भंडैण्डी में पांडव नृत्य का हुआ आगाज, विदेशों से शामिल होने आते हैं युवा, देखें तस्वीरें

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पांडव नृत्य

टिहरी के भंडैण्डी गांव में पांडव नृत्य का आगाज हो गया है। जहां एक ओर समाज अपनी संस्कृति को भूलकर आधुनिकता और भाग रहा है। तो वहीं टिहरी के भंडैण्डी गांव के ग्रामीण वर्षों पुराने रीति रिवाजों को संजोए हुए हैं। अपनी संस्कृति को बचाने की के लिए सात समंदर पार दूर विदेशों से भी युवा घर लौटे हैं और पांडव नृत्य का आयोजन कर रहे हैं।

भंडैण्डी में पांडव नृत्य का हुआ आगाज

हिमालय की गोद में बसा उत्तराखंड अपनी अलौकिक खूबसरती, प्राचीन मंदिर और अपनी संस्कृति के लिए विश्वविख्यात है। यहां की लोक कलाएं और लोक संगीत बरसों से भारत की प्राचीन कथाओं का बखान करती आ रही हैं। ऐसी ही एक प्राचीन परंपरा है पांडव नृत्य है।

टिहरी जिले का घनसाली क्षेत्र एक तरफ पलायन की मार झेल रहा है वहीं मिनी विदेश के नाम से जाना जाने वाला हर गांव आज भी अपनी पौराणिक संस्कृति को जिंदा रखने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। टिहरी के पैड़ा भंडैण्डी में वर्षों से चली आ रही परंपरा पांडव नृत्य का आयोजन हर वर्ष की भांति इस साल भी धूमधाम से मनाया गया।

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भंडैण्डी में पांडव नृत्य का हुआ आगाज

आयोजन समिति के अध्यक्ष प्रवासी ग्रामीण विपेश भंडारी व लखन भंडारी ने बताया कि चूलागढ़ की प्रसिद्ध भगवती राजराजेश्वरी की थात पर भंडैण्डी गांव में पुरखों से चली आ रही है। पांडव नृत्य की परंपरा को आज के आधुनिक समाज में भी ग्रामीणों ने जिंदा रखा हुआ है।

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पांडव नृत्य

शामिल होने के लिए विदेशों से घर आते हैं युवा

बता दें कि गांव के अधिकांश युवा दूर विदेशों में नौकरी करते हैं। लेकिन पांडव नृत्य दौरान सभी युवा गांव पहुंच जाते हैं। ग्रामीणों ने बताया कि पांडव नृत्य का मुख्य उद्देश्य क्षेत्र की खुशहाली और फसल की अच्छी पैदावार है। इसी के लिए इस तरह से पांडव नृत्य का आयोजन किया जाता है। जहां पर तमाम ग्रामीण और सात गांवों के सभी देवी देवताओं के साथ नृत्य खेल के साथ आशीर्वाद लेते हैं।

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पांडव

ग्रामीण अपनी संस्कृति को जीवित रखने की कर रहे कोशिश

पांडव नृत्य कार्यक्रम में पहुंचे भिलंगना प्रधान संगठन के अध्यक्ष दिनेश भजनियाल ने बताया कि भिलंगना की आरगढ़ घाटी सदियों से धार्मिक कार्यक्रमों में आगे रहती है।

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उन्होंने कहा कि उत्तराखंड के लोग देवभूमि के नाम से जाने जाते हैं जबकि पहाड़ी जिलों में पलायन चरम पर है। फिर भंडैण्डी के गांव के ग्रामीणों द्वारा अपनी पौराणिक संस्कृति को जीवित रखने में कोई कसर नहीं छोड़ी जा रही है जो कि बहुत ही अच्छी बात है।

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क्या है पाडंव नृत्य (Pandav Nritya)?

जनश्रुतियों मुताबिक पांडव अपने अवतरण काल में यहां वनवास, अज्ञातवास, शिव की खोज में और अन्त में स्वर्गारोहण के समय आये थे। ये भी मान्यता है कि महाभारत के युद्ध के बाद पांडवों ने अपने विध्वंसकारी अस्त्र और शस्त्रों को उत्तराखंड के लोगों को ही सौंप दिया था और उसके बाद वे स्वार्गारोहिणी के लिए निकल पड़े थे।

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उत्तराखंड के कई गांवों में उनके अस्त्र- शस्त्रों की पूजा होती है और पाण्डव नृत्य या पाडंव लीला का आयोजन होता है।इसमें पाडंवों के जीवन के बारे में बताया जाता है। स्थानीय कलाकार युधिष्ठर, अर्जुन, भीम, नकुल और सहदेव का रूप धारण कर परंपरागत परंपरागत लोक गीतों पर नृत्य करते हैं

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