अपने गढ़ों को बचाने की चुनौती, कुल 48 सीटों के साथ चुनाव मैदान में

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उत्तराखंड क्रांति दल (उक्रांद) ने द्वाराहाट विधान सभा क्षेत्र से पूर्व विधायक पुष्पेश त्रिपाठी को चुनाव मैदान में उतारा है। उक्रांद के संस्थापक सदस्य स्व. विपिन त्रिपाठी की जन्म एवं कर्मभूमि रही इस सीट से वर्ष 2002 में विपिन त्रिपाठी चुनाव लड़े और विजयी रहे। उन्होंने कांग्रेस के पूरन चंद्र को हराया, लेकिन 2004 में उनका निधन हो गया।

जिसके बाद उनकी इस विरासत को उनके पुत्र पुष्पेश त्रिपाठी ने संभाला व 2005 के उप चुनाव में वह चुनाव जीत गए। इसके बाद 2007 में एक बार फिर इस सीट पर पुष्पेश त्रिपाठी विजयी रहे, लेकिन इसके बाद यह सीट एक बार कांग्रेस व एक बार भाजपा के पास रही है। इसके अलावा कुमाऊं की डीडीहाट सीट भी उक्रांद का गढ़ रही है।

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दल के केंद्रीय अध्यक्ष काशी सिंह ऐरी इस सीट से तीन बार विधायक रहे हैं। 1985, 1989 व 1993 में ऐरी इस सीट से चुनाव जीते। राज्य गठन के बाद वर्ष 2002 में डीडीहाट सीट दो हिस्सों में बंट गई। इससे कनालीछीना विधानसभा सीट अस्तित्व में आई। उक्रांद के केंद्रीय अध्यक्ष काशी सिंह ऐरी इस सीट से विजयी रहे, लेकिन वर्ष 2012 में कनालीछीना सीट खत्म हो गई। डीडीहाट और कनालीछीना सीट से चार बार के विधायक रहे दल के केंद्रीय अध्यक्ष काशी सिंह ऐरी इस बार खुद चुनाव नहीं लड़ रहे हैं। दल ने इस सीट से गोविंद सिंह बसेड़ा को चुनाव मैदान में उतारा है। जो पूर्व सैनिक हैं।

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इसके अलावा गढ़वाल में देवप्रयाग विधान सभा सीट से दल के पूर्व केंद्रीय अध्यक्ष दिवाकर भट्ट 2007 से 2012 तक विधायक रहे हैं। जो एक बार फिर इस सीट से भाग्य आजमा रहे हैं। देखना यह है कि दल इस चुनाव में अपने इन गढ़ों पर जीत वैतरणी पार कर पाता है या नहीं।

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