हल्दुचौड़ प्रेम सद्भाव भाईचारे का प्रतीक होली का त्यौहार बड़े धूमधाम से मनाया जा रहा है कहते हैं इस दिन सारे गिले शिकवे भुला कर एक दूसरे के गले मिलकर रंगों के साथ होली खेलते हैं क्षेत्र में बूढ़े बच्चे जवान महिलाएं सब होली के रंगों में रंगे हुए हैं यूं तो यह त्यौहार पहले आदमी मनाया करते थे आदमियों की व्यस्तता के चलते और शराब का अत्यधिक प्रचलन होने से त्यौहार को पुरुषों में कोई दिलचस्पी नहीं है हमारी इस संस्कृति को बचाए रखने में महिलाओं का बहुत बड़ा योगदान है
महिलाएं घर घर जाकर होली गायन करते हैं देखा जाए हर क्षेत्र में महिलाएं ही होली का गायन करते हैं हमारा परिवेश बहुत बदल गया है जिससे समाज में विकृतियां आने लगी है फिर भी महिलाओं ने इसको संवारा है हल्दुचौड़ परमा मैं महिलाओं ने शिव के मन माहि बसे काशी.रंग बरसे भीगे चुनरवाली, जल कैसे भरूं जमुना गहरी ,सुमिरो सीताराम, ब्रज मंडल देख देखो रसिया, आदि होली के गीतों के साथ कुमाऊनी गीतों को गाकर खूब मनोरंजन किया महिलाओं में मुख्य रूप से गीता खोलिया, बसंती पांडे ,सरस्वती पांडे, भगवती, प्रेमा ,कविता, दीपांशी देवकीदेवी ,ममता, कमला , जानकी, रेखा, आनंदी ,समेत दर्जनों महिलाएं शामिल थी