

रक्षाबंधन जैसे पवित्र पर्व से ठीक पहले जिला प्रशासन और खाद्य सुरक्षा विभाग की संयुक्त टीम ने शहर के प्रतिष्ठित मंगलम स्वीट एंड फास्ट फूड प्रतिष्ठान पर छापेमारी कर चार संदिग्ध खाद्य पदार्थों के नमूने लिए। खोया, काजू टुकड़ा, मैदा और कलाकंद के नमूनों को मौके पर ही सील कर जांच के लिए भेज दिया गया।
यह कार्रवाई यूं तो आवश्यक थी, लेकिन सवाल यह है कि प्रशासन हर बार त्योहारों के मौके पर ही क्यों सक्रिय होता है? क्या मिठाई विक्रेताओं की मनमानी और मिलावटखोरी सिर्फ रक्षाबंधन, दीपावली और होली जैसे त्योहारों तक सीमित रहती है? या फिर आम दिनों में जनता की सेहत का कोई मोल नहीं?
गौरतलब है कि पिछले महीने भी खाद्य सुरक्षा अधिकारी आशा आर्या द्वारा इसी प्रतिष्ठान से लिए गए सर्विलांस नमूनों की जांच में खामियां पाई गई थीं। नमूने असुरक्षित घोषित किए गए थे और प्रतिष्ठान के पास खाद्य अनुज्ञप्ति से जुड़ी गंभीर कमियां मिली थीं। इस आधार पर FSSA 2006 की धारा 56 के अंतर्गत अपर जिलाधिकारी न्यायालय (वित्त एवं राजस्व) में वाद भी दायर किया जा चुका है।
यह घटनाक्रम यह सोचने पर मजबूर करता है कि जब पिछली रिपोर्ट में मिलावट प्रमाणित हो चुकी थी, तब तकरीबन एक महीने तक प्रशासन ने और क्या इंतजार किया? क्या जनता की सेहत से बड़ा भी कोई कारण होता है टालमटोल का?
दुखद बात यह है कि इस तरह के प्रतिष्ठान पूरे वर्ष लोगों की सेहत से खुलकर खिलवाड़ करते हैं। घटिया तेल, मिलावटी खोया और बासी मिठाइयों से आम नागरिकों के शरीर में ज़हर परोसा जाता है। लेकिन इसके बावजूद न सख्त सजा होती है, न लाइसेंस निरस्त होते हैं। आखिर क्यों इन कारोबारियों को बार-बार माफ़ी मिलती है? क्या उनका मुनाफा, जनता की जान से ज़्यादा कीमती है?
हर त्यौहार पर प्रशासनिक चौंकन्नापन तारीफ के योग्य है, लेकिन सवाल यह है कि क्या यह जागरूकता सालभर कायम नहीं रहनी चाहिए? आखिर मिलावट तो त्योहार नहीं देखती—वह तो सीधे लोगों की जान से खेलती है
