खतरनाक मौसम लेकर आने वाला है अल नीनो, डब्ल्यूएमओ ने जारी की चेतावनी
जलवायु परिवर्तन की दुश्वारियों से कोई भी हिस्सा अछूता नहीं। विकसित देश भी इसकी मार झेल रहे हैं। मगर अब स्थिति अधिक विकराल होने जा रही है। जिसकी वजह अल नीनो बनने जा रहा है।
सात वर्ष बाद उष्णकटिबंधीय प्रशांत क्षेत्र में अल नीनो तेजी से सक्रिय हो चला है। पूरे विश्व की जलवायु के लिहाज से यह बेहद खतरनाक है। दुनिया की जलवायु पर नजर रखने वाले संयुक्त राष्ट्र विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) ने अल नीनो के बढ़ते असर को लेकर चेतावनी जारी कर दी है कि सामने आ रहा अल नीनो वैश्विक तापमान को बढ़ाएगा और दुनिया के कई हिस्सों में खतरनाक मौसम लेकर आएगा। दुनियाभर की सरकारों को सतर्क रहने की सख्त जरूरत है।
वैज्ञानिक मानते हैं कि जलवायु में दिनों दिन आ रहा परिवर्तन बेहद चिंता का विषय है। अब अल नीनो बांह फैलाए खड़ा है तो मौसम कतई अनुकूल रहने वाला नही है, जो अप्रत्याशित मौसम सामने ला सकता है। लिहाजा बेहद सतर्क रहने की जरूरत है। डब्ल्यूएमओ के अनुसार कि 90 प्रतिशत संभावना है कि अल नीनो वर्ष के अंत तक जारी रहेगा। इसका सबसे बड़ा खामियाजा सूखे के रूप में पड़ेगा। वैश्विक तापमान में वृद्धि होगी। यह दुनिया के कई हिस्सों में एक्स्ट्रीम वेदर को बड़ावा देगा। इसका सबसे बुरा असर जीव जंतुओं पर पड़ेगा। संभवतः कुछ प्राणियों का पलायन होगा तो कुछ का अस्तित्व ही धरती से समाप्त हो जाएगा। यह किसी भी दशा में हमारे लिए अनुकूल नही हो सकता। अल नीनो की दुश्वारियों से निबटने के लिए अभी से तैयारी करनी होगी। अल नीनो प्राकृतिक रूप से होने वाली एक जलवायु घटना है जो मध्य और पूर्वी उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर में समुद्र की सतह के तापमान से जुड़ी है। जिसकी सक्रियता को लेकर डब्लूएमओ के महासचिव पेटेरी तालास का कहना है कि अल नीनो की शुरुआत से दुनिया के कई हिस्सों के साथ समुद्र का तापमान पुराने रिकार्ड तोड़ डालेगा। जिसका असर अत्यधिक गर्मी के रूप में देखने को मिलेगा, तो कहीं जबरदस्त बारिश रिकार्ड तोड़ेगी। जिससे बाढ़ जैसी आपदाओं से निबटना होगा।
दुनिया भर की सरकारों को स्वास्थ्य, पारिस्थितिकी तंत्र और हमारी अर्थव्यवस्थाओं को ध्यान में रखते हुए हालात में काबू रखने के लिए अभी से जुटना होगा।
कई देशों को सहनी पड़ेगी अल नीनो की मार
डब्लूएमओ के अनुसार अल नीनो के प्रभाव से दक्षिणी अमेरिका, हॉर्न ऑफ़ अफ्रीका और मध्य एशिया के कुछ हिस्सों में अत्यधिक वर्षा होगी और बाढ़ से जूझना पढ़ सकता है, जबकि मध्य अमेरिका, उत्तरी दक्षिण अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया और दक्षिणी एशिया के कुछ हिस्सों में गंभीर सूखा पड़ेगा। इधर आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान एरीज के वरिष्ठ पर्यावरण वैज्ञानिक डा नरेंद्र सिंह जलवायु परिवर्तन को लेकर बेहद चिंतित नजर आते हैं। वह कहते हैं कि ग्रीन गैसों की निरंतर वृद्धि दुनिया के मौसम को खतरे में डाल रही है। 2015 में जलवायु नियंत्रण को लेकर पेरिस समझौता भी सफल होता नजर नहीं आया। अब अल नीनो सक्रिय हो चला है तो आने वाला मौसम किस कदर कहर बरपाएगा, अभी से कुछ कह पाना संभव नहीं।