नैनीताल -यहां हुई एक और झील की खोज,पेयजल समस्या को लेकर राहत देने वाली खबर

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नैनीताल सरोवर नगरी से एक बड़ी खबर सामने आ रही है बता दे कि यहां एक और झील की खोज हुई है लेकिन इस झील को देखने की आपकी चाह पूरी नहीं होने वाली क्योंकि भूगर्भ वैेज्ञानिकों द्वारा खोजी गई यह झील भूमिगत यानी धरती के अंदर हैं। अब इस झील के बारे में जानकारियां सामने आई हैं तो प्रशासन ने भी नैनीताल के निचले हिस्से में लगातार हो रहे भू—स्ख्लन को रोकने के लिए नए सिरे से रणनीति बनानी शुरू कर दी है। वैज्ञानिकों ने अपनी रिपोर्ट में प्रशासन को बताया है कि निचले नैनीताल में लगातार हो रहे भू—स्खलन के लिए नैनीझील नहीं बल्कि यही भूमिगत झील जिम्म्दार हैं।

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रिपोर्ट के अनुसार यह भूमिगत झील नैनीझील से लगभग 400 मीटर दूर भवाली की ओर हैं। झील लगभग दो सौ मीटर के दायरे में फैली है और इसकी गहराई लगभग 6 मीटर के आसपास हैं। भूमिगत होने के कारण पानी तो शुद्ध ही होगा। रिपोर्ट बताती है कि झील से लगातार भारी मात्रा में पानी का रिसाव हो रहा है। यह इतना पानी है कि जितनी आज नैनीताल शहर को एक दिन में आवश्यकता होती है। अब प्रशासन इस झील की इस खूबी का भी सदुपयोग करने की योजना पर काम करने लगा हैं। यहां ट्यूबवेल लगाकर नैनीताल श्हर की प्यास बुझाने की योजना भी बनाई गई है। इसके लिए जिलाधिकारी ने एक कमेटी का गठन भी कर दिया है।
दरअसल नैनीताल शहर के निचले हिस्से में लगातार हो रहे भूस्खलन को लेकर प्रशासन परेशान था।

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माना यह जा रहा था कि नैनी झील से हो रहे पानी के रिसाव के कारण भूस्खलन हो रहा है, इसी वजह से प्रशासन नैनी झील के ट्रीमेंअ पर करोड़ों रूपये खर्च कर चुका और समस्या का समाधान न होने पर भूगर्भ शास्त्रियों को आमंत्रित करके इस समस्या का समधान ढूंढने के लिए आग्रह किया गया। आईआईटी रूड़की, वाडिया इंस्टीट्यूट देहरादून और भू गर्भ विभाग की टीम ने यहां सर्वेक्षण करके अब प्रशासन को अपनी रिपोर्ट सौंपी तो नई भूमिगत झील के बारे में कई जानकारियां खुलकर सामने आईं। अधिकारियों के अनुसार नैनीताल शहर के लिए प्रतिदिन 8 एमएलडी पानी की आवश्यकता होती है। पर्यटक सीजन में यहां पेयजल समस्या विकराल हो जाती है। लेकिन नई झील की खोज के बाद अधिकारियों को इस समस्या का समाधान होता दिख रहा है। इस नई झील से हर रोज 8 एमएलडी पानी डिस्चार्ज होता है। यानी यदि इस पानी का उपयोग किया जाए तो नैनीताल की पेयजल समस्या का समाधान हो सकता है। अब प्रशासन इस दिशा में योजना बनाने में जुट गया है।

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