रुद्रपुर, । देश में जब 44 श्रम कानून ख़त्म करके 4 श्रम संहिता लागू करने के लिए केंद्र सरकार और राज्य सरकारों द्वारा तैयारियां चल रही है, तब इन 4 श्रम संहिताओं में क्या है और क्यूँ यह श्रम संहिता घोर मज़दूर विरोधी है – विषय पर आज 7 अगस्त 2022 को आस्था पब्लिक स्कूल, रुद्रपुर में मज़दूर सहयोग केंद्र की तरफ से एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन हुआ। श्रम संहिताओं के मज़दूर अधिकार पर पड़ने वाले असर के विषय में गहराई से चर्चा-मंथन हुआ। मज़दूर विरोधी श्रम संहिताएं रद्द कराने के लिए आगामी 13 नवम्बर को मज़दूर आक्रोश रैली में भाग लेने के लिए राजधानी दिल्ली चलने आह्वान किया गया।
कार्यशाला में राजस्थान उच्च न्यायालय के अधिवक्ता व ट्रेड यूनियन एक्टविस्ट साथी सुमित और इस मामले के जानकार गुड़गांव से आए ट्रेड यूनियन कर्मी साथी अमित ने विस्तार से संहिताओं के बारे में और उससे मज़दूरों पर पड़ने वाले प्रभावों के बारे में बताया। इस दौरान सिडकुल, पंतनगर सहित उधम सिंह नगर के अलग अलग मज़दूर यूनियनों के प्रतिनिधि व आम मज़दूर, उत्तराखंड और दिल्ली-गुडगाँव-जयपुर से ट्रेड यूनियन प्रतिनिधि, सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भाग लिया।
वक्ताओं ने बताया कि 2014 में मोदी सरकार ने सत्ता में आने के बाद ही श्रम कानूनों में बदलाव की प्रक्रिया तेज कर दी थी। 2020 में कोरोना काल के विकट पाबंधियों के दौरान पुराने श्रम कानूनों को ख़त्म करके 4 श्रम संहिता (लेबर कोड्स) औद्योगिक संबंध संहिता; मजदूरी संहिता; सामाजिक सुरक्षा संहिता और व्यवसाय की सुरक्षा, स्वास्थ्य, एवं कार्यदशाओं की संहिता के साथ उनकी नियमावली भी पारित कर दी। अभी तक उत्तराखंड सहित 23 राज्यों ने इन संहिताओं को अपनाकर नियमावली प्रस्तुत कर चुकी है। अब 7 राज्य बचे हैं। केंद्र सरकार पूरे देश में एकसाथ नए कानूनों को लागू करना चाहती है। मगर देश भर में मज़दूर यूनियनें और संगठन इन संहिताओं को मज़दूर विरोधी बता कर इनको रद्द करने के लिए आवाज़ उठा रहे हैं।
कार्यक्रम की शुरुआत क्रांतिकारी गीतों से किया गया। एमएसके द्वारा आधार पत्र प्रस्तुत किया गया।
कार्यशाला के पहले सत्र में राजस्थान हाईकोर्ट के अधिवक्ता सुमित ने विस्तार से बताया कि चार श्रम संहिताओं में क्या नया है। उन्होंने बताया कि कैसे नई श्रम संहिता के जरिये मज़दूरों को बंधुआ बनाने की प्रक्रिया तेज की जा रही है। कैसे आद्योगिक संबंध संहिता में ‘फिक्स्ड टर्म एम्प्लॉयमेंट’ के प्रावधान स्थायी मजदूरी का आधार ख़त्म कर देगा। साथ में यूनियन बनाने की प्रक्रिया और यूनियन की मान्यता प्राप्ति और कठिन हो जाएगी। क़ानूनी हड़ताल करना लगभग असंभव हो जायेगा, व्यक्तिगत समझौता के प्रावधान से यूनियन और सामूहिक समझौता की प्रक्रिया और कमजोर हो जाएगी। मज़दूरों की छटनी-बंदी और आसान हो जाएगी। ठेका मज़दूरों के लिए मालिक को जिम्मेदारी से मुक्त कर दिया जायेगा।
मजदूरी संहिता में न्यूनतम मजदूरी के लिए 15वें भारतीय श्रम सम्मेलम में तय आधार ख़त्म कर दिया गया है। 12 घंटा कार्यदिवस, ज्यादा ओवरटाइम, आधे दिन या घंटे के हिसाब से मजदूरी का प्रावधान लाया गया है। सामाजिक सुरक्षा संहिता में मज़दूरों के बड़े हिस्से को सामाजिक सुरक्षा के दायरे के बाहर रखा गया। व्यवसाय की सुरक्षा, स्वास्थ्य, एवं कार्यदशायों की संहिता में कारखाना की परिभाषा ही बदल दिया गया, सम्मानजनक और सुरक्षित रोजगार का आधार कमजोर कर दिया गया।
सुमित की प्रस्तुति के बाद मज़दूरों से उठे सवालों के आधार पर प्रश्नोत्तर का खुला सत्र चलाया गया।
दूसरे सत्र में मज़दूर सहयोग केंद्र, गुडगाँव के साथी अमित ने श्रम कानूनों के बनने के पीछे देश और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मज़दूर संघर्ष का लम्बा इतिहास पर बताया। साथ में, इस पर भी चर्चा किया कि आज मज़दूर वर्ग के नए-नए हिस्से कैसे लड़ाई के मैदान में शामिल हो रहे हैं और शामिल हो सकते हैं।
उन्होंने बताया कि मज़दूर विरोधी 4 श्रम संहिताओं के खिलाफ देश भर में एक निरंतर, जुझारू और निर्णायक संघर्ष की ज़रूरत है। इस दिशा में देश भर के संघर्षशील मज़दूर संगठनों के साझा मंच “मज़दूर अधिकार संघर्ष अभियान” (मासा), जिसका मज़दूर सहयोग केंद्र भी घटक है, की तरफ से मज़दूर विरोधी श्रम संहिता रद्द करने के लिए आगामी 13 नवम्बर को दिल्ली राष्ट्रपति भवन रैली में शामिल होने का आह्वान किया।
मज़दूर सहयोग केंद्र, उत्तराखंड के अध्यक्ष मुकुल ने अपने अध्यक्षीय भाषण में भगवती-माइक्रोमैक्स, इन्टरार्क, जायडस, वोल्टास, एलजीबी, कारोलिया आदि का उदाहरण देकर बताया कि जब पुराने श्रम कानूनों की मौजूदगी में इन श्रमिकों को न्याय नहीं मिल रहा है, उच्च न्यायालय तक के आदेश का परिपालन नहीं हो पा रहा है, तो इन कानूनों के छिन जाने के बाद क्या हालत होंगे समझा जा सकता है। ऐसे में विभिन्न क्षेत्र के मज़दूरों को व्यापक एकता बनाते हुए, बड़े व निर्णायक आंदोलन की तैयारी में लगना पड़ेगा। इसके लिए मज़दूर वर्ग को धर्म-जाति के फ़सादी जुनून से बाहर आना होगा।
कार्यक्रम में इंकलाबी मजदूर केंद्र के दिनेश भट्ट, कांतिकारी लोक अधिकार संगठन से शिवदेव जी, बीएमएस के जिलाध्यक्ष गणेशमेहरा, सेवानिवृत्त शिक्षक मदन जी, एसबीआई पेंशनर शंकर चक्रवर्ती, पीएनबी पेंशनर समीर राय जी, इंटरार्क मजदूर संगठन से दलजीत सिंह, नेस्ले कर्मचारी संगठन से धनवीर राणा जी, रोकेट रिद्धि सिद्ध कर्मचारी संगठन से गोविंद सिंह, भगवती श्रमिक संगठन से नंदन सिंह, एलजीबी वर्कर्स युनियन से गोविंद, एडविक कर्मचारी संगठन राजू सिंह, महेद्रा सी आई ई श्रमिक संगठन दर्शन लाल, डेल्टा इम्प्लाईज युनियन से पूरन बिष्ट,, करोलिया इम्प्लाईज युनियन अशोक, महिन्द्रा कर्मकार यूनियन अम्बिका प्रसाद, टाटा आटोकाम यूनियन से गोकुल,आनन्द निशिकावा इम्प्लाईज यूनियन नरेश सक्सेना, पारले श्रमिक संगठन से प्रमोद तिवारी, रॉकेट इंडिया कर्मचारी संघ से अभिषेक त्यागी, कलेक्ट्रेट कर्मचारी कन्हाई चक्रवर्ती, संत सैनिक दल से गोपाल सिंह गौतम आदि के साथियों ने भागीदारी की ।
संचालन धीरज जोशी व दीपक सनवाल ने किया। कार्यशाला से से नया उर्जा के साथ सभी साथियों ने मज़दूर विरोधी श्रम संहितायों के खिलाफ आन्दोलन तेज करने के लिए संकल्प लिया।