कैंट रोड और खलंगा के हरे पेड़ काटे जाने पर सीएम धामी ने रोक लगा दी है। इसके बावजूद पर्यावरण प्रेमियों ने दून में काटे जा रहे पेड़ो को लेकर चिंता जताते हुए आज दिलाराम चौक से सेंट्रियो माला तक पदयात्रा निकली। दून में हरे भरे पेड़ को विकास की भेट चढ़ने से कैसे रोका जाए इसी संकल्प के साथ आज पदयात्रा को निकाली गई।
पदयात्रा में सैकड़ों की संख्या में शामिल हुए लोग
पर्यावरण प्रेमियों ने लोगों से पदयात्रा में शामिल होने आह्वान किया था। इसका असर आज पदयात्रा में देखने को भी मिला। पदयात्रा में सैकड़ों की संख्या में लोग शामिल हुए। पदयात्रा में शामिल हुए लोगों ने पेड़ों के कटान को लेकर विरोध जताते हुए कहा देहरादून में पेड़ो के कटान से लगातार तापमान बढ़ रहा है। जलस्तर भी धीरे धीरे कम होता जा रहा है और नदियां भी सूखती जा रही हैं।
पेड़ काटने का हुआ था भारी विरोध
बता दें कि दिलाराम चौक से लेकर मुख्यमंत्री आवास तक सड़क चौड़ीकरण करने की वजह से कई सौ काटे जाने को लेकर प्रस्ताव तैयार किया गया। जिन पेड़ों का कटान होना है उन पर निशान भी लगा दिए गए हैं। जिसका लोगों ने भारी विरोध किया। जिसके बाद सीएम धामी का बयान पेड़ कटान को लेकर सामने आया और उन्होंने कहा कि सड़क चौड़ीकरण आवश्यक है लेकिन अनावश्यक पेड़ नहीं काटे जाएंगे।
सरकार करे विकास मॉडल में बदलाव
पर्यावरणविद रवि चोपड़ा ने सरकार को विकास मॉडल में बदलाव की बात कही। उन्होंने कहा कि सरकार की जो अनेक योजनाएं हैं पेड़ और जंगल काटने की वह अब देहरादून वासी नहीं सहेंगे। हमने जो इस साल तापमान झेला है इसको हम आगे झेलने को तैयार नहीं है।
हम जानते हैं कि आगे 43 नहीं 45, 47 और 50 डिग्री तक तापमान जा सकता है। इसमें जो नुकसान होगा जो जान-माल का नुकसान होगा वो सहने के लिए हम तैयार नहीं है। इसलिए सरकार को अपने विकास का मॉडल तुरंत बदलना चाहिए।
आज लोग सड़कों पर उतरे हैं ये उनकी चिंता और उनका गुस्सा है
एसडीसी फाउंडेशन के संस्थापक अनूप नौटियाल का कहना है सवाल केवल इस प्रकरण को लेकर के नहीं है। लोगों का जो गुस्सा है लोगों की जो निराशा है उसको लेकर के आज देहरादून की सड़कों में निकला है। वो निश्चित तौर पर किसी भी सरकार को जो है वो चिंतन करना चाहिए।
उत्तराखंड को बने हुए 24 साल हो गए हैं कभी इस तरीके से लोगों का सैलाब नहीं देखा। लेकिन जिस तरीके से हजारों की संख्या में आज लोग सड़कों पर उतरे हैं ये उनकी चिंता और उनका गुस्सा है। सरकार को इस पर चिंतन करना चाहिए क्योंकि ये उत्तराखंड के अस्तित्व की बात है