दिल्ली:- न्यायालय को तब पता चला कि सरकार ने देश में करीब तीन करोड़ राशन कार्ड खत्म कर दिए हैं। इसे न्यायालय ने अत्यंत गंभीर मामला बताया और केंद्र सरकार व सभी राज्यों से जवाब मांगा। सीजेआई एसए बोबडे ने कहा कि बंबई उच्च न्यायालय में भी मेरे सामने इसी प्रकार का मामला आया था। सरकार की तरफ से जवाब में पहले भी कहा गया और फिर कहा जाएगा कि आधार से लिंक न होने की वजह से राशन कार्ड निरस्त किए गए। न्यायालय एक-दो बार जवाब मांगेगा फिर सुनवाई समाप्त होगी। भोजन न मिलने से मौतें होती रहेंगी। गरीबों की मौत पर कोई सुनवाई नहीं होती। भूख के आंकड़े भी सामने नहीं आया करते। अचरज की बात यह भी है कि आंकड़ों में कुपोषण से मौत को भी भूख दर्ज नहीं किया जाता। 2019 के बाद कुपोषण के आंकड़े आने भी बंद हो गए। विश्व गुरु बनने वाले भारत में भूख और कुपोषण से मरने वालों की संख्या सबसे अधिक है। भारत में किशोर, युवा, अधेड़ व बुजुर्गों की पौष्टिक पेटभर आहार न मिलने से मौत के आंकड़े कई गुना ज्यादा हैं। कई दिन तक भोजन न मिलने से जान जाने को ही भूख से मौत कहना उचित नहीं है। कुपोषित शरीर गंभीर बीमारियों से घिर जाता है। इलाज के लिए रुपए न होना, अस्पताल तक पहुंच न रख पाना जैसे कारण भी भूख-गरीबी से मौत है। मौत की इन संख्याओं को जोड़ दिया जाए तो भारत की एक तिहाई आबादी असमय मर जाया करती है।
अब सरकार ने गरीबों के जीने का अधिकार ही खत्म कर दिया है। इसके लिए कई कानून बनाए जा रहे हैं। पहले मध्यम कमाई करने वालों को गरीब करना है फिर उसे मरने के लिए छोड़ देना है। देश में तीन करोड़ राशन कार्ड कब खत्म कर दिए पता भी न चला। क्योंकि गरीबों की तरफ नजर ही नहीं जाया करती है। सिलेंडर से पहले सब्सिडी छोडऩे की कसमें खिलाई गईं, बाद में सभी की रियायत खत्म कर दी। यही हाल राशन कार्डों का भी है।