(सिद्ध पीठ),
उत्तराखंड के शक्ति पीठों में माता चंद्रबदनी का नाम प्रमुख रूप से लिया जाता है। अंतर्राष्ट्रीय शिक्षक मां काली के उपासक ज्योतिषाचार्य तथा कई राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित अखिलेश चंद्र चमोला इस मंदिर की महिमा पर प्रकाश डालते बताते हैं कि वैसे इस मन्दिर में हर समय भीड़ भाड़ बनी रहती है। लेकिन नवरात्रि के पर्व पर माँ चंद्रबदनी का परिसर अपने आप विशिष्टता को लिये रहता है। मान्यता है कि यहां माता का यन्त्र स्थापित है। पुजारी आँखों पर कपड़ा लगाकर ही यन्त्र की पूजा करता है। यन्त्र में इतनी तेज गर्मी रहती है कि आंखें उस तेज को सहन नहीं कर पाती हैं। चन्द्र बदनी सिद्ध पीठ की कथा भी अपने आप में बडी हृदय स्पर्शी है। जो माता सती से जुड़ी हुई है। एक बार सती के पिता राजा दक्ष ने बहुत बडे यज्ञ का आयोजन किया। जिसमें उन्होंने शिव भगवान को छोड़कर सभी देवताओं को बुलाया। इस विशाल यज्ञ की खबर माता सती को अपने सहेलियों से पता चली। माता सती ने भगवान शंकर से यज्ञ मे जाने की जिद्द की। शंकर भगवान ने कहा बिना निमन्त्रण के यज्ञ में चलना शुभ संकेत नहीं दर्शाता है। इसलिए वहाँ जाने का हट त्याग दो। माता पार्वती नहीं मानी। माता सती के हट के आगे शिव भगवान ने विवश होकर माता सती को यज्ञ में जाने की अनुमति दे दी सती अपने पिता के यज्ञ में पहुंचीं। वहां उनका किसी ने आदर सत्कार नहीं किया। यज्ञ में सभी देवताओं की प्रतिष्ठा तथा सम्मान देखकर माता सती को बडा आश्चर्य हुआ। माता सती से रहा नहीं गया। माता सती ने अपने पिता दक्ष से बडे अनुनय-विनय के साथ कहा कि पिताजी तुम्हें क्या हो गया है। तुम्हारी बुद्धि काम नहीं कर रही है। यह सर्वविदित है कि यज्ञ के सर्वप्रथम अधिकारी भगवान शिव हैं। आपने किस कारण से उनकी उपेक्षा की है। पुत्री की इस तरह की बात को सुनकर दक्ष ने क्रोधित होकर भगवान शिव के लिए तरह-तरह के अपशब्द कहे। माता सती यह सहन नहीं कर पाई और क्रोधित होकर यज्ञ कुन्ड में कूद पडी। यह खबर आग की तरह चारों ओर फैल गई। सती के भस्म होने की खबर जैसे ही भगवान शिव को मिली। शिव भगवान ने गुस्से में आकर दक्ष का सिर काट कर माता शती का जला हुआ शरीर कन्धे में ले लिया और तान्डव करने लग गये। उस समय प्रलय जैसी स्थिति आने लगी। सभी देवता घबराने लगे और भगवान शिव को शान्त करने का उपाय सोचने लगे। अन्त में भगवान विष्णु ने अपना अदृश्य सुदर्शन चक्र भगवान के पीछे लगा दिया। जहां जहां सती के अंग गिरे वे स्थान शक्ति पीठ कहलाने लगे। मान्यता यह है कि चन्द्र कूट पर्वत पर माता सती का शरीर गिरा। इस कारण यहाँ का नाम चन्द्रवदनी पड़ा। कहते हैं कि आज भी इस पर्वत पर रात में गन्धर्व अप्सराएँ मन्दिर में नृत्य और गायन करते हैं। टिहरी जिले के हिन्डोलाखाल विकासखंड में चन्द्रकूट पर्वत पर समुद्र तल से 6000 फुट की ऊंचाई पर चंद्रबदनी सिद्ध पीठ स्थित है। ऋषिकेश देवप्रयाग के रास्ते यहाँ पहुँचा जा सकता है। रास्ते का प्राकृतिक नजारा भी अपने आप में बडा भव्य और सुन्दर दिखाई देता है। अप्रैल माह में यहाँ मेला लगता है। जिसमें हजारों भक्तजन माता के जयकारे लगाते हुए पैदल मार्ग से यहाँ पहुँचते हैं। यहां जो भी सच्ची श्रद्धा से आता है। उसकी मनोकामना पूर्ण होती है