उत्तराखंड की सांस्कृतिक विरासत को आगे बढ़ा रही हैं हेमा पांडे

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लालकुआं किसी भी प्रदेश अथवा देश की पहचान उसकी सांस्कृतिक धरोहर होती है अपनी सांस्कृतिक धरोहरों को सहेज कर रखना और उसे समृद्ध बनाने से ही अपने प्रदेश की पहचान देश और दुनिया में बनती है यह कहना है मानव उत्थान सेवा समिति की वरिष्ठ महिला सामाजिक कार्यकर्ता श्रीमती हेमा पांडे का जो अब तक कई दर्जन गीतों के माध्यम से उत्तराखंड की सांस्कृतिक विरासत को आगे बढ़ा कर नई पीढ़ी को संस्कृति संरक्षण का संदेश दे रही हैं मूल रूप से जनपद अल्मोड़ा के सुदूरवर्ती खूना गांव में जन्मी हेमा पांडे की शिक्षा हल्द्वानी एवं मेरठ के शहरों में हुई बचपन से ही उन्हें कुमाऊनी लोक गीतों का और लोकनृत्य का बेहद शौक रहा और उन्होंने उसे गैर व्यवसायिक तरीके से जन चेतना का माध्यम बनाया रामलीला अथवा बड़े कार्यक्रमों में एक कुशल एंकर की भूमिका निभाने वाली हेमा पांडे का विवाह 1995 में सैन्य अधिकारी नवीन चंद्र पांडे से हुआ लिहाजा वे अपने पति के साथ मुंबई चले गई लेकिन वहां जाकर भी उन्होंने उत्तराखंड की संस्कृति को, रीति रिवाज को भाषा शैली को अपनाए रखा तथा अन्य लोगों को भी से रूबरू कराया मौजूदा समय में मानव धर्म के प्रणेता सदगुरुदेव श्री सतपाल महाराज जी की संस्था मानव उत्थान सेवा समिति में वरिष्ठ महिला कार्यकर्ता की भूमिका निभा रही श्रीमती हेमा पांडे भजन गायकी के अलावा उत्तराखंड के लोकगीतों के माध्यम से भी सांस्कृतिक धरोहर को सुदृढ़ करने का कार्य कर रही है उनके गाए हुए गीत जो काफी लोकप्रिय हुए उनमें से हिट दे दगड़ी पधाना भीना फौजी मदना ऐ गै बाराता ठंडी हवा पलटनिया सैया आदि शामिल है हेमा पांडे कहती हैं कि पलायन पहाड़ की एक बहुत बड़ी गंभीर समस्या और दर्द है लेकिन इससे हम अपनी सांस्कृतिक धरोहरों को सुदृढ़ करने से काफी हद तक रोक सकते हैं क्योंकि उत्तराखंड के सांस्कृतिक धरोहरों का जब प्रचार प्रसार होगा तो तीर्थाटन और पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा जो स्वरोजगार की दिशा में एक मील का पत्थर साबित हो सकते हैं हेमा पांडे कहती हैं कि उन्हें इस दिशा में अपने पति के अलावा अपने बेटे रवि का जो नौ सेना में लेफ्टिनेंट है तथा अपनी बेटी जो एमबीए की स्टूडेंट है का भी भरपूर सहयोग मिलता है उन्होंने बताया कि वर्तमान समय में वे अपने हल्द्वानी स्थित आवास भगवानपुर में रह रही हैं

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