उत्तराखंड में अब शीतकाल में भी होगी चारधाम यात्रा, शंकराचार्य करेंगे शुरूआत

खबर शेयर करें -

उत्तराखंड में पहली बार शीतकाल में भी चारधाम यात्रा होने जा रही है। सप्त दिवसीय शीतकालीन तीर्थ यात्रा की जल्द ही शुरूआत होने जा रही है। इसके लिए सीएम पुष्कर सिंह धामी से सोमवार को मुलाकात कर ज्योतिर्मठ के एक प्रतिनिधि मंडल ने आमंत्रण पत्र भी दिया है।

उत्तराखंड में अब शीतकाल में भी होगी चारधाम यात्रा
देवभूमि उत्तराखंड में चारधाम यात्रा तो होती ही है लेकिन इस बार इतिहास में पहली बार शीतकालीन चारधाम यात्रा शुरू होने जा रही है। बता दें कि ठंड के मौसम में चार धाम यात्रा के मिथक को तोड़ने की पहल ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्य ने की है। 27 दिसंबर से शीतकालीन चारधाम यात्रा का श्री गणेश किया जाएगा।

यह भी पढ़ें -  अल्मोड़ा दौरे पर कैबिनेट मंत्री रेखा आर्या, ग्रामीणों से मुलाकात कर सुनी जनसमस्या

27 दिसंबर से शुरू होगी शीतकाल चारधाम यात्रा
27 दिसंबर से शीतकालीन चारधाम यात्रा शुरू होगी। बता दें कि 28 और 29 दिसंबर को यात्रा उत्तरकाशी पहुंचेगी, 30 दिसंबर को भगवान केदारनाथ की शीतकालीन पूजा स्थली ऊखीमठ के ओंकारेश्वर मंदिर पहुंचेगी, 31 दिसंबर को बद्रीकाश्रम हिमालय पहुंचेगी, एक जनवरी को ज्योतिर्मठ और दो जनवरी को हरिद्वार में रात्रि-विश्राम करेंगे। इसके पीछे की वजह शीतकाल चार धाम यात्रा को बढ़ावा देना बताया जा रहा है।

छह महीने के लिए यहां विराजमान होते हैं भगवान
बता दें कि हिंदू मान्यता के अनुसार उत्तराखंड के चार धामों में शीतकाल के छह महीने देवता पूजा पाठ करते हैं। इसलिए बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री चारों धामों के कपाट छह महीने के लिए बंद हो जाते हैं। इस दौरान उनके गद्दीस्थलों पर पूजा की जाती है।

यह भी पढ़ें -  News:किशोरी से हैवानियत, दुष्कर्म से गर्भवती हुई पीड़िता, ऐसे हुआ खुलासा

रूद्रप्रयाग जिले के ऊखीमठ में बाबा केदार और पांडुकेश्वर जोशीमठ चमोली जिले में बघवान बद्रीना आ जाते हैं। छह महीने यहीं इनकी पूजा अर्चना होती है। शीतकाल में श्रद्धालु इन्हीं जगहों पर भगवान के दर्शन करते हैं। चारों धामों से चल विग्रह स्वरुप को शीतकाल प्रवास मां गंगा उत्तरकाशी जिले के मुखवा गांव और यमुना मां खरसाली गांव में प्रवास करती है।

यह भी पढ़ें -  जानिए उत्तराखंड के न्याय देवता गोल्ज्यू की कहानी, यहां चिट्ठी डालने से दूर होती हर परेशानी

शीतकाल में गद्दी की होती है पूजा
बता दें कि शीतकाल में छह महीनों के लिए तीर्थ पुरोहित शीतकाल गद्दी की पूजा अर्चना करते हैं। शीतकाल प्रवास के लिए चारों धामों से जो डोली ले जाई जाती है उसमें चल विग्रह स्वरूप होता है। जिसका मतलब ये है कि भगवान की मुख्य मूर्ति मंदिर परिसर में ही होती है। लेकिन धामों के कपाट होने के साथ ही भगवान की मूर्ति चल विग्रह स्वरूप में शीतकाल के लिए लाई जाती है

Advertisement

लेटैस्ट न्यूज़ अपडेट पाने हेतु -

👉 हमारे व्हाट्सऐप ग्रुप से जुड़ें

👉 फ़ेसबुक पेज लाइक/फॉलो करें

👉 विज्ञापन के लिए संपर्क करें -

👉 +91 94109 39999