समतलीकरण के नाम पर क्रेशरौ को पट्टे देने से स्थानीय वाहन स्वामी बेरोजगार होने के कगार पर

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क्रेशर मालिकों की मनमानी के चलते वाहन स्वामियों के सामने रोजी रोटी का संकट

उत्तराखंड में लगभग कई नदियों में खनन कार्य होता है। जिससे उत्तराखंड को राजस्व के साथ-साथ क्षेत्रीय ग्रामीणों को रोजगार भी उपलब्ध कराता है । जिसे क्षेत्र के लोगों का भरण पोषण होता है उत्तराखंड में जितनी भी नदियां हैं उनमें वन विभाग खनन विभाग वन निगम रायल्टी वसूल करता है साथ ही स्थानीय लोगों को रोजगार मिलता है सरकार के गलत नीतियों के कारण स्टोन क्रेशरों को समतलीकरण के नाम से पट्टे दे दिए गए हैं इसमें सरकार के नुमाइंदों का अहम रोल है । क्षेत्र में गोला नदी नंधौर कोसी दाबका प्रमुख नदियों में से एक है जिसमें कई दशकों से खनन कार्य किया जाता है इस कार्य में स्थानी लगभग 7000 से ऊपर वाहन खनन का काम करते है जो गौला नदी से जुड़े हुए हैं क्षेत्र में एकमात्र ऐसा रोजगार का जरिया है जो पूरे मार्केट से लेकर आम पब्लिक प्रत्यक्ष याअप्रत्यक्ष रूप से गौलाके खनन कार्य से जुड़े हुए हैं यही नहीं उत्तराखंड के अलावा यूपी के कई जिले खनन से जुड़े हुए हैं साथ ही स्थानीय लोगों को रोजगार तो मिलता ही है पड़ोसी राज्य यूपी को भी यहां से फायदा मिलता है हजारों लोग इस खनन कार्य से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हुए हैं सरकार की गलत नीतियों के कारण स्टोन क्रेशरों उनको सस्ते दामों पर समतलीकरण के नाम से जमीन उपलब्ध करा दी जिस जमीन से स्टोन क्रेशर खनन कार्य करते हैं

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वहां की राइटिंग ₹7 प्रति कुंटल है और गोला नदी से जो खनन कार्य किया जाता है वह ₹32 कुंटल लिया जाता है क्रेशर स्वामियों का कहना है अगर हमको ₹7 कुंटल में माल मिल रहा है तो हम ₹32 कुंटल क्यों खरीदें सरकार ने इन नदियों का रॉयल्टी को इतना बढ़ा दिया लोकल में लोग अपना घर बनाने के लिए तरस गए हैं बगल में गोला नदी है वहां से रेता बजरी आता है सरकार नारा दे रही है हर गरीब को घर मिले इन परिस्थितियों में किस प्रकार से आम आदमी का कैसे अपना घर बनाएगा विश्वस्त सूत्रों से ज्ञात हुआ है कि गोला नदी को बंद कराने की कोशिश की जा रही है इसमें सबसे पहले स्टोन क्रेशरों का हाथ है क्योंकि उनको ₹7 क्विंटल पर समतलीकरण के नाम से माल मिल रहा है कोई क्यों खरीदेगा महंगा माल अगर हम माल खरीदते हैं ₹7 कुंटल का माल लोकल मे 80 से ₹90 प्रति कुंटल माल बेचा जा रहा है कुल मिलाकर इसमें सरकार को कितना राजस्व मिल रहा है

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पूर्व में रॉयल्टी के कारण गोला नदी को खनन कार्य के लिए बंद कर दिया गया था बाहर से आए मजदूर अपने गांव वापस चले गए ज्ञात रहे गोला नदी में खनन करने के लिए यूपी के बलिया गोरखपुर बस्ती बिहार झारखंड के लोग यहां पर अपनी रोजी-रोटी कमाने के लिए आते हैं यह कार्य कई दशकों से चलता हुआ आया है एक बात यह समझ में नहीं आई की इन स्टोन क्रेशरों को पट्टे किस हिसाब से दिए गए हैं इस में सरकार का क्या रोल है कहीं तो गोलमाल जरूर है यह किसने किया है कैसे हुआ है क्यों हुआ है जो स्थानीय लोगों की रोजी-रोटी पर संकट खड़ा हो गया है पिछले 2 साल से करोना कि मार से हुए लोग अभी उमर नहीं पाए नए

रोजगार का कोई भी सरकार ने सिस्टम तैयार नहीं किया महंगाई डीजल पेट्रोल सब्जी दालों खाद्य तेल आम आदमी के पहुंच से बाहर होने लगे हैं अगर ऐसा ही रहा तो आम गरीब जनता का क्या होगा एक तरफ गरीब को तो सरकार राशन दे रही है सिर्फ खाने भर से जिंदगी नहीं चलती है और भी कई जरूरतें होती है सूत्रों के अनुसार गोला नदी का खनन कार्य बंद होने वाला है इतनी महंगाई में किस तरीके से वाहन स्वामी अपने वाहनों को चलाएंगे टोटल पूरे साल में 4 से 5 महीने का काम मिलता है यानी कि 120 से 125 दिन तक ही काम मिलता है उसी से अपना जीवन यापन करते हैं वाहनों के रखरखाव फिटनेस इंश्योरेंस टैक्स ड्राइवर और अन्य खर्चे लगाकर बचत नहीं के बराबर होती है ।

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समतलीकरण एक बहाना है उसकी आड़ में जमीनों को खोदकर निकाला गया खनन सामग्री स्टोन क्रेशर ओं में शिफ्ट हो जाती है सूत्रों के अनुसार यह बताया जा रहा है क्रेशर मालिक अब गोला नदी से खनन सामग्री नहीं लेंगे कारण उनको ₹7 कुंटल के हिसाब से समतलीकरण के नाम से खनन सामग्री मिल जा रही है यह भी बताया जा रहा है क्रेशर मालिक खनन सामग्री नहीं लेंगे।

इसी संदर्भ में है क्षेत्र के पूर्व विधायक नवीन चंद दुमका ने प्रदेश के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से मुलाकात कर इस समस्या से अवगत कराया था श्री धामी ने पूर्व विधायक नवीन चंद दुमका को आश्वासन दिया था कि इस पर तुरंत कार्यवाही की जाएगी मगर अभी तक इस पर कोई कार्यवाही नहीं हुई।

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