स्कूलों में भगवत गीता पढ़ाने पर शिक्षकों ने जताई आपत्ति, संविधान का हवाला देकर दिया ये तर्क

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उत्तराखंड में स्कूली शिक्षा के क्षेत्र में एक नया विवाद खड़ा हो गया है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के निर्देशों के बाद राज्य के स्कूलों में भगवत गीता के श्लोकों से दिन की शुरुआत कराई जा रही है, लेकिन अब यह फैसला शिक्षकों के एक वर्ग को रास नहीं आ रहा है। शिक्षकों ने शिक्षा विभाग को पत्र लिखकर सरकार के फैसले पर आपत्ति जताई है।

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स्कूलों में भगवत गीता पढ़ाने पर शिक्षकों ने जताई आपत्ति

राज्य के कई स्कूलों के शिक्षकों ने इस पर विरोध जताते हुए निदेशक को एक लिखित अनुरोध पत्र सौंपा है, जिसमें इस कदम को संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ बताया गया है। विशेष रूप से एससी-एसटी शिक्षक एसोसिएशन ने सामने आकर सरकार के फैसले का विरोध किया है और कहा है कि शैक्षणिक संस्थानों में किसी एक धर्म की शिक्षा लागू करना संविधान की धर्मनिरपेक्ष भावना के विपरीत है।

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अन्य समुदायों के अधिकारों का बताया हनन

एससी-एसटी शिक्षक एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष संजय टम्टा ने बयान जारी करते हुए कहा कि संविधान में यह स्पष्ट रूप से दर्ज है कि राज्य का कोई धर्म नहीं होगा। शिक्षा के नाम पर किसी खास धार्मिक ग्रंथ को पढ़ाना अन्य समुदायों के अधिकारों का हनन है। हम बच्चों को नैतिक शिक्षा देने के पक्ष में हैं, लेकिन किसी एक धर्म की पुस्तक को अनिवार्य रूप से पढ़ाना सर्वमान्य नहीं है।

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Bhagwat Geeta in the schools of Uttarakhand

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