उत्तराखंड में जिला सहकारी बैकों के तहत हुई चतुर्थ श्रेणी की भर्ती मामले पर जांच रिपोर्ट दफ्तरों के चक्कर काट रही है. हैरानी की बात यह है कि जांच में गड़बड़ियों की पुष्टि हो चुकी है, लेकिन रिपोर्ट को गेंद की तरह मंत्री से सचिव और सचिव से दूसरे विभागों की तरफ सरकाया जा रहा है. उधर जांच को करीब 1 साल पूरा होने के बाद अब एक नई जांच करवाने की सलाह ली जा रही है।
उत्तराखंड में शायद ही किसी फाइल ने इतने विभागों के चक्कर काटे होंगे, शायद ही किसी जांच रिपोर्ट को इतना जलेबी की तरह घुमाया गया होगा. हम बात कर रहे हैं सहकारी बैंकों में चतुर्थ श्रेणी की नियुक्ति में हुई गड़बड़ी मामले की।
मामला 2 साल पुराना है. जिसके करीब 1 साल पहले जांच के आदेश हुए, लेकिन जांच रिपोर्ट आने के बाद भी फाइल दफ्तरों के ही चक्कर काट रही है. हैरानी की बात यह है कि अब इस जांच रिपोर्ट के आधार पर एक नई जांच करवाने का रास्ता ढूंढा जा रहा है।
ईटीवी भारत के पास मौजूद एक्सक्लूसिव जानकारी के अनुसार पूरी हो चुकी जांच रिपोर्ट के बल पर अब रिटायर आईएएस अधिकारी या रजिस्ट्रार से जांच कराने के प्रयास किए जा रहे हैं।
हैरानी की बात यह है कि यह रिपोर्ट कई बार सहकारिता सचिव बीवीआरसी पुरुषोत्तम से विभागीय मंत्री धन सिंह रावत और जांच अधिकारी से लेकर न्याय और कार्मिक विभाग तक घूम चुकी है. मगर न तो मंत्री और ना ही शासन इस बात की हिम्मत जुटा पा रहा है कि जांच रिपोर्ट में जो गड़बड़ियां पाई गई है उस पर फौरन कार्रवाई की जाए. विभागीय मंत्री धन सिंह रावत की 1 साल बाद भी रटा रटाया बयान दे रहे हैं।
इस पूरे मामले में मजे की बात यह है कि जांच रिपोर्ट को न्याय विभाग के पास भी भेजा जा चुका है. आपको जानकर आश्चर्य होगा कि न्याय विभाग से पूछा जा रहा है कि क्या शासन इस मामले की जांच कमेटी गठित कर सकता है, क्योंकि नियुक्तियों में पूरा नियंत्रण निबंधक सहकारी समिति का होता है।
लिहाजा सहकारी समिति अधिनियम 2003 के तहत न्याय विभाग से इस पर परामर्श मांगा गया, लेकिन न्याय विभाग ने जो जवाब दिया उसने शासन की कार्यप्रणाली पर ही सवाल खड़े कर दिए हैं।
न्याय विभाग ने साफ कर दिया कि जब मामले की जांच के लिए कमेटी गठित की जा चुकी है तो ऐसे में इसके लिए अब परामर्श का कोई औचित्य ही नहीं है. यानी पहले जांच कमेटी गठित कर दी गई और फिर न्याय विभाग के पास फाइल भेजी गई।
बरहाल जांच रिपोर्ट न्याय विभाग से निकलकर सचिव साहब के पास पहुंची. सचिव से मंत्री धन सिंह के कार्यालय में भी फाइल पहुंची. अब विभागीय सचिव बीवीआरसी पुरुषोत्तम कह रहे हैं कि फाइल को कार्मिक विभाग में भेजकर फिर से इस पर परामर्श दिया जा रहा है।
वैसे इस नियुक्ति में हुई गड़बड़ी के पूरे मामले को देखें तो यह पूरा मामला साल 2020-2021 का है. जिसमें मार्च 2022 में मंत्री धन सिंह रावत ने देहरादून उधम सिंह नगर और पिथौरागढ़ के जिला सहकारी बैंकों की जांच के आदेश दिए।
जांच के लिए नीरज बेलवाल की अध्यक्षता में जांच कमेटी भी गठित की गई. जिसने अक्टूबर 2022 तक सभी जिलों की जांच रिपोर्ट शासन को सौंपी. इसके बाद यह जांच रिपोर्ट एक टेबल से दूसरे टेबल में घुमाई जा रही है।
अब जानिए कि जांच रिपोर्ट में आखिरकार क्या-क्या निकला
देहरादून जिला सहकारी बैंक में जांच के दौरान अनुभव प्रमाण पत्र, शारीरिक दक्षता खेल प्रमाण पत्र और शैक्षणिक गतिविधियों के प्रमाण पत्र के आधार पर अंकों का हेरफेर करने की बात सामने आई. यही नहीं इसमें कूट रचना से लेकर बिना हस्ताक्षर वाले साक्षात्कार शीट का संज्ञान नहीं लिया गया. चौंकाने वाली बात यह है कि 25 जनवरी तक आवेदन प्राप्त करने की अंतिम तारीख थी। 27 जनवरी तक आवेदन स्वीकार कर लिए गए. आर्थिक रूप से कमजोर अभ्यर्थियों को आरक्षण बिना प्रमाण पत्र के ही दे दिया गया. उधर जांच अधिकारी ने इन गड़बड़ियों के लिए अध्यक्ष, महाप्रबंधक और सहायक निबंधक के जवाब को भी संतोषजनक नहीं पाया।
पिथौरागढ़ जिला सहकारी बैंक में भी इसी तरह अंकों का हेरफेर हुआ. खेलकूद के अलावा शैक्षणिक गतिविधियों में तो अंक ही नहीं दिए गए. इसका जवाब भी वहां के जिला सहकारी बैंक के अध्यक्ष और दूसरे अधिकारियों ने दिया वह भी संतोषजनक नहीं था।
तीसरे जिले के रूप में उधम सिंह नगर के जिला सहकारी बैंक की जांच हुई. यहां भी आरक्षण 7 पदों पर दिया जाना था, लेकिन 5 पद पर ही आरक्षण रखा गया. शैक्षिक अभिलेखों का सत्यापन तक नहीं किया गया. अंको में हेरफेर और आवेदन की अंतिम तिथि के बाद भी आवेदन स्वीकार हुए. इतना ही नहीं आवेदन पत्र प्राप्ति पंजिका में भी कूट रचना की गई. अनुभव प्रमाण पत्र में भी अनियमितता पाई गई हैं।
कुल मिलाकर तीनों जिलों में जिला सहकारी बैंकों के भीतर चतुर्थ श्रेणी की भर्ती के दौरान भारी अनियमितता और गड़बड़ियों के साथ कूट रचना तक की बात सामने आई. मगर विभागीय मंत्री है कि गड़बड़ी पाए जाने पर कड़ी कार्रवाई का राग अलाप रहे हैं।
जब जांच रिपोर्ट में गड़बड़ी मिल गई है तो अब कौन सी नई रिपोर्ट का इंतजार किया जा रहा है. जिस तरह इस रिपोर्ट को जांच के लिए एक टेबल से दूसरे टेबल भेजा जा रहा है वह मामले में अधिकारियो और मंत्री की मंशा पर ही सवाल खड़े करती है