सितंबर का महीने में पूरा कुमाऊं नंदामयी हो जाता है। मां नंदा को कुमाऊं की कुल देवी कहा जाता है। कुमाऊं और मां नंदा का रिश्ता अटूट है। हर साल सितंबर के महीने में नंदाष्टमी को कुमाऊं में अल्मोड़ा से लेकर नैनीताल तक धूमधाम से मनाया जाता है। पौराणिक नंदा देवी मेले को लेकर यहां काफी समय पहले से ही तैयारियां शुरू होने लगती हैं।
अल्मोड़ा से लेकर नैनीताल तक नंदा सुनंदा महोत्सव की धूम
अल्मोड़ा से लेकर नैनीताल, रानीखेत से लेकर चंपावत तक इन दिनों नंदा सुनंदा महोत्सव की धूम देखने को मिल रही है। कदली वृक्ष लाकर मां की प्रतिमाओं के निर्माण के बाद आज इनकी स्थापना हो गई है। आज से दो दिनों तक भक्त मां नंदा और सुनंदा की मूर्तियों के दर्शन कर सकते हैं।
ऐतिहासिक है अल्मोड़ा का नंदा देवी मेला
आपको बता दें कि अल्मोड़ा में नंदा देवी मेला ऐतिहासिक है। सैकड़ों साल से यहां नंदा देवी मेले का आयोजन होता है। नंदा देवी मेले की शुरुआत पंचमी से की जाती है। बता दें कि अल्मोड़ा के नंदा देवी मेले के दौरान चंद राजाओं के वंशज माता के मंदिर में विधि विधान से पूजा अर्चना करते हैं।
नैनीताल में हर साल धूमधाम से मनाया जाता है नंदा देवी महोत्सव
अल्मोड़ा की तरह ही नैनीताल में भी नंदा देवी महोत्सव बेहद ही धूमधाम से मनाया जाता है। कदली वृक्ष लाने के साथ ही महोत्सव की शुरूआत होती है। जिसके बाद इस से मां नंदा-सुनंदा की मूर्तियां बनाई जाती है। नैनीताल में नंदा देवी महोत्सव को देखने के लिए हजारों लोग पहुंचते हैं।
रानीखेत में नंदा देवी महोत्सव की धूम
पर्यटन नगरी रानीखेत में भी नंदा सुनंदा महोत्सव की धूम है। बुधवार को मां नंदा सुनंदा की मूर्तियों की स्थापना के साथ ही नगर में सांस्कृतिक कार्यक्रमों की धूम है। छोलिया नृत्य से लेकर कुमाऊंनी लोक नृत्यों की प्रस्तुति देते कलाकार लोगों का मन मोह रहे हैं।
भवाली में हुआ मां की स्थापना तो भीमताल में निकाली गई शोभायात्रा
भवाली में भी मां नंदा सुनंदा की मूर्तियों की आज स्थापना की गई। लोगों में नंदा देवी महोत्सव को लेकर खासा उत्साह देखने को मिल रहा है। मां नंदा-सुनंदा के जयकारों से पूरा भवाली गूंज रहा है। दूर-दराज गांवों से लोग मां नंदा सुनंदा के दर्शनों के लिए भवाली पहुंच रहे हैं।
भीमताल में आज मां नंदा सुनंदा के जयकारों के साथ नंदा-सुनंदा को डोला निकाला गया। श्री 10008 वनखंडी महाराज आश्रम भीमताल से नंदा और सुनंदा का डोला मल्लीताल बाजार, तिकोनिया और डांठ से वापस आश्रम लाया गया। इस दौरान महिलाएं और पुरूष कुमाऊंनी परिधान में झोड़ा करते हुए नजर आए।