दून से मसूरी तक पहुंचेगी रेल लाइन, कभी अंग्रेजों ने की थी कोशिश

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सीएम पुष्कर सिंह धामी ने मंगलवार को प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात की। सीएम धामी ने पीएम मोदी से मुलाकात कर देहरादून-मसूरी रेल लाइन परियोजना की स्वीकृति देने की मांग की। जिसे देहरादून से मसूरी के लिए रेल लाइन के जल्द ही बनने का संकेत माना जा रहा है।

देहरादून से मसूरी तक के लिए रेल लाइन बनाने का काम आज से करीब 100 साल पहले ही शुरू हो गया था। अंग्रेजों ने ना केवल मसूरी रेल से पहुंचने का सपना देखा था बल्कि इसे साकार करने की दिशा में कदम भी आगे बढ़ाया था। अंग्रेजों ने दून से मसूरी तक रेल पहुंचाने के लिए काम भी शुरू कर दिया था।

अगर सब कुछ ठीक होता तो आज मसूरी भी ट्रेन के माध्यम से पहुंचा जा सकता था। लेकिन एक हादसे ने इस परियोजना का काम रूकवा दिया। जिसके बाद दशकों बीत गए लेकिन मसूरी तक रेल नहीं पहुंच पाई। लेकिन अब सीएम धामी के देहरादून से मसूरी के लिए रेल लाइन परियोजना के लिए स्वीकृति मांगने के बाद उम्मीद जगी है कि जल्द ही मसूरी के लिए भी ट्रेन जा सकेगी।

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कभी अंग्रेजों ने की थी मसूरी तक रेल ले जाने की कोशिश
आपको बता दें कि साल 1921 में हिंदुस्तान के कुछ राजा-रजवाड़ों ने अंग्रेजों के साथ मिलकर मसूरी तक रेल ले जाने का काम शुरू किया था। साल 1921 में राजा-रजवाड़ों ने अंग्रेजों के साथ मिलकर मसूरी-देहरा ट्राम वे कंपनी बनाई। इस कंपनी ने 23 लाख रुपए की लागत से दून से मसूरी रेल लाइन बिछाने का काम भी शुरू किया था।

Doon to Mussoorie train
मसूरी ट्रेन ले जाने के लिए बनाई गई टनल
राजपुर रोड से मसूरी के लिए रेल लाइन बनाई जानी थी। इसके लिए राजपुर रोड स्थित शहंशाही आश्रम से थोड़ी आगे ही मसूरी टोल पर सुरंग बनाने का काम भी शुरू कर दिया गया था। लेकिन सुरंग बनाते हुए एक हादसा हुआ जिसमें कुछ मजदूर दब गए। कुछ मजदूरों के मारे जाने के बाद अन्य मजदूरों ने भी काम करना छोड़ दिया। हालांकि कंपनी टोल तक पटरियां ला चुकी थी। लेकिन इस हादसे के बाद साल 1924 में इस परियोजना को रोक दिया। अगर ये परियोजना जारी रहती तो 1928 तक रेल मसूरी पहुंच गई होती।

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Doon to Mussoorie train
मसूरी के पहाड़
दो बार किया गया था रेल लाइन बिछाने का सर्वे

आपको बता कें दि साल 1900 में देहरादून-हरिद्वार के बीच रेल चलनी शुरू हो गई। इसके बाद अंग्रेजों ने मसूरी तक रेल ले जाने का सोचा। मसूरी तक रेल लाइन बिछाने के लिए दो बार सर्वे किया गया था। रेल लाइन के लिए पहला सर्वे साल 1885 में हर्रावाला से राजपुर गांव होते हुए मसूरी तक के लिए किया गया था। जबकि दूसरा सर्वे 1920-21 में किया गया था।

Doon to Mussoorie train
टनल
टनल हादसे के बाद रोक दिया गया था परियोजना को

साल 1924 में इस प्रोजेक्ट को रोक दिया गया। रेल लाइन बनाने की उम्मीद में ही साल 1888 में झड़ीपानी में ओक ग्रोव स्कूल की स्थापना की गई थी। रेल लाइन तो बन नहीं सकी लेकिन इस स्कूल का संचालन आज भी उत्तरी रेलवे द्वारा किया जाता है। यहां पर रेलवे कर्मचारियों के बच्चे पढ़ते हैं।

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मसूरी तक रेल लाइन दोबारा ना ले जाने के पीछे का एक कारण मसूरी के पहाड़ों की प्रवृत्ति भी है। दरअसल मसूरी के पहाड़ चूना और ग्रेनाइट के बने हुए हैं। बारिश के पानी के जमा होने से यहां भूस्खलन खतरा बढ़ जाता है। साल 1924 में भी संभवत: इसी वजह से यहां भूस्खलन हुआ होगा। टनल में भूस्खलन होने के बाद अंग्रेजों ने मसूरी तक रेल ले जाने का इरादा छोड़ दिया। बता दें कि वैज्ञानिकों के मुताबिक मसूरी में खण्डित या दरारों वाली चूनापत्थर की चट्टानें हैं। इनकी दरारों में बारिश का पानी भर जाने के कारण लगभग 60 डिग्री तक की ढलान वाली धरती की सतह धंसने लगती है।

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