देहरादून : सकेल घरेलू उत्पाद यह बताता है कि राज्य कितना समृद्ध है और किसी दिशा में आगे बढ़ रहा है। हर साल डीजीपी का आकलन किया जाता है। देशभर के साथ ही राज्य अपने स्तर पर भी जीडीपी का आकलन करते हैं। उत्तराखंड पहला ऐसा राज्य है, जहां सकल घरेलू उत्पात की तरह ही सकल पर्यावरणीय उत्पाद (जीईपी) का आकलन किया जाएगा। इसके लिए तैयारी शुरू हो गई है। सरकार ने जीईपी के आकलन के मद्देनजर कसरत शुरू कर दी गई है।
इसके तहत पर्यावरणीय सेवाओं से जुड़े सभी बिंदुओं पर आंकड़े जुटाने की कवायद चल रही है। उम्मीद जताई जा रही है कि आने वाले वर्ष में जीईपी के सामने आने पर जीडीपी में वानिकी क्षेत्र के लिए कुछ नए प्रविधान हो सकते हैं। ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से पार पाने के लिए पद्मभूषण पर्यावरणविद् डा अनिल प्रकाश जोशी वर्ष 2010 से लगातार ही राज्य में जीईपी के आकलन की आवाज उठा रहे थे।
उन्होंने कई बार सरकार और शासन के प्रतिनिधियों से इस विषय पर वार्ता की। साथ ही जीईपी के महत्व और इसकी खूबियों को रेखांकित किया। लंबी प्रतीक्षा के बाद प्रदेश की वर्तमान सरकार ने जीईपी के महत्व को समझा और इस वर्ष विश्व पर्यावरण दिवस पर पांच जून को वन एवं पर्यावरण मंत्री डा हरक सिंह रावत ने राज्य में जीईपी का आकलन कराने के सरकार के निर्णय की जानकारी सार्वजनिक की। बाद में राज्य मंत्रिमंडल ने भी इस पर अपनी मुहर लगाई।
क्या है जीईपी
जीडीपी की तर्ज पर जीईपी का आकलन होने पर यह पता चल सकेगा कि राज्य में मिल रही पर्यावरणीय सेवाओं का मूल्य क्या है। इनमें किस तरह की वृद्धि अथवा कमी दर्ज की जा रही है। इन दोनों के अंतर के बाद जो स्थिति आएगी, वह जीईपी कहलाएगी।
ऐसा करने वाला पहला राज्य है उत्तराखंड, शुरू होने जा रहा है ये काम
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