आने वाले 2026 परिसीमन में आम पहाड़ियों को अपना सब कुछ पड़ेगा गवाना : उत्तराखंड रक्षा मोर्चा

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गढ़वाल संसदीय क्षेत्र के पूर्व लोकसभा प्रत्याशी इंजीनियर डीपीएस रावत ने कहा कि अब जनता के लिये आने वाला कल बहुत भयानक होगा और नहीं बचेगा आपका मूल अधिकार व आपके पुस्तैनी जमीन। केन्द्र सरकार जंगल-जमीन-पानी से भी आपका अधिकार छीनने के लिये लगातार सर्वे कर रही है और विदेशों से ग्रीन बोनस सरकार लगातार ले रही है। पिछले 20 सालों से भाजपा और कांग्रेस की मिलीभगत से आज पहाड़ो में भू-कानून खत्म हो चुके है।

इं० डीपीएस रावत ने कहा कि जिस मकसद से राज्य का निर्माण हुआ था वह एक भी कार्य मूल निवासियों के हके में नहीं हुआ है। बाहरी राज्यों के लोगों को आम खुला पनाह दिया जा रहा है। उत्तराखंड राज्य के गठन को आज 21 साल हो गए हैं और बीते 21 साल राज्य परिकल्पनाओं की हालात आज भी राष्ट्रीय पार्टी बीजेपी-कांग्रेस की सरकार कब्र खोदने के काम में जुटे होने का आभास दिला रही है।

उत्तराखंड स्थापना दिवस केवल आजादी के रूप में मनाया जाता है। 9 नवंबर वर्ष 2000 को उत्तर प्रदेश राज्य पुनर्गठन विधेयक की परिणाम स्वरुप अस्तित्व में आया और हिन्दुस्तान की 26 वें राज्य उत्तरांचल राज्य के गठन को आज 21 साल हो गए हैं।

उत्तराखंड प्रदेश का निर्माण का जो पहला सरकारी दस्तावेज था वह मंत्रिमंडल कौशिक समिति थी। जनवरी 1994 में गठित तत्कालीन नगर विकास मंत्री रमाशंकर कौशिक की अध्यक्षता में गठित समिति में 13 सिफारिशों के साथ उत्तराखंड राज्य के गठन की संस्कृति की थी। जिसमें 8 पर्वतीय जिलों को मिलाकर उत्तराखंड राज्य बनाने और गैरसैंण में राजधानी की स्पष्ट संस्तुति की गई थी।

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कौशिक समिति की सिफारिश जो उत्तर प्रदेश स्वीकृति विधि जो बढ़ते हुए 27 संशोधनों के साथ उत्तराखंड राज्य का गठन किया गया। परिणाम स्वरूप 21 सालों में पहाड़ बदहाल हो गए पहाड़ो से पलायन बढ़ा और स्थितियां पहाड़ों के लिए अस्तित्व तक आ पहुंची है।

इं० डीपीएस रावत ने कहा कि 2001 की जनगणना में उत्तराखंड के 10 पर्वतीय जिले उत्तरकाशी, चमोली, रुद्रप्रयाग, टिहरी गढ़वाल, पौड़ी गढ़वाल, बागेश्वर, अल्मोड़ा, चंपावत, नैनीताल की आबादी अनुमानित 45 लाख थी। जबकि 3 जिले हरिद्वार, ऊधमसिंहनगर, देहरादून की आबादी की जनगणना में यह क्रमशः 39 लाख के आस पास थी।

मैदानी जिलों की 8% भूभाग हुए राज्य गठन के 10 जिलों में जहां पहाड़ी जिलों में जनसंख्या 31 लाख वही 3 जिलों में 1 लाख थी। पहाड़ और मैदान की विभिन्न स्थितियों में तुलना करते हैं तो मैदानी क्षेत्रों में जहां मकान बनाने की लागत 1500 रुपए प्रति स्क्वायर फिट आती है वही पहाड़ी क्षेत्रों में 3000 रुपये प्रति स्क्वायर फ़ीट है।

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मैदानी क्षेत्रों में 1 घंटे में 60 से 80 किलोमीटर दूरी तय होती है और पहाड़ में 20 से 30 किलोमीटर होती है इको सेंसेटिव जोन केन्द्रीय वन व जंतु संरक्षण कानूनों का मैदानी क्षेत्रों में वनों के अभाव में अधिकार असर नहीं है। जबकि पहाड़ पहाड़ों से वंचित होने के कारण सभी सबसे डरावनी स्थिति सन 2026 के परिसीमन की है, जिस समय उत्तराखंड की 10 पर्वतीय जिलों की संख्या 56 लाख तथा तीन मैदानी जिलों की संख्या लगभग 97 लाख होने का अनुमान है।

इं० डीपीएस रावत ने कहा कि राष्ट्रीय राजनीतिक पार्टी बीजेपी-कांग्रेस जिस प्रकार से उत्तराखंड मे सहारनपुर, बिजनौर, मुरादाबाद, नजीबाबाद, रामपुर के क्षेत्रों को उत्तराखंड में मिलाने की वकालत करते रहे हैं। यदि यह षड्यंत्र सफल हुआ तो मैदानी क्षेत्रों में 10 लाख की कृषि वृद्धि होकर रहेगी।

सन 2008 में पर्वतीय विधानसभा क्षेत्रों के परिसीमन में 34 पर्वतीय क्षेत्रों के 36 मैदानी क्षेत्रों से विधायक चुने गये हैं। पर फिर भी गैरसैंण स्थाई राजधानी नहीं बन पाई है। ना ही पहाड़ो के विकास के लिये कोई ठोस नीतियां बन पाई। आने वाले कल मे 60 प्रतिशत विधायक अगर मैदानी होंगे तो नहीं बचेगा आपका पहाड़ो का अधिकार।

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चुनाव आयोग ने पहाड़ी क्षेत्रों की कोई वृद्धि नहीं की अन्यथा यह आंकड़ा उल्टा होता 21 सालों की राज्य के संशोधन की बंटवारे में राज्यों की सफलता-असफलता के कारण नेतृत्व पर प्रशासनिक चिन्ह है। 2017 में उत्तर प्रदेश के मंत्री ब्रह्मपाल सिंह ने परिसंपत्तियों के बंटवारे में हेड और टेल दोनों उत्तर प्रदेश सरकार ने अपने पास ही रखे हैं।

मूल सुविधाएं रोजगार स्वरोजगार चिकित्सा लागू कुटीर उद्योग क्षेत्र में पहाड़ों के साथ हुआ बहुत बड़ा अन्याय व राज्य परिकल्पना का पतीला लगता दिख रहा है। सन 2026 के परिसीमन से पहले दिन का क्षेत्रफल के फार्मूले को लागू नहीं करवा सके तो यहां राज्य परिकल्पना और शहीदों के सपनों की कफ़न का राज्य साबित होगा और पहाड़ सबसे पहले बर्बाद हो जाएंगे।

इं० डीपीएस रावत ने कहा कि अब जनता को 2022 मे यह तय करना है कि प्रदेश को बचाना है या गवाना है, यह आपके पास विकल्प है जिन लोगों ने अपने स्वार्थ के लिये प्रदेश की बीजेपी और कांग्रेस को चुना है, उनको राज्य के विकास से कोई मतलब नहीं। एक बार जनता को अपने क्षेत्रिय दल उत्तराखण्ड रक्षा मोर्चा को मौका देना चाहिये। ताकि प्रदेश मे अपने लोकल मुद्दों पर विकास कर सके।

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