दुर्गम भूदृश्य में परिवहन सुविधाओं का वास्तविक अभाव, वादकारियों एवम् वाद से सम्बन्धित व्यक्तियों (विशेषतः महिलायें एवं बच्चे) के समक्ष एक विशाल चुनौती प्रस्तुत करती है, जो कष्टदायी दुर्गमताओं
का सामना करे बिना, न्यायालय की कार्यवाही में प्रतिभाग कर पाने में समर्थ नहीं होते है।
न्यायालयों की उचित आधारभूत संरचना का अभाव, लोक अभियोजकों,न्यायिक अधिकारियों तथा दक्ष अधिवक्ताओं की अपर्याप्त संख्या आदि परिस्थतियाँ, दूरस्थ स्थानों में निवास करने वाले वादकारियों अथवा न्यायिक सहायता के पात्रों को न्यायालय तक लम्बी यात्राएं करने, तथा ऐसी यात्राओं में अनगिनत दुर्गमताओं का सामना करने के लिये विवश करती है। इन परिस्थितियों का सर्वाधिक पीड़ित वर्ग महिलायें एवं बच्चे होते है, जो या तो, अपराधों के पीड़ित होते है अथवा मामलों के प्रधान साक्षी। इसके अतिरिक्त, न्यायालयों का बहुमुल्य समय ऐसे चिकित्सीय तथा औपचारिक साक्षीगणों का साक्ष्य अभिलिखित करने में व्यर्थ चला जाता है, जिनका बार-बार एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानान्तरण होता रहता है। कई संवेदनशील वादों में पीड़ित व्यक्ति/साक्षी की सुरक्षा को खतरे होने, पीड़ित/प्रधान साक्षी का साक्ष्य या तो अत्यधिक विलम्बित हो जाता है,
या अभिलिखित होने से रह जाता है। इसका परिणाम न्यायालय की सुनवाई अत्यधिक विलम्ब होता है, जिसके अग्रेतर प्रमाणस्वरूप वाद की अवधि बढ़ जाती है। कई बार विडम्बना यह होती है कि सुदूर/दूरवर्ती स्थान से आये हुऐ साक्षी का साक्ष्य कतिपय कारणों से अभिलिखित नही हो पाता है, तथा उसे खाली हाथ और निराश लौटना पड़ता है, इस चिन्ता के साथ कि उसे फिर आना पड़ेगा।इन परिदृश्यों को सम्बोधित करने के लिये माननीय उच्च न्यायालय उत्तराखण्ड नैनीताल द्वारा साक्ष्य अभिलिखित करने, तथा असाधारण परिस्थितियों में अपरिहाय/ अतिमहत्वपूर्ण सुनवाईयों को विडियो कान्फ्रेंसिंग के माध्यम से क्रियान्वित करने हेतु एक अभिनव एवं अनुपम व्यवस्था को धरातल पर उतारने की पहल की गई है। इस व्यवस्था के अर्न्तगत साक्ष्य अभिलिखित करने तथा अपरिहार्य अथवा अति महत्वपूर्ण सुनवाई को विडियो कान्फ्रेंसिंग के माध्यम से सम्पादित करने हेतु मा0 उच्च न्यायालय द्वारा उत्तराखण्ड राज्य शासन की सहायता से सचल न्यायालय इकाईयों की योजना को प्रारम्भ किया जा रहा है, जिनका संचालन सचल इन्टरनेट/वीडियो क्रान्फ्रेसिंग वाहनों से किया जायेगा। इस योजना के प्रारम्भिक चरणों में ऐसे पीड़ित साक्षी का साक्ष्य सचल न्यायालय इकाई के माध्यम से
लिया जा सकेगा जो बालक/बालिका या महिला है। इसके अतिरिक्त प्रारम्भिक चरणों में चिकित्सक अथवा अन्वेशण अधिकारी का साक्ष्य अभिलिखित करने को प्राथमिकता दी जाएगी ताकि न्यायालय के समय के साथ साथ उनकी अपने अपने कार्यस्थलों में अनुपस्थिति के कारण सामान्य जन को होने वाली असुविधाओ को कम किया जा सके। भारतीय स्वतंन्त्रता दिवस की 74वी वर्षगाँठ पर राज्य के 05 जिलों यथा पिथौरागढ़, चम्पावत, उत्तरकाशी, टिहरी एवं चमोली में उपरोक्त सचल न्यायालय वाहन उपलब्ध कराये जा चुके हैं, इसी अनुकम में दिनांक 17 दिसम्बर 2021 को शेष 08 जिलों अल्मोड़ा, बागेश्वर, रूद्रप्रयाग, हरिद्वार, देहरादून, ऊधमसिंहनगर, नैनीताल एवं पौड़ी गढ़वाल हेतु उपरोक्त सचल न्यायालय वाहन उपलब्ध कराये जा रहे हैं।