परिसीमन की आहट के बीच बदलाव की दहलीज पर उत्तराखंड

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उत्तराखंड की 70 विधानसभा सीटों पर मतदान हो जाने के बाद अब इंतजार है मतगणना का। 10 मार्च के बाद ये तय हो जाएगा कि उत्तराखंड के सियासी तख्त पर कौन बाजी मारेगा। राज्य के करीब 82 लाख मतदाताओं के वोट न केवल 632 प्रत्याशियों के भाग्य तय करेंगे बल्कि राज्य का भविष्य भी लिखेंगे। इसलिए 2022 का विधानसभा चुनाव बदलाव के लिहाज से कुछ मायनों में अहम माना जा रहा है।

ये चुनाव खांटी सियासी दिग्गज हरीश रावत, गोविंद सिंह कुंजवाल, बंशीधर भगत, सतपाल महाराज सरीखे उम्रदराज नेताओं के सियासी भविष्य के लिए निर्णायक माना जा रहा है। सिर्फ उनके लिए नहीं मैदान में उतरे सभी प्रत्याशियों के लिए यह चुनाव जातीय, क्षेत्रीय और विकास से जुड़े समीकरणों के लिहाज से महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

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2026 में नए परिसीमन के बाद 2027 में होने वाले चुनाव में 70 विधानसभा सीटों पर कहीं कम तो कहीं ज्यादा भौगोलिक समीकरण प्रभावित होंगे। ये बदलाव सियासी दलों और उनके नेताओं की नई सियासी और चुनावी रणनीति तय करेगा। साल 2026 में उत्तराखंड में होने वाले इन परिवर्तनों का प्रभाव 2027 के विधानसभा चुनाव में देखने को मिल सकता है।

उत्तराखंड के चुनावी समर में मतदाताओं को सबसे पहले यह जानने की बेताबी रहेगी कि प्रदेश की सत्ता पर किस दल की सरकार काबिज होगी। क्या राज्य में भाजपा दोबारा सरकार बनाएगी, या एक बार फिर उत्तराखंड नई सरकार के गठन का गवाह बनेगा। ईवीएम में वोट बंद होने के बाद जब 10 मार्च को खुलेंगे तो इस सवाल का जवाब मिल जाएगा।

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सियासी बदलाव की दहलीज पर खड़े उत्तराखंड में 2022 का विधानसभा चुनाव भौगोलिक और सामाजिक समीकरणों के लिहाज से आखिरी होगा। 2026 में परिसीमन के बाद राज्य की 70 विधानसभा सीटों के सियासी समीकरण बदलेंगे। साथ ही विकास की प्राथमिकताएं भी बदलेंगी। राजनीतिक पार्टियों और सियासी नेताओं को इस बदलाव के लिहाज से अपनी सियासी रणनीति भी बदलनी होगी। पहाड़ी बनाम मैदानी के मुद्दे को एक बार फिर हवा मिल सकती है।

2022 के विधानसभा चुनाव उम्रदराज और खांटी राजनीतिज्ञों के लिए आखिरी दांव माना जा रहा है। यह चुनाव उनके राजनीतिक भविष्य को भी तय करेगा। कांग्रेस के दिग्गज नेता हरीश रावत, गोविंद सिंह कुंजवाल, दिनेश अग्रवाल, हीरा सिंह बिष्ट, भाजपा के बंशीधर भगत, यूकेडी के दिवाकर भट्ट समेत कई अन्य उम्रदराज नेताओं के लिए यह चुनाव आर या पार वाला माना जा रहा है।

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सियासी जानकारों का मानना है कि राजनीतिक दल भाजपा हो या कांग्रेस या फिर कोई अन्य दल, सभी में अगले विधानसभा चुनाव तक नया सियासी दौर आएगा। दिग्गज और खांटी नेताओं की पीढ़ी चुनाव हारी तो उनकी जगह नई पीढ़ी के नेता जगह लेंगे। भाजपा और कांग्रेस सरीखे दलों में दूसरी पांत के नेताओं के हाथों में कमान थमाई जा चुकी है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी, अनिल बलूनी, गणेश गोदियाल, प्रीतम सिंह सरीखे कई नेता नए ध्रुव होंगे।

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