देवीधुरा के ऐतिहासिक बग्वाल मेले में 9 मिनट तक बरसे फल और फूल, 150 से अधिक वीर घायल, वीडियो….

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देवीधुरा के ऐतिहासिक बग्वाल मेले में आस्था, परंपरा और उत्साह का अद्भुत संगम
नौ मिनट तक चली इस पारंपरिक पत्थर-बग्वाल में पत्थरों, फूलों और फलों की जमकर बरसात, 150 से अधिक बगवाली वीर घायल
देवीधुराच(चम्पावत)। प्रसिद्ध मां वाराही धाम देवीधुरा में आज आयोजित ऐतिहासिक बग्वाल मेले में आस्था, परंपरा और उत्साह का अद्भुत संगम देखने को मिला।

Video link- https://youtu.be/FQ8DEh1DZ20?si=rEVLUHsv7QU-n45R
पाटी ब्लॉक में स्थित मां वाराही धाम में सुबह प्रधान पुजारी द्वारा विधिवत पूजा-अर्चना के साथ बग्वाल की शुरुआत हुई। इसके बाद चारों खाम, वालिक (सफेद), चम्याल (गुलाबी), गहड़वाल (भगवा) और लमगड़िया (पीला) के बग्वालियों का प्रवेश हुआ।इस दौरान अलग-अलग रंगों के वस्त्रों और पगड़ियों में सजे योद्धाओं के हाथों में बांस और रिंगाल से बने ढाल थे।
जिनसे वे एक-दूसरे के प्रहारों से बचते रहे। उनके आगमन के साथ ही शंखनाद गूंज उठा और मां के जयकारों के बीच बग्वाल का आगाज़ हुआ। आसमान में फलों और फूलों की बरसात ने दृश्य को अलौकिक बना दिया, जबकि श्रद्धालुओं की उत्साहभरी आवाज़ों से पूरा मैदान गूंज उठा।
रक्षाबंधन पर वाराही धाम में आयोजित ऐतिहासिक बग्वाल इस बार रोमांच और अनुशासन के बीच शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हुई। दोपहर 1:57 बजे मंदिर से शंखनाद के साथ ही चारों खाम — वालिक, गहड़वाल, चम्याल और लमगड़िया — के बगवाली वीर आमने-सामने आ गए। नौ मिनट तक चली इस पारंपरिक पत्थर-बग्वाल में पत्थरों, फूलों और फलों की बरसात हुई, जिसमें 150 से अधिक बगवाली वीर घायल हुए, हालांकि सभी की चोटें मामूली थीं और उपचार के बाद उन्हें छोड़ दिया गया।
सुबह मौसम खराब होने से लोग देर से घरों से निकले, लेकिन मैदान के चारों ओर दूर-दूर तक दर्शकों का हुजूम उमड़ पड़ा। चारों खाम के वीर निर्धारित ड्रेस कोड — कुर्ता, पजामा और पगड़ी — में मैदान में उतरे। बग्वाल शुरू होने से पहले खाम प्रमुखों ने मां वाराही की परिक्रमा कर सुरक्षित आयोजन की प्रार्थना की।स्थानीय चिकित्सालय और मंदिर परिसर में तीन चिकित्सा शिविर लगाए गए थे।
सीएमओ डॉ. देवेश चौहान स्वयं निगरानी में रहे। उनके अनुसार किसी को गंभीर चोट नहीं आई। पुलिस की सख्त सुरक्षा व्यवस्था के चलते पूरे मेले में कहीं भी अव्यवस्था नहीं हुई।
मेले की सफलता का श्रेय जिलाधिकारी मनीष कुमार को दिया जा रहा है, जिन्होंने आयोजन से पहले कई बैठकें लेकर अधिकारियों को निर्देशित किया था कि यह मेला जिले की शान और परीक्षा दोनों है। 40 साल से मेला संयोजित कर रहे विनोद गड़कोटी के अनुसार, इतनी बेहतरीन व्यवस्था पहली बार देखने को मिली।
9 मिनट चले इस अनूठे युद्ध में पत्थरों के स्थान पर फल और फूलों का प्रयोग कर परंपरा को जीवंत रखा गया।
पीठाचार्य पंडित कीर्ति बल्लभ जोशी के अनुसार, फल-फूलों से खेली जाने वाली बग्वाल को अत्यंत शुभ और फलदायी माना जाता है।

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