

नैनीताल – नैनीताल में नाबालिग से दुष्कर्म के आरोपी के घर पर की जा रही संभावित बुलडोजर कार्रवाई पर उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने सख्त रुख अपनाया है। न्यायालय ने नगर पालिका की कार्रवाई को सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अवमानना बताते हुए, एसएसपी नैनीताल और नगर पालिका के अधिशासी अधिकारी (ईओ) से स्पष्टीकरण तलब किया है।
मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जे. नरेंद्र की खंडपीठ के समक्ष इस मामले का उल्लेख अधिवक्ता कार्तिकेय हरि गुप्ता ने किया। उन्होंने बताया कि आरोपी मोहम्मद उस्मान की पत्नी – जो एक वरिष्ठ नागरिक हैं – ने नगर पालिका के 1 मई को जारी भवन ध्वस्तीकरण नोटिस को चुनौती दी है। उनका कहना है कि वह पिछले तीन दिनों से घर में नहीं घुस पाई हैं और डर के माहौल में लगातार भाग रही हैं।
गुप्ता ने अदालत को बताया कि नगर पालिका ने घर के बाहर चुपचाप नोटिस चस्पा कर दिया, जबकि परिवार को इसकी कोई जानकारी नहीं दी गई। उन्होंने दावा किया कि यह सीधे तौर पर सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की अवमानना है। न्यायालय ने सख्त टिप्पणी करते हुए पूछा “क्या सुप्रीम कोर्ट का आदेश अब कानून नहीं रहा? क्या यह आप पर लागू नहीं होता?”
गाड़ी पड़ाव क्षेत्र में दुकानों की तोड़फोड़ पर भी अदालत ने नाराज़गी जताई और सवाल उठाया कि “भीड़ के पीछे पुलिस खड़ी थी, फिर भी वह नियंत्रण क्यों नहीं कर पाई?” इस बीच याचिकाकर्ता ने यह भी आरोप लगाया कि भीड़ उनके घर को जलाने की कोशिश कर रही है और उन्हें सुरक्षा की आवश्यकता है। इतना ही नहीं, न्यायालय ने कहा कि जब आरोपी को हल्द्वानी न्यायालय में पेश किया गया तो अधिवक्ता ने विरोध क्यों किय और ये अधिवक्ता उसे पीटने क्यों दौड़े। कहा कि कैसे एक वकील किसी को केस की पैरवी करने से रोक सकता है ? कहा कि अगर पुलिस सतर्क होती तो यह घटना नहीं होती।
सरकारी अधिवक्ता ने अदालत को आश्वस्त किया कि कोई बुलडोजर नहीं चलाया गया है और नोटिस सिर्फ स्थिति स्पष्ट करने के लिए जारी किया गया था, न कि ध्वस्तीकरण के लिए। उन्होंने यह भी कहा कि यह नोटिस केवल आरोपी को नहीं, बल्कि अन्य संबंधित लोगों को भी भेजा गया है। इस पर मुख्य न्यायाधीश ने तीखा सवाल दागा, “क्या आपके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट की अवमानना का नोटिस जारी किया जाए?” अंत में, अदालत ने आदेश दिया कि एसएसपी और अधिशासी अधिकारी न्यायालय के उठने से पहले मामले में स्पष्ट निर्देश प्रस्तुत करें।