कुर्मांचल टाइम्स
सम्पादक
डी एन खोलिया की कलम से साभार।
उत्तराखंड के कुमाऊँ अंचल में आज खतड़वा मनाया जा रहा है । ऋतु परिवर्तन और पशुधन की सम्रद्धि हेतु मनाया जाने वाला यह पर्व किसानों के लिए महत्वपूर्ण त्योहार है । कृषि पशुपालन से विमुख अधिकांश आबादी अब खतड़वा को लेकर अधिक उत्साहित नही दिखती है ।देश के ग्रामीण इलाकों में पशुधन की सम्रद्धि हेतु मनाए जाने वाले त्योहारों की तरह ही खतड़वा कुमाऊँ अंचल के महत्त्वपूर्ण त्योहार रहा है जो सदियों से पशुवों की मंगलकामना के लिए मनाया जाता है ।
आज के दिन किसान अपनी गोशाला की साफ सफाई कर उन्हें शीतकाल के लिए तैयार करते हैं । पशुवों की साफ सफाई के साथ ही उनके खुर ( नाखून) और सींगों की सफाई करते हैं । बारिश के सीजन में घर की सीलन को हटाया जाता है गौशाला में किसी तरह के जीवाणु को नष्ट करने के लिए मशाल जलाकर धुवां लगाने की परंपरा है ।सामूहिक रूप से शाम के समय किसी स्थान पर घासफूस का बड़ा पुतला बनाया जाता है । जिसमे प्रत्येक घर के लोग अपनी गोशाला से कथित बीमारी को खास तरह के पत्तों और मशाल के सहारे समेटकर उक्त स्थान में समहुक तौर पर दहन कर नष्ट करते हैं ।जानवरों की बीमारी मुक्ति के लिए पारंपरिक गीत गाकर आगामी सीजन में सुख समृद्धि की कामना की जाती है । पुतला दहन स्थल पर ककड़ी ले जाने की प्रथा है । हर घर से ले जायी जाने वाली ककड़ी का एक हिस्सा चढ़ने के बाद प्रसाद के रूप में घर के सदस्यों में बाटी जाती है । इस तरह गांव और पशुधन की बेहतरी की कामना के साथ त्योहार का समापन होता है ।
उत्तराखंड: पशुधन की समृद्धि की कामना से जुड़ा लोकपर्व आज.आज ही से ऋतु परिवर्तन मानते हैं।
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