उत्तराखंड में दीपावली के 11 दिन बाद मनाया जाने वाला ईगास पर्व आज मनाया जा रहा है। इगास बग्वाल दीपावली के 11 दिन बाद एकादशी को मनाई जाती है। इगास बग्वाल को ‘इगास दिवाली’ और ‘बूढ़ी दिवाली’ भी कहा जाता है। उत्तराखंड सरकार ने पिछले साल की तरह इस बार भी चार नवंबर को सार्वजनिक अवकाश घोषित किया है।
सीएम धामी ने दी गढ़वाली में बधाई
उत्तराखंड के लोकपर्व ईगास के मौके पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने प्रदेशवासियों को शुभकामानएं और बधाई दी है। सोशल मीडिया के जरिये अपने गढ़वाली में दिए गए संदेश में मुख्यमंत्री धामी ने कहा कि- म्यारा प्यारा उत्तराखंड वासियों, भोल हमारु लोक पर्व “इगास” बग्वाल हम सब्बि तें भोत धूम धाम से मनोण और अपणी नई पीढ़ी तें भी अपणा त्यौहारु से जोड़कर रखण। हमारा लोकपर्व गी सार्थकता तभी च, जब हम ये त्यौहार तें अपणी संस्कृति, प्रकृति और उत्पादूं से जोड़ला।
राज्यपाल गुरमीत ने प्रदेशवासियों को उत्तराखंड के लोकपर्व इगास-बग्वाल की बधाई एवं शुभकामनाएं दी हैं। राज्यपाल ने कहा कि इगास-बग्वाल का यह पर्व सभी प्रदेशवासियों के जीवन में सुख, समृद्धि व खुशहाली लाएं। यह पर्व उत्तराखंड की लोक संस्कृति व परंपरा का प्रतीक है। यह पर्व हमारे पूर्वजों की धरोहर व पर्वतीय संस्कृति की विरासत है। हमें अपने लोकपर्व व संस्कृति को संरक्षित रखने की आवश्यकता है। विशेषकर राज्य के युवा वर्ग को इस दिशा में मिलकर कदम बढ़ाने चाहिए।
उत्तराखंड भाजपा प्रदेश अध्यक्ष महेन्द्र भट्ट ने प्रदेशवासियों को लोकपर्व ईगास व बूढ़ी दीवाली की हार्दिक शुभकामना दी है । उन्होंने आह्वाहन किया, हम सबकी जिम्मेदारी है कि देवभूनि की उन्नत संस्कृति व समृद्ध परम्परा को प्रदर्शित करने वाले इस महाउत्सव को व्यापक स्वरूप में मनाए और भावी पीढ़ी को गौरवान्वित करने वाली सांस्कृतिक पहचान सौपने का कार्य करें।
इगास पर्व के अवसर पर मुख्यमंत्री धामी ने प्रदेश की जनता को प्रोत्साहित करने के अभियान के तहत तीन भाग्यशाली विजेताओं को प्रोत्साहन पुरस्कार देने का निर्णय लिया है। उन्होंने कहा है कि इगास पर्व मनाते हुए आप अपने परिवार के साथ सेल्फी लेकर हमें भेजे और आकर्षक उपहार जीतने का अवसर प्राप्त करें।
राज्यपाल गुरमीत सिंह ने इगास पर्व पर प्रदेशवासियों को बधाई एवं शुभकामनाएं दी हैं। राज्यपाल ने कहा कि इगास-बग्वाल का यह पर्व सभी प्रदेशवासियों के जीवन में सुख, समृद्धि व खुशहाली लाएं। यह पर्व उत्तराखंड की लोक संस्कृति व परंपरा का प्रतीक है। यह पर्व हमारे पूर्वजों की धरोहर व पर्वतीय संस्कृति की विरासत है। हमें अपने लोकपर्व व संस्कृति को संरक्षित रखने की आवश्यकता है। विशेषकर राज्य के युवा वर्ग को इस दिशा में मिलकर कदम बढ़ाने चाहिए।
वहीं उत्तराखंड भाजपा प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट ने प्रदेशवासियों से अपील की है कि हम सबको न केवल स्वयं अपने अपने गाँवों में पारंपरिक रूप में इसे मनाना चाहिए बल्कि प्रवासियों से भी ऐसा करने के लिए प्रेरित करना चाहिए। उन्होंने जानकारी दी कि इस बार पार्टी भी संगठन स्तर पर देवभूमि के इस लोकपर्व को व्यापक स्वरूप में मनाने जा रही है। इसमे पार्टी के सभी पदाधिकारी एवं जनप्रतिनिधि अधिकाधिक संख्या में अपने मूल स्थानों पर भागेदारी कर रहे हैं।
क्या है मान्यता
मान्यता है कि भगवान श्रीराम जब रावण का वध करने के बाद अयोध्या वापस आए तो इसकी सूचना उत्तराखंड को 11 दिन बाद मिली। तब यहां दीपावली मनाई गई थी। इसी दीवाली को इगास पर्व या बूढ़ी दीपावली कहते हैं। एक अन्य पौराणिक मान्यता के अनुसार करीब 400 साल पहले वीर भड़ माधो सिंह भंडारी के नेतृत्व में टिहरी, उत्तरकाशी, जौनसार, श्रीनगर समेत अन्य क्षेत्रों से योद्धा बुलाकर सेना तैयार की गई। इस सेना ने तिब्बत पर हमला बोलते हुए वहां सीमा पर मुनारें गाड़ दी थीं। तब बर्फबारी होने के कारण रास्ते बंद हो गए। कहते हैं कि उस साल गढ़वाल क्षेत्र में दीपावली नहीं मनी, लेकिन दीपावली के 11 दिन बाद माधो सिंह भंडारी युद्ध जीतकर गढ़वाल लौटे तो पूरे क्षेत्र में भव्य दीपावली मनाई गई। तब से कार्तिक माह की एकादशी पर यह पर्व मनाया जाता है।
खेले जाते हैं भैलू
इगास पर्व के अवसर पर धनतेरस से ही पहाड़ों में भैलू बनाए जाते हैं। भेलू के लिए चीड़ की लकड़ी का छोटा गट्ठर बनाया जाता है। इसे पेड़ की बेल या छाल से बांधा जाता है। इसका एक सिरा लंबा छोड़ दिया है। इगास पर्व के दिन इस पर आग लगाकर इसे घुमाया जाता है। मौके पर पूरे गांव के लोग एकत्र होते हैं। ढोल दमाऊ बजते हैं और लोग उत्सव मनाते हैं। ऐसा कहा जाता है कि जो अपने ऊपर भेलू घुमाता है, उसके ऊपर से दीपावली के दिन सारे संकट दूर हो जाते हैं। साथ ही इस अवसर पर पहाड़ी व्यंजनों को बनाते हैं। साथ ही इस दिन घरों में कोठार (अनाज रखने के लिए लकड़ी का बर्तन) में नया अनाज रखा जाता है। जबकि पशुपालक अपने घरों में दूध और दही रखने के लिए नए बर्तन भी रखते हैं।
इगास पर्व को लेकर लोक संस्कृति कर्मी और वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. नंद किशोर हटवाल के मुताबिक आधुनिक विकास की चकाचौंध में मूलभूत सुविधाओं से वंचित गांवों से होते पलायन से पहाड़ की कई परंपराएं कम हो गईं हैं। जिसमें इगास भी शामिल है लेकिन पिछले दो-तीन वर्षों से इगास के प्रति शासनस्तर पर जागरूकता दिखाई गई है जिससे लोग अब इसे मनाने में उत्सुकता दिखा रहे हैं।