नैनीताल । हाइकोर्ट ने हत्या के आरोप में निचली कोर्ट से उम्र कैद की सजा पाए दो लोंगों को अभियोजन पक्ष की झूठी रिपोर्ट के आधार पर 25 साल बाद बरी कर दिया है। जबकि इस मामले का एक अन्य आरोपी 88 वर्षीय इस्लाम फिलहाल जमानत पर है ।
इस मामले में मुख्य न्यायधीश आरएस चौहान व न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खण्डपीठ ने 15 जून को सुनवाई के बाद निर्णय सुरक्षित रख लिया था जिसमे आज खण्डपीठ ने अपना निर्णय सुनाया।
मामले के अनुसार 15 अगस्त 1996 को अफजल ने गंग नहर रुड़की थाने में एफआईआर दर्ज कर कहा था कि वह और उसके चाचा अकरम अपनी दुकान बंद कर रात करीब 7:45 बजे अपने घर सखनपुर रुड़की जा रहे थे। उनके साथ साथ दो अन्य लोग अब्बास और इरशाद भी अपने स्कूटर से आ रहे थे । घर पहुंचने से आधा किलोमीटर पहले कुछ अज्ञात लोगों ने उन पर गोली चला दी जिससे उसके चाचा अकरम की मौत हो गयी। पीछे से आ रहे अब्बास व इरशाद ने गोली चलाने वालों को पहचान लिया ।मुदकमा दर्ज होने पर पुलिस ने छः अज्ञात लोगों के खिलाफ आईपीसी की धारा 302 के अंतर्गत मुकदमा दर्ज किया। निचली अदालत में सुनवाई के दौरान नफीस, इस्लाम, सलीम को गवाहों ने पहचान लिया । जिन्हें अपर जिला जज द्वितीय हरिद्वार ने 2013 में पाँच पाँच हजार के जुर्माने के साथ आजीवन कारावास की सजा सुनवाई । तीनो अभियुक्तों द्वारा इस आदेश को हाइकोर्ट में चुनौती दी गयी।नफीस व सलीम के अधिवक्ता द्वारा इनकी जमानत हेतु चार बार कोर्ट में प्रार्थना पत्र दिया गया लेकिन कोर्ट ने इनकी जमानत प्राथर्ना पत्र को निरस्त कर दिया था। इन दोनों की अपीलों पर कोर्ट ने 15 जून को अंतिम सुनवाई सुनवाई कर निर्णय सुरक्षित रख लिया था आज कोर्ट ने अपना निर्णय सुनाते हुए अभियोजन पक्ष की रिपोर्ट को झूठा माना । जिसके बाद नफीस व सलीम को बरी कर दिया । कोर्ट ने इस केस में 2013 से अब तक लगभग 35 बार सुनवाई की।जबकि 88 साल के इस्लाम की अपील अभी कोर्ट में विचाराधीन है वह जमानत पर है। इस मामले के एक अन्य आरोपी अब्बास जो कि निचली अदालत से छूट गया था के खिलाफ सरकार ने अपील दायर की है । आरोप है कि उसी ने पैंसे देकर अकरम की हत्या कराई है।