
बिंदुखत्ता, 21 मार्च 2025 – वन अधिकार समिति बिंदुखत्ता के प्रतिनिधिमंडल ने आज देहरादून में विधानसभाध्यक्ष ऋतु खंडूरी को ज्ञापन सौंपकर बिंदुखत्ता राजस्व ग्राम की अधिसूचना जारी करने हेतु उत्तराखंड शासन से वन अधिकार अधिनियम (एफ.आर.ए.) 2006 के प्रावधानों के अनुसार कार्यवाही करवाने की मांग की गई।
ज्ञापन में तीन बिंदुओं पर कार्यवाही की मांग की गई है
1.एफ.आर.ए. 2006 के प्रावधानों का उल्लंघन – उत्तराखंड शासन के राजस्व अनुभाग-01 ने बिंदुखत्ता राजस्व ग्राम के दावे को 3470 हेक्टेयर वन भूमि को अनारक्षित करने हेतु वन विभाग को भेज दिया, जबकि एफ.आर.ए. 2006 की धारा 6(6) एवं धारा 4(7) के अनुसार, जिला स्तरीय समिति की स्वीकृति के बाद वन संरक्षण अधिनियम 1980 के तहत वन भूमि को अनारक्षित करने की कोई आवश्यकता नहीं है। यह कार्यवाही अधिनियम के विपरीत की जा रही है।
2.वर्ष 1975 की रिपोर्ट को आधार बनाकर गलत निर्णय की आशंका – वन विभाग सिर्फ 136 एकड़ भूमि को वन अधिकार अधिनियम 2006 के तहत मान्यता देने और शेष भूमि को वन एवं पर्यावरण मंत्रालय, भारत सरकार भेजने की तैयारी कर रहा है। ज्ञापन में इस पर आपत्ति जताते हुए कहा गया कि समिति ने अपनी रिपोर्ट में 12 सितंबर 2006 की वन संरक्षक पश्चिमी वृत्त की रिपोर्ट संलग्न की थी, जिसमें साफ उल्लेख है कि 1975 की रिपोर्ट वास्तविक गणना पर आधारित नहीं थी इसलिए, 1975 की रिपोर्ट को आधार बनाकर कोई निर्णय लेना अनुचित है।
3.उत्तराखंड विधानसभा में उठा मुद्दा – 20 फरवरी 2025 को विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य एवम् भाजपा विधायक महंत दलीप रावत ने इस मुद्दे को उठाया। जवाब में मा. वन मंत्री ने कहा कि “अभी 73 वर्ष ही हो रहे हैं,” जबकि एफ.आर.ए. 2006 की धारा 2(ण) स्पष्ट रूप से कहती है कि यदि कोई समुदाय 31 दिसंबर 2005 से कम से कम तीन पीढ़ियों से वन भूमि पर निवास कर रहा हो, तो वह वन अधिकार अधिनियम का पात्र है। 75 वर्ष से एक ही स्थान पर रहना अनिवार्य नहीं है।
वन अधिकार समिति ने विधानसभा अध्यक्ष से आग्रह किया कि वे इस मामले में शासन स्तर पर हस्तक्षेप करें और राजस्व ग्राम की अधिसूचना जारी करवाने हेतु उत्तराखंड शासन को आवश्यक निर्देश दें, ताकि 11703 परिवारों को जनकल्याणकारी योजनाओं का लाभ मिल सके।
प्रतिनिधिमंडल में अध्यक्ष अर्जुन नाथ गोस्वामी, सदस्य उमेश भट्ट एवं संरक्षक एडवोकेट बलवंत बिष्ट तथा गणेश कांडपाल शामिल रहे।