
Igas kab hai igas bagwal 2025 date
Igas kab hai: हाल ही में पूरे देशभर में दीपावली का पर्व मनाया गया। कहीं 20 अक्टूबर तो वहीं कुछ जगहों पर 21 अक्टूबर को दिवाली मनाई गई। ये हिंदुओं के सबसे बड़े त्यौहारों में से एक होता है। लेकिन उत्तराखंड(Uttarakhand) में दिवाली 11 दिन बाद भी मनाई जाती है। जिसे पहाड़ की दिवाली, इगास या बूढ़ी दिवाली के नाम से जाना जाता है। चलिए जानते है कि इस बास इगास बग्वाल कब मनाई(igas bagwal 2025 Date) जा रही है।
Igas kab hai: उत्तराखंड में 11 दिन बाद दिवाली (Igas Diwali Date)
उत्तराखंड में दिवाली के 11 दिन बाद कार्तिक शुक्ल की एकादशी को इगास बग्वाल या बूढ़ी दीपावली का त्यौहार मनाया जाता है। इस बार दिवाली 20 अक्टूबर को मनाई गई। ऐसे में इगास बग्वाल इस साल दिवाली के 11 दिन बाद यानी कि 1 नंवबर(Igas Diwali Date) को पड़ रहा है।
इस दिन लोग सुबह उठकर मीठे पकवान बनाते हैं। तो वहीं शाम के समय स्थानीय देवी-देवताओं की पूजा की जाती है। जिसके बाद भैला खेला जाता है। भैला या भैलो एक तरह का मशाल या आग की गेंद होती है। जिसे जलाकर घुमाया
इगास बग्वाल EFGAS BAGWAL
11 दिन बाद क्यों मनाई जाती है igas Bagwal?
मान्यताओं के अनुसार दिवाली का त्यौहार भगवान राम के अयोध्या लौटने पर मनाया जाता है। कार्तिन कृष्ण की अमावस्या को लोगों ने भगवान राम का दीए जलाकर स्वागत किया था। लेकिन गढ़वाल क्षेत्र में राम जी के वनवास से वापस लौटने की खबर 11 दिन बाद आई थी। यही कारण है कि पहाड़ में कार्तिक शुक्ल एकादशी को दीपावली का त्यौहार मनाया जाता है। जिसे बूढ़ी दिवाली या इगास बग्वाल भी कहते है। इस दिन गाय और बैल की पूजा की जाती है। रात को सभी पहाड़वासी इस दौरान पारंपरिक भैलो खेलकर जश्न मनाते है।
इगास से जुड़ी है वीर माधो सिंह भंडारी की कहानी
इगास की कहानी को वीर माधो सिंह भंडारी से भी जोड़ा जाता है। “बारह ए गैनी बग्वाली, मेरो माधी नि आई” ये गीत माधोसिंह भंडारी से जुड़ा हुआ है जो कि गढ़वाल रियासत के सेनापति थे। बात उस समय की है जब गढ़वाल रियासत में राजा महिपति शाह का शासन हुआ करता था और इस रियासत का सबसे बड़ा दुश्मन था तिब्बत।
गढ़वाल रियासत के राजा महिपति शाह ने अपने सेनापति माधोसिंह भंडारी को तिब्बत के राजा से युद्ध करने भेजा। इसके साथ ही उन्होंने माधोसिंह को ये आदेश भी दिया की दीपावली से एक दिन पहले तक युद्ध जीत कर सेना समेत तुम श्रीनगर लौट आना। राजा की आज्ञा पाकर माधोसिंह अपने दल बल समेत तिब्बत के राजा से युद्ध करने चले गए और इस युद्ध को जीत भी गए।
ऐसे शुरू हुई इगास बग्वाल की शुरूआत
माधोसिंह ने युद्ध तो जीत लिया लेकिन इसकी सूचना गढ़वाल रियासत तक नहीं पहुंच पाई और दीपावली आ गई। दीपावली तक कोई सूचना ना मिलने के कारण अफवाहें फैल गई कि गढ़वाली सेना युद्ध में मारी गई। राजा ने भी मान लिया कि उसकी सेना मारी गई। जिसके बाद राजा ने रियासत में ऐलान करवा दिया कि इस बार रियासत में दीपावली नहीं मनाई जाएगी।
शोक में डूबे गढ़वाल में दीपावली नहीं मनाई गई। लेकिन शोक में डूबे गढ़वाल के बीच खुशी की लहर तब आई जब सूचना मिली की तिब्बत युद्ध में माधो सिंह भंडारी की जीत हुई है और वो जल्द ही सेना के साथ श्रीनगर पहुंच जाएंगे। जिसके बाद राजा ने ऐलान करवाया कि अब दीपावली तभी मनाई जाएगी जब माधो सिंह भंडारी श्रीनगर पहुंचेंगे। दीपावली के 11 दिन बाद उन्होंने श्रीनगर में कदम रखा और इस दिन सारी रियासत को दुल्हन की तरह सजाया गया और रियासत में दीपावली मनायी गई। तभी से गढ़वाल में इगास बग्वाल की शुरूआत हुई।


