Uttarakhand Election : हरिद्वार लोकसभा सीट पर हरदा का पुत्र मोह, जिद्द के आगे झुकी कांग्रेस

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हरिद्वार लोकसभा सीट से कांग्रेस ने पूर्व सीएम हरीश रावत के बेटे वीरेंद्र रावत को मैदान में उतारा है। कांग्रेस आलाकमान हरिद्वार से हरीश रावत को ही मैदान में उतारना चाहती थी। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा भी लेकिन हरीश रावत को टिकट देने के समर्थन में थे। लेकिन हरीश रावत की जिद्द के आगे पार्टी आलाकमान को भी झुकना पड़ा।


हरिद्वार सीट पर कांग्रेस का पेंच फंसा था। काफी मशक्कत के बाद पार्टी ने आखिरकार उम्मीदवार की घोषणा कर दी है। कांग्रेस ने पूर्व सीएम हरीश रावत के बड़े बेटे वीरेंद्र रावत को उम्मीदवार बनाया है। कांग्रेस के ज्यादातर लोग हरीश रावत को ही चुनाव लड़ाना चाहते थे।

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लेकिन हरीश रावत अपने बेटे क लिए टिकट की मांग कर रहे थे और इसी खीचतान में 12 दिन लग गए। अब इसे हरीश रावत का पुत्र मोह ही कहेंगे कि वो अपने बेटे को टिकट दिलाने पर अड़े रहे और वो पार्टी हाईकमान को इसके लिए मनाने में भी कामयाब हुए।

हरदा के बेटे का चुनावी राजनीति का श्रीगणेश
पिता की मजबूत पैरवी के साथ वीरेंद्र रावत को लोकसभा चुनाव के लिए टिकट मिल गया है और इसी के साथ हरदा के परिवार से एक और सदस्य उनके बड़े बेटे की चुनावी राजनीति का श्रीगणेश हो गया है। बता दें कि इस से पहले हरदा की बेटी अनुपमा रावत पिछले विधानसभा चुनावों में हरिद्वार ग्रामीण से चुनाव लड़ीं और विधायक भी बनी। जबकि उनकी पत्नी भी लोकसभा चुनाव लड़ चुकी हैं।

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वीरेंद्र मुझसे 19 नहीं बल्कि कालांतर में 21 साबित होंगे
वीरेंद्र रावत के नाम की घोषणा होने के बाद हरीश रावत ने सोशल मीडिया पर पोस्ट कर कहा है कि 1998 से निरंतर कांग्रेस कार्यकर्ता के रूप में उत्तराखंड में काम किया है और 2009 से निरंतर हरिद्वार में काम किया है। गांव-गांव लोगों के दुख-सुख में खड़े रहे हैं। 1996 में दिल्ली के सबसे बड़े महाविद्यालय दयाल सिंह डिग्री कॉलेज के अध्यक्ष रहे हैं, दिल्ली NSUI के महासचिव रहे हैं, उत्तराखंड में युवक कांग्रेस, कांग्रेस सेवादल और अब उत्तराखंड प्रदेश कांग्रेस कमेटी के उपाध्यक्ष हैं।

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पार्टी हाई कमान ने खूब जानकारी एकत्रित की और जब निश्चित हो गया कि पुत्र नहीं कार्यकर्ता भारी है तब वीरेंद्र रावत का हरिद्वार लोकसभा प्रत्याशी के रूप में चयन हुआ है। वीरेंद्र बेटे भी हैं, शिष्य भी हैं, मगर मैं एक बात पूरी दृढ़ता से कहना चाहूंगा कि सेवा, समर्पण, समन्वय, समरचता और विकास की सोच के मामले में वीरेंद्र मुझसे 19 साबित नहीं होंगे बल्कि कालांतर में 21 साबित होंगे।

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