

ISRO Satellite Image: उत्तरकाशी के धराली में राहत और बचाव का काम लगातार जारी है। एक तरफ़ आर्मी के जवान मलबे में फंसे लोगों को सुरक्षित बाहर निकालने की कोशीश कर रहे हैं। तो वहीं दूसरी तरफ़ वैज्ञानिक इस तबाही की असल वजह समझने में जुटे हैं।
इसी बीच इसरो यानी इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (ISRO) ने खीर गंगा की कुछ सैटेलाइट तस्वीरें जारी की हैं। इन तस्वीरों को देखकर वैज्ञानिकों ने जो नतीजे निकाले हैं, वो चौंका देने वाले हैं। चलिए इस आर्टिकल में समझते हैं की इसरो द्वारा जारी ये सेटेलाइट इमेजेस क्या कहती हैं।
ISRO ने जारी की उत्तरकाशी आपदा की सैटेलाइट तस्वीरें Uttarkashi Cloudburst ISRO Satellite Image
इसरो ने अपने कारटोसेट -3 सैटेलाइट के जरिए खीर गंगा की कुछ इमेजेस जेनरेट की हैं। कारटोसेट धरती की सतह की बेहद साफ और बारीक तस्वीरें ले सकता है। इन तस्वीरों में आप साफ साफ धराली के इस इलाके को देख सकते हो जहां मलबा फैला हुआ है। वरिष्ठ भूगर्भ वैज्ञानिक प्रो. एम.पी.एस. बिष्ट बताते हैं कि खीर गंगा का कैचमेंट निचले हिस्से में 50 से 100 मीटर चौड़ा है और ये श्रीकंठ पहाड़ के ग्लेशियर से तीखी ढलान के साथ जुड़ा है।

ISRO ने Cartosat-2S सैटेलाइट से बाढ़ से पहले और बाद की तस्वीरें की जारी
जिससे ये साफ है कि निचले इलाकों में जो बसावट हैं वो भी मलबे के ढेर पर हुई है। पहले भी यहां भारी मलबा जमा हुआ था। उसी मलबे के ऊपर इंसानों ने अपनी बसावट खड़ी कर ली। अब इस साल की जलप्रलय में खीर गंगा के जलग्राही क्षेत्र यानी Catchment Area में एक बार फिर मलबा पसर गया है।
ISRO ने Cartosat-2S सैटेलाइट से बाढ़ से पहले और बाद की तस्वीरें जारी की है। ISRO द्वारा जारी उत्तराखंड की तबाही की सैटेलाइट इमेज में देखा जा सकता है कि मलबा 20 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला हुआ है। जो भागीरथी नदी के तट तक है। नदी का रास्ता पूरी तरह बदल गया है। कई सारी इमारतें जलमग्न या पूरी तरह लुप्त हो गई है। धराली गांव पूरी तरह से बर्बाद हो गया है।

खीर गंगा ने वापस ले लिया अपना पुराना ठिकाना
वैज्ञानिकों की मानें तो इस तरह से नदी(खीर) ने अपना पुराना इलाका ही वापस लिया है। अकसर नदियां ऐसा ही करती हैं वो असल रुप में आकर अपना इलाका वापस लेती हैं। इसी लिए NGT ने नियम भी बनाए हैं की किसी भी नदी के 100 मीटर दाएं या बाए तरफ कोई बसावट नहीं होनी चाहिए। लेकिन इन तस्वीरों में दिखाई दे रहा है कि किस तरह से नदी के इलाके में बिल्डिंगस खड़ी करके नदी का रास्ता तक मोड़ दिया।
वैज्ञानिकों ने पहले भी चेताया
ऐसा नहीं है की पहले वैज्ञानिकों, विशेषज्ञों और पर्यावरणविदों ने इसे लेकर चेताया नहीं हो। कई लोगों ने पहले ही इस आपदा का अनुमान लगा लिया था। वैज्ञानिकों ने सालों पहले कह दिया था की धराली एक टाइम बम पर बसा हुआ है।
अब ऐसी ही कुछ कहानी धराली के पास फेमस हर्षिल घाटी की भी है। हालांकि वहां ज्यादा आबादी नहीं थी जिस वजह से वहां किसी को भी नुकसान नहीं हुआ।
प्रकृति की गलती नहीं, दोष हमारा?
प्रो. बिष्ट का साफ कहना है की धराली की आपदा हमारे लिए सबक है। धराली ने एक बार फिर हमें आईना दिखाया है की इसमें प्रकृति की गलती नहीं है बल्कि इसमें दोष हमारा है। शायद अनियोजित विकास हमारे उत्तराखंड को सुनियोजित विनाश की तरफ लेकर जा रहा है
