देहरादूनःउत्तराखंड में इन दिनों सत्ताधारी और विपक्षी दल एक नए संगठन की मौजूदगी से कुछ असहज से हैं. पूर्व विधायकों के इस नए गठजोड़ ने राज्य में तीसरी ताकत के खड़े होने की आशंका खड़ी कर दी है. वह बात अलग है कि राज्य के इतिहास में अब तक राष्ट्रीय दलों से इतर क्षेत्रीय ताकतों ने कई बार तीसरा मोर्चा तैयार करने के प्रयास तो किए, लेकिन वह सभी प्रयास फेल साबित हुए हैं.
पूर्व विधायकों ने बनाया संगठनः उत्तराखंड की स्थापना से अब तक 5 विधानसभा चुनाव हुए हैं, जिसमें कांग्रेस और भाजपा ही सत्ता की चाबी हासिल करने में कामयाब हो सकी. भाजपा जहां 3 बार विधानसभा चुनाव जीतकर सरकार बना चुकी है तो वहीं कांग्रेस 2 बार सत्ता में रही है. हालांकि, बारी बारी सत्ता पाने वाले राष्ट्रीय दलों को सरकार से बेदखल करने के लिए क्षेत्रीय दलों के रूप में प्रयास किए गए हैं, जो सफल नहीं हो पाए. इस सब के बावजूद अब राज्य में पूर्व विधायकों ने अपना एक संगठन तैयार किया है.
थर्ड फ्रंट की ओर संगठनः इसकी पहली बैठक भी हो चुकी है. बड़ी बात यह है कि इस बैठक में 35 पूर्व विधायकों ने प्रतिभाग किया और यह विधायक कांग्रेस और भाजपा दोनों ही दलों से ताल्लुक रखते हैं. वैसे तो पूर्व विधायक संगठन की तरफ से इसे प्रदेश की तमाम समस्याओं को सरकार तक पहुंचाने का मंच बताया गया है. लेकिन इसके कई राजनीतिक निहितार्थ निकाले जा रहे हैं. उधर, भविष्य में इसे राजनीतिक रूप से भी आगे बढ़ाया जा सकता है, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता.
उत्तराखंड की राजनीति में पहली बार हुआ है जब इतनी बड़ी संख्या में पूर्व विधायकों ने अपना एक संगठन तैयार किया है. शायद यही कारण है कि इस संगठन को भविष्य में राजनीतिक रूप से तीसरे मोर्चे की संभावनाओं के रूप में देखा जा रहा है. उत्तराखंड में तीसरे मोर्चे को लेकर अब तक के प्रयास और संभावनाएं समझें तो इस प्रकार हैं.
राज्य आंदोलन में प्रतिभाग करने वाली क्षेत्रीय पार्टी उत्तराखंड क्रांति दल थर्ड फ्रंट के रूप में खुद को नहीं कर पाई स्थापित.
राज्य स्थापना के बाद पहले 2002 के चुनाव में 4 सीटें जीतने के बाद अब शून्य पर पहुंचा UKD.
यूकेडी की विफलता के बाद टीपीएस रावत ने की थर्ड मोर्चा तैयार करने की कोशिश.
उत्तराखंड रक्षा मोर्चा भी नहीं बना पाया जनता के बीच जगह.
राष्ट्रीय दलों से उपेक्षित नेताओं का तीसरे मोर्चे को लेकर बनता रहा है विचार.
कांग्रेस और भाजपा के विभिन्न मुद्दों पर असफलता के चलते तीसरे मोर्चे की बेहद ज्यादा संभावना.
साल 2022 के चुनाव में आप तीसरे मोर्चा दे पाने में हुई असफल.
आप भी नहीं दिखा पाई कमालः राजनीति में संघर्ष के साथ वित्तीय प्रबंधन भी बेहद जरूरी है. लिहाजा, तीसरे मोर्चे की संभावनाएं बड़े चेहरों के गठबंधन और मजबूत वित्तीय प्रबंधन के बाद ही पूरी हो सकती हैं. प्रदेशवासियों के लिए भी इन दोनों ही राष्ट्रीय दलों के विकल्प के रूप में आम आदमी पार्टी ने कुछ माहौल तैयार किया. लेकिन 2022 के विधानसभा चुनाव में पार्टी चुनाव परिणामों में फिसड्डी साबित हुई. तीसरे मोर्चे की राज्य में जरूरत इसलिए है क्योंकि भ्रष्टाचार और बेरोजगारी के मामले पर कांग्रेस और भाजपा के फेल होने पर तीसरे मोर्चे की संभावनाएं बढ़ गई हैं.
इसके अलावा दिल्ली से तय होते हैं उत्तराखंड के फैसले, यह संदेश लोगों को थर्ड फ्रंट की ओर आकर्षित कर रहे हैं. क्षेत्रीय भावनाओं को समझ पाने में नाकाम दिखी कांग्रेस और भाजपा. साथ ही भू कानून और क्षेत्रीय युवाओं को रोजगार जैसे मुद्दे पर राष्ट्रीय दलों की सरकारें कोई निर्णय नहीं ले पा रही है. वहीं, पहाड़ी जिलों की उपेक्षा ने भी तीसरे मोर्चे को लेकर लोगों को सोचने पर मजबूर किया है.
भाजपा-कांग्रेस के लिए बना प्रेशर ग्रुपः पूर्व विधायकों के संगठन ने दावा किया है कि करीब 104 पूर्व विधायक इस संगठन से लगातार वार्ता कर रहे हैं और जल्द ही एक बड़ा सम्मेलन कर यह संगठन अपनी ताकत भी दिखाने वाला है. राज्य में भाजपा और कांग्रेस के भीतर उपेक्षित पूर्व विधायकों ने एक तरह से गठजोड़ तैयार किया है, जिसने राजनीतिक रूप से प्रदेश में हलचल तेज कर दी है. हैरानी की बात यह है कि संगठन खुले रूप से प्रदेश में मौजूद भ्रष्टाचार को लेकर राज्य सरकार को कटघरे में खड़ा कर रहा है. यही नहीं, एक तरह से इसे एक प्रेशर ग्रुप के रूप में भी माना जा रहा है.
भाजपा लेगी संज्ञानः इस मामले पर भारतीय जनता पार्टी ने तो स्थिति स्पष्ट करते हुए साफ किया है कि भाजपा में ना कोई उपेक्षित है और ना ही कोई पार्टी की लाइन से बाहर जा सकता है. ऐसे में यदि कोई पूर्व विधायक इस तरह के संगठन में राजनीतिक गतिविधियां करता है तो उसका पार्टी संज्ञान जरूर लेगी.
कांग्रेस ने किया समर्थनः पूर्व विधायकों के संगठन में भाजपा के साथ कांग्रेस के भी नेता हैं. लेकिन क्योंकि फिलहाल कांग्रेस सत्ता में नहीं है और पूर्व विधायक संगठन का रुख भ्रष्टाचार और बेरोजगारी को लेकर सरकार की घेराबंदी का दिख रहा है. लिहाजा, पार्टी के नेता इस संगठन के समर्थन में खड़े दिखाई दे रहे हैं. हालांकि, वे प्रदेश में किसी भी तीसरे मोर्चे की संभावनाओं से साफ इनकार कर रहे हैं