युग संत महामंडलेश्वर स्वामी बालकृष्ण यति जी महाराज की पावन पुण्यतिथि पर अष्टादश महालक्ष्मी मंदिर में सुंदरकांड का आयोजन

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बेरी पड़ाव अष्टादश महालक्ष्मी मंदिर में देवाधिदेव महादेव के परम भक्त जिनका सूक्ष्म संरक्षण सदैव अपने भक्तों के साथ रहता है ऐसे परम वंदनीय प्रातः स्मरणीय युग संत महामंडलेश्वर बालकृष्ण यति जी महाराज की आज पावन पुण्यतिथि है भक्तजनों द्वारा श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए आज 27 जुलाई को शाम 4:30 बजे से उनके द्वारा स्थापित श्री अष्टादश भुजा महालक्ष्मी मंदिर यति धाम बेरी पड़ाव में सुंदरकांड का आयोजन किया जाएगा
ज्ञान भक्ति व कर्म योग को पूरी तरह से अपने जीवन में आत्मसात करने वाले जगत जननी जगदंबा के प्राणों से अनुप्राणित महादेव के परम भक्त पवाहारी महामंडलेश्वर संत स्वामी बालकृष्ण जी महाराज देव संस्कृति तथा सनातन धर्म परंपरा के महानायक थे संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी से वेदांताचार्य की उपाधि प्राप्त युग संत स्वामी बालकृष्ण यति जी महाराज ने बाल्यावस्था में ही सन्यास धारण कर लोक कल्याण का मार्ग चुना देवभूमि उत्तराखंड के बागेश्वर जनपद के जोशी गांव में संत शिरोमणि स्वामी बालकृष्ण यति जी महाराज का 1916 में माघ कृष्ण एकादशी को अवतरण हुआ बाल्यावस्था में ही सन्यास धारण कर चुके बालकृष्ण यति जी महाराज ने हिमालय क्षेत्र में तथा नर्मदा तट पर गहन साधना की उन्होंने 28 वर्ष तक केवल फलाहार कर महान साधना तपस्या की बाद में उन्होंने फल का भी त्याग कर दिया जिसके चलते उन्हें पवाहारी संत कहा जाने लगा स्वामी बालकृष्ण यति जी महाराज ने सन्यास धारण करने के पश्चात भी अपनी शिक्षा जारी रखी तथा प्रारंभिक शिक्षा बागेश्वर से लेने के बाद उन्होंने काशी उज्जैन आदि क्षेत्रों से उच्च शिक्षा प्राप्त की और संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय द्वारा उन्हें वेदांताचार्य की उपाधि से अलंकृत किया गया अपनी जीवन यात्रा में उन्होंने कई मंदिरों की स्थापना की कई जगह गौशाला बनाई शतचंडी महायज्ञ सहस्त्र चंडी महायज्ञ के अलावा बड़े धार्मिक आयोजन कराए वेद उपनिषद गीता आदि ग्रंथों का गहन अध्ययन करने के बाद समाज को धर्म एवं सत्कर्म के प्रति जागरूक किया और भारतीय संस्कृति के मूल तत्व से तथा सनातन धर्म परंपरा के माध्यम से भी जन-जन को परिचित कराया सिद्ध संत तपोनिष्ठ महादेव गिरी जी का उन्हें सानिध्य मिला अपने गुरु के सानिध्य में प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण करने के बाद कैलाश मानसरोवर के अलावा तमाम दुर्गम तीर्थों की यात्राएं की इसके बाद भी उन्होंने अपनी पढ़ने की जिज्ञासा को शांत नहीं होने दिया और अवंतिका मिर्जापुर काशी से उच्च शिक्षा प्राप्त की इनकी विलक्षण प्रतिभा को देखते हुए स्वामी विश्वनाथ यति द्वारा इन्हें सिद्ध शक्तिपीठ हथियाराम मठ में बुलाया गया हथियाराम मठ उत्तर प्रदेश के गाजीपुर में स्थित है और यह लगभग 700 वर्ष से भी ज्यादा प्राचीन शक्ति स्थल है जो संत महात्माओं की तपस्थली के रूप में जाना जाता है इस स्थान पर जगत जननी जगदंबा के नौवें स्वरूप माता सिद्धिदात्री का मंदिर है इस मंदिर की विशेषता यह है कि इस मंदिर के दर्शन प्राप्त कर लकवा से पीड़ित मरीज रोग मुक्त हो जाता है बाल कृष्ण यति जी महाराज जी द्वारा इस स्थान पर कैलाश आश्रम का निर्माण करवाया गया अतिथि भवन गौशाला स्थापित करने के अलावा यहां कन्या महाविद्यालय की नींव रखी गई इसके अलावा एक औषधालय का भी उनके द्वारा निर्माण कराया गया जिसे बाद में सरकार ने राजकीय औषधालय के रूप में मान्यता प्रदान की यहां उन्होंने शंकर वन में अपने लिए साधना कुटी का निर्माण किया धर्म एवं अध्यात्म के प्रचार प्रसार के अलावा उन्होंने गुरुकुल परंपरा को भी आगे बढ़ाया तथा अपने गुरु महामंडलेश्वर स्वामी विश्वनाथ जी द्वारा स्थापित संस्कृत पाठशाला को विराट रूप देकर उसे भी विश्वनाथ गुरुकुल संस्कृत महाविद्यालय वाराणसी के नाम पर विख्यात किया इसी परिसर में उन्होंने बच्चों को आदर्श आश्रम पद्धति एवं आधुनिक शिक्षा का समन्वय करते हुए आवासीय इंटर कॉलेज बनाया वर्तमान में उनके द्वारा बनाए गए भारतीय संस्कृति शिक्षा संस्थान नाम के ट्रस्ट द्वारा उक्त इंटर कॉलेज की व्यवस्थाएं देखी जा रही है सबसे बड़ी विशेषता इस विद्यालय की यह है कि यहां शिक्षा के साथ-साथ सहस्त्र चंडी आदि अनुष्ठान कराए जाते हैं जिसमें अध्ययनरत छात्र भी हिस्सा लेते हैं इसके अलावा उनके द्वारा ज्वालापुर हरिद्वार में शंकर आश्रम तथा शिवालय बनाया गया जहां अनेक संत महात्मा श्रद्धालुओं का आवागमन बना रहता है जिनके ठहरने भोजन इत्यादि की व्यवस्था आश्रम द्वारा कराई जाती है गाजीपुर उत्तर प्रदेश में उनके द्वारा स्थापित पवाहारी संत बालकृष्ण यति स्नातकोत्तर कन्या महाविद्यालय है इसके अलावा हल्द्वानी के महादेव गिरी संस्कृत महाविद्यालय में भी उनका अतुलनीय योगदान रहा है उन्होंने यहां हरि हरात्मक यज्ञ का आयोजन कराया गया जो अपने आप में अद्भुत अलौकिक और
अद्वितीय था क्योंकि यह वह यज्ञ होता है जिसमें हरि अर्थात नारायण और हर अर्थात शिव दोनों का सम्मिलित पूजन एवं यज्ञ होता है इसके माध्यम से उन्होंने संदेश दिया कि शिव और विष्णु में भेद करना बहुत बड़ी मूर्खता है क्योंकि दोनों एक ही है स्वामी बालकृष्ण यति जी महाराज जी द्वारा वर्ष 2001 में हल्द्वानी स्थित अपने शिष्य के आवास में शत चंडी यज्ञ का आयोजन करवाया इस दौरान उन्होंने कुमाऊं मंडल में अष्टादश भुजा महालक्ष्मी मंदिर बनाए जाने की इच्छा व्यक्त की और उनकी इच्छा तुरंत साकार रूप लेती चली गई और आज अष्टादश भुजा मंदिर बेरी पड़ाव कुमाऊं का ही नहीं बल्कि उत्तर भारत का प्रमुख तीर्थ स्थल के रूप में स्थापित है जिसे बाल कृष्ण यति धाम के नाम से भी जाना जाता है वर्तमान में अष्टादश भुजा महालक्ष्मी मंदिर की व्यवस्था देख रहे महामंडलेश्वर सोमेश्वर यति जी महाराज ने बताया कि परम पूज्य बालकृष्ण यति जी द्वारा आज ही के दिन अर्थात 27 जुलाई 2013 को वाराणसी के जागेश्वर मठ ईश्वर गंगी में अपनी स्थूल काया का त्याग किया गया और वे परम सत्ता की परम ज्योति के साथ एकाकार हो गए आज उनकी दसवीं पावन पुण्यतिथि पर श्रद्धालुओं द्वारा शाम 4:30 बजे से सुंदरकांड का आयोजन किया जाएगा उन्होंने समस्त क्षेत्रवासियों से बालकृष्ण यति धाम अष्टादश भुजा महालक्ष्मी मंदिर पहुंचकर कार्यक्रम में हिस्सा लेने की अपील की है

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